स्त्रियों को स्वतंत्रता देने का अर्थ यह नहीं है कि उनको कुछ भी करते रहने की छूट मिले और उनके उचित-अनुचित कार्यों की कोई आलोचना या टिप्पणी न की जाय। यह व्यवस्था-मर्यादा तो पुरुष के लिए भी लागू है। कोई व्यक्ति यदि अनुचित कार्य करता है तो आलोचना और निन्दा-भर्त्सना उसकी भी होती है। स्त्रियों को स्वतंत्रता देने का अर्थ यह है कि उन्हें भी अपनी क्षमताओं के विकास की छूट दी जाय तथा उन पर दासी-बाँदी जैसे बंधन न कसे जायँ।
आत्म विकास और पारिवारिक जीवन की सुख-शान्ति के लिए स्त्री की ही तरह पुरुष में चारित्रिक दृढ़ता की आवश्यकता है। प्रेम तथी स्थायी रह सकता है, जब दोनों का अंतःकरण शुद्ध हो और कोई भी नाटक न करता हो। घर में पत्नी से निष्ठा की आकांक्षा रखना और बाहर स्वेच्छाचार के फेर में रहना प्रेम को वास्तविक नहीं रहने दे सकता। जहाँ ऐसी दोहरी मानसिकता और बनावटीपन है, वहाँ आत्मीयता का सूत्र निश्चय ही खण्डित होता रहेगा।
वस्तुतः पति-पत्नी दो इकाई मिलकर एक सम्मिलित व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं और जीवन यात्रा का उत्तरदायित्व इस सामूहिक व्यक्तित्व पर ही निर्भर करता है। दोनों का एक-दूसरे के काम में सहयोग आवश्यक अनिवार्य है। पति-पत्नी के कार्यों का विभाजन, उसकी सीमा रेखा कभी निश्चित नहीं की जा सकती। दाम्पत्य जीवन का सार इसी में है कि एक दूसरे के कामों में मदद करें, योग दें, चाहे वह काम घर के अन्दर का हो या बाहर का।
आत्म विकास और पारिवारिक जीवन की सुख-शान्ति के लिए स्त्री की ही तरह पुरुष में चारित्रिक दृढ़ता की आवश्यकता है। प्रेम तथी स्थायी रह सकता है, जब दोनों का अंतःकरण शुद्ध हो और कोई भी नाटक न करता हो। घर में पत्नी से निष्ठा की आकांक्षा रखना और बाहर स्वेच्छाचार के फेर में रहना प्रेम को वास्तविक नहीं रहने दे सकता। जहाँ ऐसी दोहरी मानसिकता और बनावटीपन है, वहाँ आत्मीयता का सूत्र निश्चय ही खण्डित होता रहेगा।
वस्तुतः पति-पत्नी दो इकाई मिलकर एक सम्मिलित व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं और जीवन यात्रा का उत्तरदायित्व इस सामूहिक व्यक्तित्व पर ही निर्भर करता है। दोनों का एक-दूसरे के काम में सहयोग आवश्यक अनिवार्य है। पति-पत्नी के कार्यों का विभाजन, उसकी सीमा रेखा कभी निश्चित नहीं की जा सकती। दाम्पत्य जीवन का सार इसी में है कि एक दूसरे के कामों में मदद करें, योग दें, चाहे वह काम घर के अन्दर का हो या बाहर का।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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