मंगलवार, 29 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 29 Aug 2023

स्त्रियों को स्वतंत्रता देने का अर्थ यह नहीं है कि उनको कुछ भी करते रहने की छूट मिले और उनके उचित-अनुचित कार्यों की कोई आलोचना या टिप्पणी न की जाय। यह व्यवस्था-मर्यादा तो पुरुष के लिए भी लागू है। कोई व्यक्ति यदि अनुचित कार्य करता है तो आलोचना और निन्दा-भर्त्सना उसकी भी होती है। स्त्रियों को स्वतंत्रता देने का अर्थ यह है कि उन्हें भी अपनी क्षमताओं के विकास की छूट  दी जाय तथा उन पर दासी-बाँदी जैसे बंधन न कसे जायँ।

आत्म विकास और पारिवारिक जीवन की सुख-शान्ति के लिए स्त्री की ही तरह पुरुष में चारित्रिक दृढ़ता की आवश्यकता है। प्रेम तथी स्थायी रह सकता है, जब दोनों का अंतःकरण शुद्ध हो और कोई भी नाटक न करता हो। घर में पत्नी से निष्ठा की आकांक्षा रखना और बाहर स्वेच्छाचार के फेर में रहना प्रेम को वास्तविक नहीं रहने दे सकता। जहाँ ऐसी दोहरी मानसिकता और बनावटीपन है, वहाँ आत्मीयता का सूत्र निश्चय ही खण्डित होता रहेगा।

वस्तुतः पति-पत्नी दो इकाई मिलकर एक सम्मिलित व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं और जीवन यात्रा का उत्तरदायित्व इस सामूहिक व्यक्तित्व पर ही निर्भर करता है। दोनों का एक-दूसरे के काम में सहयोग आवश्यक अनिवार्य है। पति-पत्नी के कार्यों का विभाजन, उसकी सीमा रेखा कभी निश्चित नहीं की जा सकती। दाम्पत्य जीवन का सार इसी में है कि एक दूसरे के कामों में मदद करें, योग दें, चाहे वह काम घर के अन्दर का हो या बाहर का।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...