गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

Deepak Sa Til Til Jalna Hi | दीपक सा तिल-तिल जलना ही | Pragya Bhajan San...



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👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ८७)

👉 पंचशीलों को अपनाएँ, आध्यात्मिक चिकित्सा की ओर कदम बढ़ाएँ

२. साधना के लिए बढ़ाएँ साहसिक कदम- आज के दौर में साधना का साहस विरले ही कर पाते हैं। इस सम्बन्ध में बातें तो बहुत होती हैं, पर प्रत्यक्ष में कर दिखाने की हिम्मत कम ही लोगों को होती है। बाकी लोग तो इधर- उधर के बहाने बनाकर कायरों की तरह मैदान छोड़कर भाग जाते हैं। ऐसे कायर और भीरू जनों की आध्यात्मिक चिकित्सा सम्भव नहीं। जो साहसी हैं वे मंत्र- जप व ध्यान आदि प्रक्रियाओं के प्रभाव से अपनी आस्थाओं, अभिरुचि व आकांक्षाओं को परिष्कृत करते हैं। वे अनुभूतियों के दिवा स्वप्नों में नहीं खोते। इस सम्बन्ध में की जाने वाली चर्चा व चिन्ता के शेखचिल्लीपन में उनका भरोसा नहीं होता।

वे तो बस अपनी आध्यात्मिक चेतना के शिखरों पर एक समर्थ व साहसी पर्वतारोही की भाँति चढ़ते हैं। बातें साधना की और कर्म स्वार्थी व अहंकारी के। ऐसे ढोंगियों और गपोड़ियों ने ही आध्यात्मिक साधनाओं को हंसी- मजाक की वस्तु बना दिया है। जो सचमुच में साधना करते हैं, वे पल- पल अपने अन्तस् को बदलने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। उनका विश्वास बातों व विचारों के परिवर्तन में नहीं अपनी गहराइयों में छुपे संस्कारों के परिवर्तन में होता है। आध्यात्मिक प्रयोगों को ये उत्खनन विधियों के रूप में इस्तेमाल करते हैं। जो इसमें जुटे हैं, वे इन कथनों की सार्थकता समझते हैं। उन्हीं में वह साहस उभरता है, जिसके बलबूते वे अपने स्वार्थ और अहंकार को पाँवों के नीचे रौंदने, कुचलने का साहस रखते हैं। कोई भी क्षुद्रता उन्हें छू नहीं पाती। कष्ट के कंटकों की परवाह किए बगैर वे निरन्तर महानता और आध्यात्मिकता के शिखरों पर चढ़ते जाते हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ १२१

👉 गुरुवर की वाणी

★ मुद्दतों से देव परम्पराएं अवरुद्ध हुई पड़ी हैं। अब हमें सारा साहस समेटकर तृष्णा और वासना के कीचड़ से बाहर निकलना होगा और वाचालता और विडम्बना से नहीं, अपनी कृतियों से अपनी उत्कृष्टता का प्रमाण देना होगा। हमारा उदाहरण ही दूसरे अनेक लोगों को अनुकरण का साहस प्रदान करेगा। यही ठोस, वास्तविक और प्रभावशाली पद्धति है।
(महाकाल का युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया)

□ गर्मी की तपन बढ़ चलने पर वर्षा की संभावना का अनुमान लगा लिया जाता है। दीपक जब बुझने को होता है, उसकी लौ जोर से चमकती है। मरण की वेला निकट आते ही रोगी में हलकी-सी चेतना लौटती है एवं लम्बी सांसें चलने लगती हैं। जब संसार में अनीति की मात्रा बढ़ती है, जागरूकता, आदर्शवादिता और साहसिकता की उमंगें अनय की असुरता के पराभव हेतु आत्माओं में जलने लगती हैं। प्रज्ञावतार की इस भूमिका को युग परिवर्तन की वेला में ज्ञानवानों की पैनी दृष्टि सरलतापूर्वक देख सकती है।
(प्रज्ञा अभियान-1983, जुलाई-17)


■ सत्साहस अपनाने की गरिमा तो सदा ही रही है और रहेगी, पर इस दिशा में बढ़ने, सोचने वालों में से अत्यधिक भाग्यवान् वे हैं, जो किसी महान् अवसर के सामने आते ही उसे हाथ से न जाने देने की तत्परता बरत सके। बड़प्पन न बड़ा बनने में, न संचय में और न उपभोग में है। बड़प्पन एक दृष्टिकोण है, जिसमें सदा ऊंचा उठने, आगे बढ़ने, रास्ता बनाने और जो श्रेष्ठ है उसी को अपनाने की उमंग उठती और हिम्मत बंधती है।

(प्रज्ञा अभियान का दर्शन, स्वरूप कार्यक्रम-18)

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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