🔹 दम के समान कोई धर्म नहीं सुना गया है। दम क्या है? क्षमा, संयम, कर्म करने में उद्यत रहना, कोमल स्वभाव, लज्जा, बलवान, चरित्र, प्रसन्न चित्त रहना, सन्तोष, मीठे वचन बोलना, किसी को दुख न देना, ईर्ष्या न करना, यह सब दम में सम्मिलित है।
🔸 त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।
🔹 लोग अनेक प्रकार के मोह में जकडे़ हुए हैं। उनकी दशा ऐसी है, जैसी रेत के पुल की जो नदी के वेग के साथ नष्ट हो जाता है। जिस प्रकार तिल कोल्हू में पेरे जाते हैं, उसी प्रकार वे मनुष्य पेरे जाते हैं जो संसार के मोह में फँस जाता है और निकल नहीं सकता। वैसे ही दशा उस मनुष्य की है जो मोह में फँसा हुआ है।
🔸 श्रेष्ठ व्यक्ति अपने जीवन को केवल जीने के लिए ही नहीं, अपितु महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उपयोग करते है और समय आने पर प्राण देकर भी अपने उद्दिष्ट कार्य को पूर्ण करते है। मनुष्य का विद्याध्ययन की अपेक्षा सरल व्यवहार से ही अधिक ज्ञान प्राप्त हो सकता है पर वह सत्संगति द्वारा ही प्राप्त होता है।
🔹 यदि केवल बालू की ही दिवार बनाई जाय तो-प्रथम तो दीवार बनेगी ही नहीं और आदि बन गई तो शीघ्र गिर जायेगी, यदि उस बालू में सीमेंट छठा अंश भी मिला दिया जाये तो वही दीवार पत्थर की बन जाती है, इसी प्रकार माया के सब कार्य भी बालू की भाँति है । यदि इनसें परमार्थ रूपी कुछ सीमेन्ट मिल जायेगा तो वही बालू की दीवार सुदृढ़ बन जाएगी।
✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
🔸 त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।
🔹 लोग अनेक प्रकार के मोह में जकडे़ हुए हैं। उनकी दशा ऐसी है, जैसी रेत के पुल की जो नदी के वेग के साथ नष्ट हो जाता है। जिस प्रकार तिल कोल्हू में पेरे जाते हैं, उसी प्रकार वे मनुष्य पेरे जाते हैं जो संसार के मोह में फँस जाता है और निकल नहीं सकता। वैसे ही दशा उस मनुष्य की है जो मोह में फँसा हुआ है।
🔸 श्रेष्ठ व्यक्ति अपने जीवन को केवल जीने के लिए ही नहीं, अपितु महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उपयोग करते है और समय आने पर प्राण देकर भी अपने उद्दिष्ट कार्य को पूर्ण करते है। मनुष्य का विद्याध्ययन की अपेक्षा सरल व्यवहार से ही अधिक ज्ञान प्राप्त हो सकता है पर वह सत्संगति द्वारा ही प्राप्त होता है।
🔹 यदि केवल बालू की ही दिवार बनाई जाय तो-प्रथम तो दीवार बनेगी ही नहीं और आदि बन गई तो शीघ्र गिर जायेगी, यदि उस बालू में सीमेंट छठा अंश भी मिला दिया जाये तो वही दीवार पत्थर की बन जाती है, इसी प्रकार माया के सब कार्य भी बालू की भाँति है । यदि इनसें परमार्थ रूपी कुछ सीमेन्ट मिल जायेगा तो वही बालू की दीवार सुदृढ़ बन जाएगी।
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