मंगलवार, 3 मार्च 2020
👉 आप के निमार्ण-कार्य (भाग १)
मानव जीवन के यापन के अनेक भेद-प्रभेद हैं। उनमें नाना प्रकार के कार्य हैं। किंतु एक तत्व प्रत्येक में एक जैसा ही मिलता है। वह है समय का सदुपयोग। कुछ का सम्पूर्ण जीवन खाने कमाने में ही व्यय होता है। कुछ आमोद-प्रमोद ओर मनोरंजन प्रधान जीवन को ही सर्वोपरि मानते हैं। किसी का समय ज्ञान की वृद्धि, वृद्धि की प्रखरता, अध्ययन और आत्मोन्नति में बीतता है।
वास्तव में हमें यह प्रतीत नहीं कि हमें क्या निर्माण कार्य करना है। जीवन तो दीर्घ है। पूर्ण जीवन में हमें कोई ऐसा महान कार्य कर डालना है कि हमारी स्मृति सदा सर्वदा के लिए अमिट बनी रहे। हम में से अधिकाँश ऐसे हैं जो कुछ करना चाहते हैं। उनके मन में लगन है, उत्साह और पर्याप्त प्रेरणा है किन्तु उन्हें निर्माण कार्यों का ज्ञान नहीं है।
निर्माण कार्य! आप गहराई से सोचिये कि संसार में करने के योग्य कितने महत्वपूर्ण कार्य आपके निमित्त रखे हैं? आप जीवन तथा समाज के जिस पक्ष की ओर जायं और निर्माण कार्य मिल जायेंगे, सर्वप्रथम आपको “स्व” अर्थात् स्वयं अपना निर्माण करना है। आप कहेंगे हम तो पहले से ही निर्मित हैं, हम अपने क्या बना सकते हैं? आपके निर्माण के लिए अत्यन्त विस्तृत क्षेत्र है।
आत्म-निर्माण में सर्वप्रथम अपने स्वभाव का निर्माण है। आपको यह देखना है कि कौन कौन-सी दुष्ट आदतें आपको छोड़नी हैं? उनके स्थान पर कौन-कौन शुभ और सात्विक आदतों का विकास करना है? अच्छी आदतों से उत्तम भाव का निर्माण होता है और मनुष्य का दृष्टिकोण बनता है। जैसा दृष्टिकोण होता है, वैसा ही आनन्द मनुष्य को प्राप्त होता है।
.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1950 पृष्ठ 13
वास्तव में हमें यह प्रतीत नहीं कि हमें क्या निर्माण कार्य करना है। जीवन तो दीर्घ है। पूर्ण जीवन में हमें कोई ऐसा महान कार्य कर डालना है कि हमारी स्मृति सदा सर्वदा के लिए अमिट बनी रहे। हम में से अधिकाँश ऐसे हैं जो कुछ करना चाहते हैं। उनके मन में लगन है, उत्साह और पर्याप्त प्रेरणा है किन्तु उन्हें निर्माण कार्यों का ज्ञान नहीं है।
निर्माण कार्य! आप गहराई से सोचिये कि संसार में करने के योग्य कितने महत्वपूर्ण कार्य आपके निमित्त रखे हैं? आप जीवन तथा समाज के जिस पक्ष की ओर जायं और निर्माण कार्य मिल जायेंगे, सर्वप्रथम आपको “स्व” अर्थात् स्वयं अपना निर्माण करना है। आप कहेंगे हम तो पहले से ही निर्मित हैं, हम अपने क्या बना सकते हैं? आपके निर्माण के लिए अत्यन्त विस्तृत क्षेत्र है।
आत्म-निर्माण में सर्वप्रथम अपने स्वभाव का निर्माण है। आपको यह देखना है कि कौन कौन-सी दुष्ट आदतें आपको छोड़नी हैं? उनके स्थान पर कौन-कौन शुभ और सात्विक आदतों का विकास करना है? अच्छी आदतों से उत्तम भाव का निर्माण होता है और मनुष्य का दृष्टिकोण बनता है। जैसा दृष्टिकोण होता है, वैसा ही आनन्द मनुष्य को प्राप्त होता है।
.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1950 पृष्ठ 13
👉 श्वास
श्वास की डोर से जीवन की माला गुँथी है। जिन्दगी का हर फूल इससे जुड़ा और इसी में पिरोया है। श्वासों की लय और लहरें इन्हें मुस्कराहटें देती हैं। इनमें व्यतिरेक, व्यवधान, बाधाएँ-विरोध और गतिरोध होने लगे तो सब कुछ अनायास ही मुरझाने और मरने लगता है। शरीर हो या मन दोनों ही श्वासों की लय से लयबद्ध होते हैं। इसकी लहरें ही इन्हें सींचती हैं, जीवन देती हैं। यहाँ तक कि सर्वथा मुक्त एवं सर्वव्यापी आत्मा का प्रकाश भी श्वासों की डोर के सहारे ही जीवन में उतरता है।
श्वासों की लय बदलते ही जीवन के रंग-रूप अनायास ही बदलने लगते हैं। क्रोध, घृणा, करुणा, वैर, राग-रोष, ईर्ष्या-अनुराग प्रकारान्तर से श्वास की लय की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ ही हैं। यह बात कहने-सुनने की नहीं, अनुभव करने की है। यदि महीने भर की सभी भाव दशाओं एवं अवस्थाओं का चार्ट बनाया जाय तो जरूर पता चल जाएगा कि श्वास की कौन सी लय हमें शान्ति व विश्रान्ति देती है? किस लय में मौन और शान्त, सुव्यवस्थित होने का अनुभव होता है? किस लय के साथ अनायास ही जीवन में आनन्द घुलने लगता है? ध्यान और समाधि भी श्वासों की लय की परिवर्तनशीलता ही है।
श्वास की गति वलय को जागरूक हो परिवर्तित करने की कला ही तो प्राणायाम है। यह मानव द्वारा की गयी अब तक की सभी खोजों में महानतम है। यहाँ तक कि चाँद और मंगल ग्रह पर मनुष्य के पहुँच जाने से भी महान्। क्योंकि शरीर से मनुष्य कहीं भी जा पहुँचे, वह जस का तस रहता है। परन्तु श्वास की लय के परिवर्तन से तो उसका जीवन ही बदल जाता है। हालांकि यह लय परिवर्तन होना चाहिए आन्तरिक होशपूर्वक, जो प्राणायाम की किसी बँधी-बँधायी विधि द्वारा सम्भव नहीं है। यदि विधि ही खोजनी हो, तो प्रत्येक श्वास के साथ होशपूर्वक रहना होगा। और साथ ही श्वास-श्वास के साथ भगवन्नाम के जप का अभ्यास करना होगा। ऐसा हो तो श्वासों की लय के साथ जीवन की लय बदल जाती है।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १९९
श्वासों की लय बदलते ही जीवन के रंग-रूप अनायास ही बदलने लगते हैं। क्रोध, घृणा, करुणा, वैर, राग-रोष, ईर्ष्या-अनुराग प्रकारान्तर से श्वास की लय की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ ही हैं। यह बात कहने-सुनने की नहीं, अनुभव करने की है। यदि महीने भर की सभी भाव दशाओं एवं अवस्थाओं का चार्ट बनाया जाय तो जरूर पता चल जाएगा कि श्वास की कौन सी लय हमें शान्ति व विश्रान्ति देती है? किस लय में मौन और शान्त, सुव्यवस्थित होने का अनुभव होता है? किस लय के साथ अनायास ही जीवन में आनन्द घुलने लगता है? ध्यान और समाधि भी श्वासों की लय की परिवर्तनशीलता ही है।
श्वास की गति वलय को जागरूक हो परिवर्तित करने की कला ही तो प्राणायाम है। यह मानव द्वारा की गयी अब तक की सभी खोजों में महानतम है। यहाँ तक कि चाँद और मंगल ग्रह पर मनुष्य के पहुँच जाने से भी महान्। क्योंकि शरीर से मनुष्य कहीं भी जा पहुँचे, वह जस का तस रहता है। परन्तु श्वास की लय के परिवर्तन से तो उसका जीवन ही बदल जाता है। हालांकि यह लय परिवर्तन होना चाहिए आन्तरिक होशपूर्वक, जो प्राणायाम की किसी बँधी-बँधायी विधि द्वारा सम्भव नहीं है। यदि विधि ही खोजनी हो, तो प्रत्येक श्वास के साथ होशपूर्वक रहना होगा। और साथ ही श्वास-श्वास के साथ भगवन्नाम के जप का अभ्यास करना होगा। ऐसा हो तो श्वासों की लय के साथ जीवन की लय बदल जाती है।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १९९
👉 First Give, Then Gain
Great personalities always appeal and motivate people in their contact to give something for noble causes. They themselves sacrifice everything they had. This is what makes them great. Thorough pondering over this fact has taught me that there is no religious duty greater than giving or sacrificing (for others’ welfare), which we can do any time (provided we have the will and attitude). There is no better mode than renunciation (of selfish possessions and attachments) for elimination of evil tendencies and untoward accumulation in the mind.
If you want to acquire precious knowledge, attain people’s respect, achieve something great, then first learn to give what best you can for the society, for altruistic service. Donate your talents, intellect, time, labor, wealth, whatever potentials or resources you have for the betterment of the world…; you will get manifold of that in return… Gautam Buddha had renounced the royal throne; Gandhi had left the brilliant career, wealth, comforts… As the world has witnessed, what they were rewarded in return was indeed immeasurable,immortal…
It is worth recalling the beautiful verse of renowned poet Rabindranath Tagore here, which says – He spread his hands open and asked for something… I took out a tiny piece of grain from my bag and kept on His palm. At the end of the day, I found a golden piece of same size in my bag. I cried – why didn’t I empty my bag for Him, which would have transformed me, the poor man into a King of Wealth?
📖 Akhand Jyoti, March. 1940
If you want to acquire precious knowledge, attain people’s respect, achieve something great, then first learn to give what best you can for the society, for altruistic service. Donate your talents, intellect, time, labor, wealth, whatever potentials or resources you have for the betterment of the world…; you will get manifold of that in return… Gautam Buddha had renounced the royal throne; Gandhi had left the brilliant career, wealth, comforts… As the world has witnessed, what they were rewarded in return was indeed immeasurable,immortal…
It is worth recalling the beautiful verse of renowned poet Rabindranath Tagore here, which says – He spread his hands open and asked for something… I took out a tiny piece of grain from my bag and kept on His palm. At the end of the day, I found a golden piece of same size in my bag. I cried – why didn’t I empty my bag for Him, which would have transformed me, the poor man into a King of Wealth?
📖 Akhand Jyoti, March. 1940
👉 क्रोध के दो मिनट
एक युवक ने विवाह के बाद दो साल बाद परदेस जाकर व्यापार की इच्छा पिता से कही. पिता ने स्वीकृति दी तो वह अपनी गर्भवती को माँ-बाप के जिम्मे छोड़कर व्यापार को चला गया परदेश में मेहनत से बहुत धन कमाया. 17 वर्ष धन कमाने में बीते गए तो सन्तुष्टि हुई और वापस घर लौटने की इच्छा हुई. पत्नी को पत्र लिखकर आने की सूचना दी और जहाज में बैठ गया।
उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी मन से बैठा था. सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि इस देश में ज्ञान की कोई कद्र नही है। मैं यहां ज्ञान के सूत्र बेचने आया था पर कोई लेने को तैयार नहीं है. सेठ ने सोचा इस देश में मैने तो बहुत धन कमाया. यह तो मेरी कर्मभूमि है. इसका मान रखना चाहिए. उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई. उस व्यक्ति ने कहा- मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं है।
सेठ को सौदा महंगा लग तो रहा था लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए 500 मुद्राएं दे दीं. व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सूत्र दिया- कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रूककर सोच लेना. सेठ ने सूत्र अपनी किताब में लिख लिया। कई दिनों की यात्रा के बाद रात्रि के समय अपने नगर को पहुंचा. उसने सोचा इतने सालों बाद घर लौटा हूं क्यों न चुपके से बिना खबर दिए सीधे पत्नी के पास पहुंच कर उसे आश्चर्य उपहार दूं।
घर के द्वारपालों को मौन रहने का इशारा करके सीधे अपने पत्नी के कक्ष में गया तो वहां का नजारा देखकर उसके पांवों के नीचे की जमीन खिसक गई. पलंग पर उसकी पत्नी के पास एक युवक सोया हुआ था. अत्यंत क्रोध में सोचने लगा कि मैं परदेस में भी इसकी चिंता करता रहा और ये यहां अन्य पुरुष के साथ है। दोनों को जिन्दा नही छोड़ूंगा. क्रोध में तलवार निकाल ली. वार करने ही जा रहा था कि उतने में ही उसे 500 अशर्फियों से प्राप्त ज्ञान सूत्र याद आया- कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट सोच लेना. सोचने के लिए रूका. तलवार पीछे खींची तो एक बर्तन से टकरा गई।
बर्तन गिरा तो पत्नी की नींद खुल गई. जैसे ही उसकी नजर अपने पति पर पड़ी वह ख़ुश हो गई और बोली- आपके बिना जीवन सूना सूना था. इन्तजार में इतने वर्ष कैसे निकाले यह मैं ही जानती हूं। सेठ तो पलंग पर सोए पुरुष को देखकर कुपित था. पत्नी ने युवक को उठाने के लिए कहा- बेटा जाग. तेरे पिता आए हैं. युवक उठकर जैसे ही पिता को प्रणाम करने झुका माथे की पगड़ी गिर गई. उसके लम्बे बाल बिखर गए।
सेठ की पत्नी ने कहा- स्वामी ये आपकी बेटी है. पिता के बिना इसकी मान को कोई आंच न आए इसलिए मैंने इसे बचपन से ही पुत्र के समान ही पालन पोषण और संस्कार दिए हैं। यह सुनकर सेठ की आंखों से आंसू बह निकले. पत्नी और बेटी को गले लगाकर सोचने लगा कि यदि आज मैने उस ज्ञानसूत्र को नहीं अपनाया होता तो जल्दबाजी में कितना अनर्थ हो जाता. मेरे ही हाथों मेरा निर्दोष परिवार खत्म हो जाता।
ज्ञान का यह सूत्र उस दिन तो मुझे महंगा लग रहा था लेकिन ऐसे सूत्र के लिए तो 500 अशर्फियां बहुत कम हैं. ज्ञान अनमोल है।
इस कथा का सार यह है कि जीवन के दो मिनट जो दुःखों से बचाकर सुख की बरसात कर सकते हैं. वे क्रोध के दो मिनट हैं।
भागवत में भी यही संदेश दिया गया है. कहा गया है कि यदि तुम्हारे काम से किसी का अपकार होता है तो उस काम को एक दिन के लिए टाल दो. यदि उपकार होता हो तो तुरंत करो ताकि कहीं उपकार का विचार न बदल जाए।
उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी मन से बैठा था. सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि इस देश में ज्ञान की कोई कद्र नही है। मैं यहां ज्ञान के सूत्र बेचने आया था पर कोई लेने को तैयार नहीं है. सेठ ने सोचा इस देश में मैने तो बहुत धन कमाया. यह तो मेरी कर्मभूमि है. इसका मान रखना चाहिए. उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई. उस व्यक्ति ने कहा- मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं है।
सेठ को सौदा महंगा लग तो रहा था लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए 500 मुद्राएं दे दीं. व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सूत्र दिया- कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रूककर सोच लेना. सेठ ने सूत्र अपनी किताब में लिख लिया। कई दिनों की यात्रा के बाद रात्रि के समय अपने नगर को पहुंचा. उसने सोचा इतने सालों बाद घर लौटा हूं क्यों न चुपके से बिना खबर दिए सीधे पत्नी के पास पहुंच कर उसे आश्चर्य उपहार दूं।
घर के द्वारपालों को मौन रहने का इशारा करके सीधे अपने पत्नी के कक्ष में गया तो वहां का नजारा देखकर उसके पांवों के नीचे की जमीन खिसक गई. पलंग पर उसकी पत्नी के पास एक युवक सोया हुआ था. अत्यंत क्रोध में सोचने लगा कि मैं परदेस में भी इसकी चिंता करता रहा और ये यहां अन्य पुरुष के साथ है। दोनों को जिन्दा नही छोड़ूंगा. क्रोध में तलवार निकाल ली. वार करने ही जा रहा था कि उतने में ही उसे 500 अशर्फियों से प्राप्त ज्ञान सूत्र याद आया- कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट सोच लेना. सोचने के लिए रूका. तलवार पीछे खींची तो एक बर्तन से टकरा गई।
बर्तन गिरा तो पत्नी की नींद खुल गई. जैसे ही उसकी नजर अपने पति पर पड़ी वह ख़ुश हो गई और बोली- आपके बिना जीवन सूना सूना था. इन्तजार में इतने वर्ष कैसे निकाले यह मैं ही जानती हूं। सेठ तो पलंग पर सोए पुरुष को देखकर कुपित था. पत्नी ने युवक को उठाने के लिए कहा- बेटा जाग. तेरे पिता आए हैं. युवक उठकर जैसे ही पिता को प्रणाम करने झुका माथे की पगड़ी गिर गई. उसके लम्बे बाल बिखर गए।
सेठ की पत्नी ने कहा- स्वामी ये आपकी बेटी है. पिता के बिना इसकी मान को कोई आंच न आए इसलिए मैंने इसे बचपन से ही पुत्र के समान ही पालन पोषण और संस्कार दिए हैं। यह सुनकर सेठ की आंखों से आंसू बह निकले. पत्नी और बेटी को गले लगाकर सोचने लगा कि यदि आज मैने उस ज्ञानसूत्र को नहीं अपनाया होता तो जल्दबाजी में कितना अनर्थ हो जाता. मेरे ही हाथों मेरा निर्दोष परिवार खत्म हो जाता।
ज्ञान का यह सूत्र उस दिन तो मुझे महंगा लग रहा था लेकिन ऐसे सूत्र के लिए तो 500 अशर्फियां बहुत कम हैं. ज्ञान अनमोल है।
इस कथा का सार यह है कि जीवन के दो मिनट जो दुःखों से बचाकर सुख की बरसात कर सकते हैं. वे क्रोध के दो मिनट हैं।
भागवत में भी यही संदेश दिया गया है. कहा गया है कि यदि तुम्हारे काम से किसी का अपकार होता है तो उस काम को एक दिन के लिए टाल दो. यदि उपकार होता हो तो तुरंत करो ताकि कहीं उपकार का विचार न बदल जाए।
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