मंगलवार, 21 नवंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 21 Nov 2023

🔶 चोट खाया हुआ साँप आक्रमणकारी पर ऐसी फुँकार मार कर दौड़ता है कि उसके होश छूट जाते हैं, बचाव के लिए भागना ही पड़ता है। साँसारिक व्यथाओं से विक्षुब्ध मनुष्य की भी ऐसी ही स्थिति होती है जब मनुष्य को पीड़ायें चारों ओर से घेर लेती हैं और कोई सहारा नहीं सूझता तो वह निष्ठापूर्वक अपने परमेश्वर को पुकारता है। हार खाये हुए मनुष्य की कातर-पुकार से परमात्मा का आसन हिल जाता है और उन्हें सारी व्यवस्था छोड़कर भक्त की सेवा के लिए भागना पड़ता है।

🔷 सफलता-असफलता, उन्नति और अवनति हानि और लाभ, सुख और दुःख आदि मानव-जीवन के जो भी संयोग हैं, वे उसके व्यक्तित्व की क्षमता पर निर्भर करते हैं। जिसने जिस अनुपात से अनुकूल और जिसने अपने व्यक्तित्व को जितना निकृष्ट, निर्बल और निस्तेज बनाया हुआ है वह उसकी प्रतिकूल सम्भावनाओं का भागी बनता है।

🔶 जीवन में अभ्युदय पाने, ऊँचे उठने और सौभाग्यपूर्ण सफलताओं का वरण करने के लिए मनुष्य को अपना व्यक्तित्व पूर्ण, परिष्कृत एवं प्रतिभावान बनाना ही होगा! मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण बाह्य परिस्थितियों पर उतना निर्भर नहीं करता, जितना कि अपने प्रति उसके निजी दृष्टिकोण पर। जो व्यक्ति अपने प्रति जिस प्रकार की धारणा रखता है, वह उसी प्रकार का बन जाता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 धुलाई और रंगाई

मित्रों ! धुलाई के बिना रंगाई निखरती कहाँ है? गलाई के बिना ढलाई किसने कर दिखाई है? मल- मूत्र से सने बच्चे को माता तब ही गोद में उठाती है, जब उसे नहला- धुला कर साफ- सुथरा बना देती है। मैला- गंदला पानी पीने के काम कहाँ आता है? मैले दर्पण में छवि कहाँ दीख पड़ती है? जलते अंगारे पर यदि राख की परत जम जाए, तो न उसमें गर्मी का आभास होता है, न चमक का। बादलों से ढक जाने पर सूर्य- चन्द्र तक अपना प्रकाश धरती तक नहीं पहुँचा पाते। कुहासा छा जाने पर दिन में भी लगभग रात जैसा अंधेरा छा जाता है और कुछ दूरी की वस्तुएँ तक सूझ नहीं पड़तीं।

इन्हीं सब उदाहरणों को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि मनुष्य यदि लोभ की हथकड़ियों, मोह की बेड़ियों और अहंकार की जंजीरों में जकड़ा हुआ रहे, तो उसकी समस्त क्षमताएँ नाकारा बन कर रह जाएँगी। बँधुआ मजदूर रस्सी में बँधे पशुओं की तरह बाधित और विवश बने रहते हैं। वे अपना मौलिक पराक्रम गवाँ बैठते हैं और उसी प्रकार चलने- करने के लिए विवश होते हैं, जैसा कि बाँधने वाला उन्हें चलने के लिए दबाता- धमकाता है। कठपुतलियाँ अपनी मर्जी से न उठ सकती हैं, न चल सकती हैं। मात्र मदारी ही उन्हें नचाता- कुदाता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र- पेज 05


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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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