शनिवार, 5 नवंबर 2016

👉 आज का सद्चिंतन Aaj Ka Sadchintan 6 Nov 2016


👉 समाधि के सोपान Samadhi Ke Sopan (भाग 70)

🔵 गुरुदेव के इन शब्दों को दिन पर दिन ध्यान की घड़ियों में हुये गुरु शिष्य के वास्तविक संबंध के विषय में मैं सचेत हो सका। एक अविचल और शाश्वत अनुभूति मेरी अपनी हो गई तथा मैंने यह जान लिया कि दूर या पास, जीवन या मृत्यु सभी में एक महान जीवन्त अस्तित्व सदैव मेरे निकट है। एक अस्तित्व जिसमें अलगाव नहीं है। और गुरुदेव के पास मैं रो पड़ा। तथा उस समय एक महान ज्योति ने मुझे आवृत कर लिया।

🔴 ''अपनी कृपा से आपने मुझे अंधकार से बहार निकाला है। मैं कुछ भी नहीं था किन्तु आपने मुझे उसी रूप में स्वीकार किया और एक ऐसा भक्त बना दिया जो कि अपने अन्तर्निहित असीम शक्ति के संबंध में सजग है। जबसे मैंने आपकी वाणी सुनी और ऐसे सुनी जैसे कभी न सुने हुए तीव्र संगीत को सुन कर कोई व्यक्ति नशे में धुत हो जाय। किन्तु मेरी स्वयं की प्रतिक्रिया कोलाहलपूर्ण और उबलनेवाली थी तथा जो मैंने सुना उसे समझा नहीं। सामने आपके मुख पर आपकी ज्योति इतनी प्रचण्ड थी कि मैं आपको उस रूप में न देख सका, जैसे कि आप हैं। अत: अज्ञानपूर्वक मैंने उस खजाने को जो आपने मुझे इतनी उदारतापूर्वक दिया था अमर्यादित रूप से नष्ट कर दिया तथा मैंने जघन्य पापी के समान आपकी उपस्थिति में पाप किया।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 मैं क्या हूँ? What Am I? (भाग 20)

🌞 दूसरा अध्याय

🔴 अब हमारा प्रयत्न यह होगा कि मानसिक लोक में प्रवेश कर चलो और वहाँ बुद्घि के दिव्य चक्षुओं द्वारा आत्मा का दर्शन और अनुभव करो। यही एक मार्ग दुनियाँ के सम्पूर्ण साधकों का है। तत्त्व दर्शन मानस लोक में प्रवेश करके बुद्घि की सहायता द्वारा ही होता है। इसके अतिरिक्त आज तक किसी ने कोई और मार्ग अभी तक नहीं खोज पाया है। प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ही योग की उच्च सीढ़ियाँ हैं। आध्यात्मिक साधक, योगी, यम, नियम, आसन, प्राणायाम अनेक प्रकार की क्रियाएँ करते हें। हठ योगी नेति, धोति, वस्ति, वज्रोली आदि करते हैं। अन्य मतावलम्बियों की साधनाएँ अन्य प्रकार की हैं। यह सब शारीरिक कठिनाइयों को दूर करने के लिए हैं।

🔵 शरीर को स्वस्थ रखना इसलिए जरूरी समझा जाता है कि मानसिक अभ्यासों में गड़बड़ न पड़े। हम अपने साधकों को स्वस्थ शरीर रखने का उपदेश करते हैं। आज की परिस्थितियों में उन उग्र शारीरिक व्यायामों की नकल करने में हमें कोई विशेष लाभ प्रतीत नहीं होता। धुएँ से भरे हुए शहरी वायुमण्डल में रहने वाले व्यक्ति को उग्र प्राणायाम करने की शिक्षा देना उसके साथ अन्याय करना है।

🔴 फल और मेवे खाकर पर्वत प्रदेशीय नदियों का अमृत जल पीने वाले और इन्द्रिय भोगों से दूर रहने वाले स्वस्थ साधक हठ योग के जिन कठोर व्यायामों को करते हैं, उनकी नकल करने के लिए यदि तुमसे कहें, तो हम एक प्रकार का पाप करेंगे और बिना वास्तविकता को जाने उन शारीरिक तपों में उलझने वाले साधक उस मेढकी का उदाहरण बनेंगे जो घोड़ों को नाल ठुकवाते देखकर आपे से बाहर हो गई थी और अपने पैरों में भी वैसी ही कील ठुकवा कर मर गई थी।

🔵 स्वस्थ रहने के साधारण नियमों को सब लोग जानते हैं। उन्हें ही कठोरतापूर्वक पालन करना चाहिए। यदि कोई रोग हो तो किसी कुशल चिकित्सक से इलाज कराना चाहिए। इस सम्बन्ध में एक स्वतंत्र पुस्तक हम भी प्रकाशित करेंगे। पर इस साधन के लिए किसी ऐसी शारीरिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है, जिसका साधन चिरकाल में पूरा हो सकता हो। स्वस्थ रहो, प्रसन्न रहो, बस इतना ही काफी है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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