जो काम अपने हाथ में लो उसी में सबके हित का भाव ढूँढते रहो। जहाँ भी दूसरे की भलाई की आवश्यकता समझ में आये अपना कंधा लगाकर सहयोग और सहानुभूति प्रकट करो। संसार आपकी भलाई भूल नहीं सकेगा। सभी आपको आदर की, प्यार की दृष्टि से देखेंगे। आप अपने हृदय में विश्वात्मा को स्थापित करके तो देखिए।
अच्छाई से बुराई की ओर पलायन का प्रमुख कारण है आज की अर्थ प्रधान मनोवृत्ति। हम हर काम पैसे के बल पर करना चाहते हैं। पैसा कमाना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, धर्म करना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, स्वस्थ रहना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, सुख-शान्ति, सम्मान भी चाहते हैं तो पैसे के बल पर-मानो पैसा एक ऐसा वरदान है, जिसके मिलते ही हमारी सारी कामनाएँपूर्ण हो जाएँगी, परन्तु हम यह कभी नहीं सोचते कि जिनके पास असंख्य धन है, क्या उन्हें यह सब कुछ प्राप्त है? क्या उनकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो गई हैं? क्या वे अपने जीवन में पूरी तरह से सुखी और संतुष्ट हैं?
जो भूतकाल में कहा गया वह पूर्ण सत्य था, उसमें हेर-फेर की गुंजायश नहीं, ऐसा दुराग्रह हमें सत्य के नवीनतम प्रकाश से वंचित कर देगा और दकियानूसों, कूप मंडूक बनकर रह जायेंगे। सत्य किसी सीमा बंधन में बँधा हुआ नहीं है। मनुष्य सर्वांगपूणर्् नहीं है और न उसके मस्तिष्क की परिधि ही इतनी बड़ी है कि इस विशाल विश्व में संव्याप्त सत्य की समस्त किरणों का एक ही समय अंतिम रूप से अवगाहन कर सके।
अच्छाई से बुराई की ओर पलायन का प्रमुख कारण है आज की अर्थ प्रधान मनोवृत्ति। हम हर काम पैसे के बल पर करना चाहते हैं। पैसा कमाना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, धर्म करना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, स्वस्थ रहना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, सुख-शान्ति, सम्मान भी चाहते हैं तो पैसे के बल पर-मानो पैसा एक ऐसा वरदान है, जिसके मिलते ही हमारी सारी कामनाएँपूर्ण हो जाएँगी, परन्तु हम यह कभी नहीं सोचते कि जिनके पास असंख्य धन है, क्या उन्हें यह सब कुछ प्राप्त है? क्या उनकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो गई हैं? क्या वे अपने जीवन में पूरी तरह से सुखी और संतुष्ट हैं?
जो भूतकाल में कहा गया वह पूर्ण सत्य था, उसमें हेर-फेर की गुंजायश नहीं, ऐसा दुराग्रह हमें सत्य के नवीनतम प्रकाश से वंचित कर देगा और दकियानूसों, कूप मंडूक बनकर रह जायेंगे। सत्य किसी सीमा बंधन में बँधा हुआ नहीं है। मनुष्य सर्वांगपूणर्् नहीं है और न उसके मस्तिष्क की परिधि ही इतनी बड़ी है कि इस विशाल विश्व में संव्याप्त सत्य की समस्त किरणों का एक ही समय अंतिम रूप से अवगाहन कर सके।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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