गुरुवार, 24 सितंबर 2020

👉 हमारा व्यवहार ही हमें श्रेष्ठ बनाता है

हमारे द्वारा किये गए कार्यों का फल हमें ज़रूर मिलता है। हमारे द्वारा किये गए अच्छे कार्य हमें दूसरे लोगो की नज़रो में श्रेष्ठ बनाते हैं। हमारा व्यवहार हमें लोगो की नज़रो में इस कदर सम्मानीय बना देता है कि ज़रूरत पड़ने पर लोग हमारे साथ खड़े होते है। हमें अपने सुख दुःख में शामिल करते है।

क्या आजकल की इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में आप इस बात पर एक दम से यकीन कर सकते हैं कि हमारा व्यवहार या हमारा कोई छोटा सा काम कभी हमारी जान बचा सकता है।

एक व्यक्ति एक बर्फ की फैक्ट्री में काम करता था। एक दिन रोजाना की तरह शाम को वह घर जाने की तयारी में था। तभी फैक्ट्री में एक तकनीकी समस्या उत्पन्न हो गयी और वह उसे दूर करने में जुट गया। जब तक वह कार्य पूरा करता, तब तक अत्यधिक देर हो गयी। लाईटें बुझा दी गईं, दरवाजे सील हो गये और वह उसी प्लांट में बंद हो गया। बिना हवा व प्रकाश के पूरी रात बर्फ की फैक्ट्री में फंसे रहने के कारण उसकी मौत होना लगभग तय था।

लगभग आधा घण्टे का समय बीत गया। तभी उसने किसी को दरवाजा खोलते देखा। क्या यह एक चमत्कार था? उसने देखा कि दरवाजे पर सिक्योरिटी गार्ड टार्च लिए खड़ा है। उसने उसे बाहर निकलने में मदद की।

बाहर निकल कर उस व्यक्ति ने सिक्योरिटी से पूछा “आपको कैसे पता चला कि मै फैक्ट्री के अंदर हूँ?”

गार्ड ने उत्तर दिया – “सर, इस प्लांट में 100 लोग कार्य करते हैँ पर सिर्फ एक आप ही हैँ जो मुझे सुबह आने पर हैलो व शाम को जाते समय बाय कहते हैँ। आज सुबह आप ड्यूटी पर आये थे पर शाम को आप बाहर नहीं गए। इससे मुझे शंका हुई और मैं देखने चला आया।”

वह व्यक्ति नहीं जानता था कि उसका किसी को छोटा सा सम्मान देना कभी उसका जीवन बचाएगा। उसने प्रसन्न मन से उसका धन्यवाद किया और अपने घर चला गया।

तो मित्रों, जब भी आप किसी से मिले, गर्मजोशी से मिले और प्यारी से मुस्कान के साथ उसका सम्मान करे। कभी भी किसी से घमंड या अभिमान से बात न करें। चाहे कोई आपसे उम्र या पद में छोटा हो या बड़ा सबसे एक समान व्यवहार करे। सबका सम्मान करें। आपका ये व्यवहार लोगो कि नज़रो में आपको सबसे अलग बना देगा और लोग हर परिस्तिथि में आपके साथ रहेंगे।

👉 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान (भाग ३४)

रस्सी की तरह घिस दें—चुनौतियों के पत्थर

अन्तर्यात्रा का विज्ञान जीवन के हर झूठ से जूझ रहे योग साधकों के लिए पथ प्रदीप है। योग साधना की डगर कब किस ओर मुड़ती है, इसके प्रकाश में साफ-साफ समझा जा सकता है। साधकों की राह में आने वाले प्रश्न-कंटकों को हटाने-बीनने की पूरी व्यवस्था इसके उजाले में सम्भव है। इसकी किरणें साधकों के अन्तर्मन के अँधियारे की घुटन और घबराहट को हटाती है। इससे साधकों में अपनी साधना के लिए हिम्मत और हौसला बढ़ता है।
    
चेतना के धरातल पर देखें, तो यह पुस्तक ऐसे हिम्मती साधकों एवं महान् गुरुओं के बीच निरन्तर चलने वाला रहस्यमय वार्तालाप है। महर्षि पतंजलि एवं परम पूज्य गुरुदेव स्वयं इस योग कथा के माध्यम से अगणित साधकों की भावनाओं को सुनते हैं और उन्हें अपनी योग अनुभूतियों के अमृत रस का भागीदार बनाते हैं। इस योग कथा के शब्द तो बस उनकी विचार तरंगों के माध्यम भर हैं। इससे अधिक और कुछ भी नहीं।
    
जब साधक के सामने सवाल आता है कि आखिर यह अभ्यास क्या है और इसे करें कैसे? तो महर्षि समाधान करते हुए अगला सूत्र कहते हैं-
        
तत्र स्थितौ यत्नोऽभ्यासः॥ १/१३॥
शब्दार्थ- तत्र= उन दोनों (अभ्यास और वैराग्य) में से, स्थितौ= चित्त की स्थिति में, यत्नः= यत्न करना, अभ्यासः= अभ्यास है। यानि कि इन दोनों में, चित्त की स्थिति में (स्वयं में दृढ़ता से) प्रतिष्ठित होने का प्रयास करना अभ्यास है। अभ्यास की सामान्य महिमा से तो हममें से प्रायः सभी परिचित हैं। छोटे बच्चों और गाँव के किसानों से लेकर विशिष्टों, वरिष्ठों एवं विशेषज्ञों तक इसकी महिमा का गुणगान करते हैं। ग्रामीण जीवन में अभ्यास के बारे में एक कहावत अक्सर सुनी जाती है- करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात है सिल पर परत निसान॥ अर्थात् अभ्यास करते-करते एकदम जड़मति भी सविज्ञ-सुजान हो जाते हैं। कुछ उसी तरह से जैसे निरन्तर रस्सी की रगड़ से पाषाण पर भी निशान पड़ जाते हैं। मनुष्य की सारी क्षमताएँ उसके अभ्यास का ही फल है। यहाँ-तक कि पशु-पक्षी भी अभ्यास के बलबूते ऐसे-ऐसे करतब दिखाने लगते हैं, जिन्हें देखकर दाँतों तले उँगली दबाने का मन करता है।
    
बाहरी जीवन में, लौकिक जीवन में अभ्यास के ढेरों चमत्कार हम रोज देखते हैं। खुद की निजी जिन्दगी में भी अभ्यास के अनेकों अनुभवों को हमने जब-तब अनुभव किया है। परन्तु यह अभ्यास आन्तरिक जीवन में, आध्यात्मिक जीवन में किस तरह किया जाय, यह बात समझना अभी बाकी है। आध्यात्मिक जीवन में- आन्तरिक प्रयास। एक ऐसी होशपूर्ण कोशिश, जिसका मतलब है कि इससे पहले हम बाहर बढ़ें, हमें भीतर बढ़ना चाहिए। पहले हमें अपने केन्द्र में स्थित होने का प्रयास करना चाहिए। पहले हम अपने केन्द्र में स्थित होकर विचार करें और फिर कुछ दूसरा निर्णय करें। यह इतनी बड़ी रूपान्तरकारी घटना है कि एक बार जब हम अपने भीतर केन्द्रित हो जाते हैं, तो सारी बात ही अलग दिखाई पड़ने लगती है, सारा का सारा परिदृश्य ही बदल जाता है।

.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ ६४
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या

👉 Think! Who are you?

SOHUM (I am That): Indeed potentially I am That Absolute Truth - Consciousness incarnated in human form. Attaining higher spiritual levels are easy for me. I am a Sadhak (devotee) whom Yug Rishi has given an opportunity to do Sadhana towards Self-Realization.

SHIVOHUM (I am akin to Lord Shiva): Shiva means auspicious. Essentially I am a blessed person; so how can there be any place for evil in my thoughts, feelings or actions? If any inappropriate trait has stuck to me due to bad company/surroundings, it is foreign to my essential nature and I resolve to rid myself of this dross.

SACHCHIDANANDOHUM (My intrinsic Nature is – Truth – Consciousness - Bliss): Why should I be affected by falsehood?  Why should I chase a mirage? I am innate bliss; why should I vainly seek happiness in the transient world?

AYMATMA BRAHMA (Thy soul is a Spark of Brahma (Divine)): As the ocean is water so also is a drop. Every ray of the Sun has the qualities of its Radiator. Howsoever small the Soul confined by the ego may seem it has the capacity of uniting with its origin – Brahma. Both tap and tank are capable of giving water. So why should I remain caged in the false sense of identity with the ego and feel miserable; why not become Omnipresent?

TATVAMASI (You are That): You inherit the attributes of the Supreme Soul and the whole creation is your embodiment.

We are sparks of the Eternal and Imperishable spirit and our souls are here on their upward path to immortality. The essence of our Being is the Supreme Spirit (Parmatma – Brahma) – the source of the creative cosmic play; and we are here to awaken to the Reality of true identity.

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