ईश्वर ज्वाला है और आत्मा चिंगारी
ईश्वर वह चेतना शक्ति है जो ब्रह्माण्डों के भीतर और बाहर जो कुछ है उस सब में संव्याप्त है। उसके अगणित क्रिया-कलापों में एक कार्य इस प्रकृति का संचालन भी है। प्रकृति के अन्तर्गत जड़-पदार्थ और चेतना के कलेवर शरीर इन दोनों को सम्मिलित कर सकते हैं। प्रकृति और पुरुष का युग्म इसी दृष्टि से निरूपित हुआ है। जड़ और चेतन का सम्मिश्रण ही अपना यह विश्व है। इस विश्व की परिधि में ही हमारी इच्छाएं, भाव-सम्वेदनाएं, विचारणाएं एवं गति-विधियां सीमित हैं। मस्तिष्क का निर्माण जिन तत्वों से हुआ है उसके लिए इतना ही सम्भव है कि इस ज्ञात एवं अविज्ञात विश्व-ब्रह्माण्ड की परिधि में ही सोचे, निष्कर्ष निकाले और जो कुछ सम्भव हो वह उसी परिधि में रहकर करे।
विज्ञान अनुसंधान के आधार पर प्रकृति के थोड़े से रहस्यों का उद्घाटन अभी सम्भव हो सकता है। जो जानना शेष है उसकी तुलना में उपलब्ध जानकारियां नगण्य हैं। अणु ऊर्जा अपने समय की बड़ी उपलब्धि मानी जाती है, पर मूर्धन्य विज्ञानवेत्ताओं का कथन है कि सूक्ष्मता की जितनी गहरी परतों में प्रवेश किया जायेगा उतनी ही अधिक प्रखरता का रहस्य विदित होता जायेगा। ढेले की तुलना में अणु शक्ति का चमत्कार अत्यधिक है। ठीक इसी प्रकार समूचे अणु-पिण्ड की तुलना में उसका मध्यवर्ती नाभिक, न्यूक्लियस असंख्य गुनी शक्ति छिपाये बैठा है। अणु को सौर-मण्डल कहा जाय तो उसका मध्यवर्ती नाभिक सूर्य कहा जायेगा। सौर-मण्डल के सभी ग्रह-उपग्रहों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से सूर्य से ही अनुदान मिलते हैं और उसी आधार पर सौर-मण्डल का वर्तमान ढांचा इस रूप में चल रहा है। यदि सूर्य नष्ट हो जायेगा तो फिर सौर-मण्डल का सीराजा ही बिखर जायेगा। तब यह पता भी न चलेगा कि प्रस्तुत ग्रह-उपग्रह अन्तरिक्ष में न जाने कहां विलीन हो जायेंगे और उनका न जाने क्या अन्त होगा?
अणु का मध्यवर्ती नाभिक कितना शक्तिशाली है और उसकी क्षमता जैसे अणु परिवार का संचालन कर रही है, इस बारीकी पर विचार करने मात्र से विज्ञानी मस्तिष्क चकित रह जाता है। कौन कहे—न्यूक्लियस के भीतर भी और कोई शक्ति परिवार काम कर रहा हो और फिर उसके भीतर भी कोई और जादूगरी बसी हुई हो। प्रतिविश्व—ऐन्टीयुनिवर्स—प्रतिकण एन्टीएटम—की चर्चा इन दिनों जोरों पर है। कहा जाता है कि अपनी दुनिया के ठीक पिछवाड़ —बिलकुल उससे सटी हुई एक और जादुई दुनिया है। उस अविज्ञात की सामर्थ्य इतनी अधिक कूती जाती है जितनी कि शरीर की तुलना में आत्मा की। प्रतिकण और प्रतिविश्व के रहस्यों का पता चल जाय और उस पर किसी प्रकार अधिकार हो जाय तो फिर समझना चाहिए कि अभी प्राणि जगत का अधिपति कहलाने वाला मनुष्य तभी सच्चे अर्थों में सृष्टि का अधिपति कहलाने का दावा कर सकेगा।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति पृष्ठ ७३
परम पूज्य गुरुदेव ने यह पुस्तक 1979 में लिखी थी