विद्वान इब्सन का कथन है - शक्तिशाली मनुष्य वह है, जो अकेला है। कमजोर वह है, जो दूसरों का मुँह ताकता है। अकेले का अर्थ है "आत्म-निर्भर, अपने पैरों पर खड़े होने वाला"।
यहाँ अकेलापन असहयोगी के अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुआ है। इब्सन का तात्पर्य यह है कि जो अपनी जिम्मेदारी को समझता है, अपने कर्तव्यों को निबाहता है, उसे प्रगति के लिये आवश्यक आधार अपने भीतर से ही मिल जाता है, बहार के साधन उसके चुम्बकत्व से खींचकर अनायास ही इकट्ठे हो जाते हैं।
कन्फ्यूसियस ने कहा है महान व्यक्ति अपनी आवश्यक वस्तुओं को भीतर ढूंढ़ते हैं, जबकि कमजोर उन्हें पाने के लिये दूसरों का सहारा तकते हुए भटकते रहते हैं। तत्त्वदर्शी और मनीषी सदा से ही कहते रहे हैं - जो अपनी सहायता आप करता है, उसी कि सहायता करने परमात्मा भी आता है।
जिसने अपने ऊपर से भरोसा खो दिया उसे इश्वर कि ऑंखें भी अविश्वासी ठहरती हैं। परमात्मा कि निकटतम और अधिकतम सत्ता अपने भीतर ही पाई जा सकी है। जो उसे नहीं देखता वह बहार कहाँ पर ऐसा अवलंबन प्राप्त कर सकेगा जो उसे विपत्ति से बचाने और आगे बढ़ाने में सहायता कर सके? अपनी क्षमता और सम्भावना पर से विश्वास उठा लेना परमात्मा कि सत्ता और महत्ता को अस्वीकार करना है।
ऐसी अनास्थावादी मनोभूमि जहाँ हो वहाँ हमें घिनौने किस्म कि नास्तिकता कि गंध मिलेगी।
✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 चेतन, अचेतन एवं सुपर चेतन मन वांग्मय 22- पृष्ठ 3.1
यहाँ अकेलापन असहयोगी के अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुआ है। इब्सन का तात्पर्य यह है कि जो अपनी जिम्मेदारी को समझता है, अपने कर्तव्यों को निबाहता है, उसे प्रगति के लिये आवश्यक आधार अपने भीतर से ही मिल जाता है, बहार के साधन उसके चुम्बकत्व से खींचकर अनायास ही इकट्ठे हो जाते हैं।
कन्फ्यूसियस ने कहा है महान व्यक्ति अपनी आवश्यक वस्तुओं को भीतर ढूंढ़ते हैं, जबकि कमजोर उन्हें पाने के लिये दूसरों का सहारा तकते हुए भटकते रहते हैं। तत्त्वदर्शी और मनीषी सदा से ही कहते रहे हैं - जो अपनी सहायता आप करता है, उसी कि सहायता करने परमात्मा भी आता है।
जिसने अपने ऊपर से भरोसा खो दिया उसे इश्वर कि ऑंखें भी अविश्वासी ठहरती हैं। परमात्मा कि निकटतम और अधिकतम सत्ता अपने भीतर ही पाई जा सकी है। जो उसे नहीं देखता वह बहार कहाँ पर ऐसा अवलंबन प्राप्त कर सकेगा जो उसे विपत्ति से बचाने और आगे बढ़ाने में सहायता कर सके? अपनी क्षमता और सम्भावना पर से विश्वास उठा लेना परमात्मा कि सत्ता और महत्ता को अस्वीकार करना है।
ऐसी अनास्थावादी मनोभूमि जहाँ हो वहाँ हमें घिनौने किस्म कि नास्तिकता कि गंध मिलेगी।
✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 चेतन, अचेतन एवं सुपर चेतन मन वांग्मय 22- पृष्ठ 3.1