रविवार, 24 जुलाई 2016

🌞 शिष्य संजीवनी (भाग 64) 👉 परमशान्ति की भावदशा

 🔴 शिष्य संजीवनी की यह सूत्र- माला एक लम्बे समय से शिष्यों को शिष्यत्व की साधना का मर्म समझाती आयी है। उन्हें अपने सद्गुरु की कृपा का अधिकारी बनाती आयी है। अब इस सूत्र- माला का आखिरी छोर आ पहुँचा है। माला के सुमेरू तक हम आ पहुँचे हैं। केवल अन्तिम सूत्र कहा जाना है। यह अन्तिम सूत्र पहले गये सभी सूत्रों का सार है, उनकी चरम परिणति है। इस सूत्र में शिष्यत्व की साधना का चरम है। इसमें साधना के परम शिखर का दर्शन है। इसे समझ पाना केवल उन्हीं के बूते की बात है। जो इस साधना में रमे हैं, जिन्होंने पिछले दिनों शिष्यों संजीवनी को बूंद- बूंद पिया है, इस औषधि पान के अनुभव को पल- पल जिया है। इस सूत्र को समझने के लिए वे ही सुपात्र हैं, जिन्होंने अपने शिष्यत्व को सिद्ध करने के लिए अपने सब कुछ को दांव पर लगा रखा है।
     
🔵 इस अन्तिम सूत्र में पथ की नहीं मन्दिर की झलक है। पथ तो समाप्त हुआ, अब मंगलमय प्रभु के महाअस्तित्त्व में समा जाना है। बूंद- समुद्र में समाने जा रही है। सभी द्वन्द्वों को यहाँ विसॢजत होकर द्वन्द्वातीत होना है। शिष्यत्व के इस परम सुफल को जिन्होंने चखा है, जो इस स्वाद में डूबे हैं, ऐसे महासाधकों का कहना है- ‘जो दिव्यता के द्वार तक पहुँच चुका है, उसके लिए कोई भी नियम नहीं बनाया जा सकता। और न कोई पथ प्रदर्शक ही उसके लिए हो सकता है। फिर भी शिष्यों को संकेत देने के लिए कुछ संकेत दिए गए हैं, कुछ शब्द उचारे गए हैं- ‘जो मूर्त नहीं है और अमूर्त भी नहीं है, उसका अवलम्बन लो। केवल नाद रहित वाणी ही सुनो। जो बाह्य और अन्तर दोनों चक्षुओं से अदृश्य है, केवल उसी का दर्शन करो। तुम्हें शान्ति प्राप्त हो।
        
🔴 शिष्यत्व की साधना का यह अन्तिम छोर अतिदिव्य है। यहाँ किसी भी तरह के सांसारिक ज्ञान, भाव या बोध की तनिक भी गुंजाइश नहीं है। यहाँ शुद्ध अध्यात्म है। यहां केवल शुद्धतम चेतना का परम विस्तार है। यहाँ अस्तित्त्व के केन्द्र में प्रवेश है। यहाँ न तो विधि है, न निषेध। कोई नियम- विधान यहाँ नहीं है। हो भी कैसे सकते हैं, कोई नियम यहाँ पर? नियम तो वहाँ लागू किए जाते हैं, जहाँ द्वैत और द्वन्द्व होते हैं। और द्वैत और द्वन्द्व का स्थान परिधि है, केन्द्र नहीं। उपनिषद् में यही अवस्था नेति- नेति कही गयी है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 डॉ. प्रणव पण्डया
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/Devo/bhav

👉 उपासना, साधना व आराधना (भाग 8)


🔵 और क्या था हमारे पास? हमारे पास थी भावना-संवेदना यह भी हमने अपने कुटुम्बियों के लिए, बेटे-बेटी के लिए नहीं लगाई। हमने अपनी भावना एवं संवेदना के माध्यम से इस संसार में रहने वाले व्यक्तियों के दुःखों के निवारण के लिए हमेशा उपयोग किया। हमने हमेशा यह सोचा कि हमारे पास कुछ है, तो उसे किस तरह से बाँट सकते हैं? अगर किसी के पास दुःख है, तो उसे किस तरह से दूर कर सकते हैं। यही हमने अपने पूरे जीवनकाल में किया है। इसके अलावा जो भी धन था, उसे भी भगवान् के कार्य में खर्च कर दिया। इससे हमें बहुत मिला, इतना अधिक मिला कि हम आपको बतला नहीं सकते। हमें लोग कितना प्यार करते हैं, यह आपको नहीं मालूम।

🔴 लोग यहाँ आते हैं, तो यह कहते हैं कि हमें गुरुजी का दर्शन मिल जाता, तो कितना अच्छा होता। यह क्या है? यह है हमारा प्यार, मोहब्बत, जो हमने उन्हें दी है तथा उनसे हमने पायी है। गाँधी जी ने भी दिया था एवं उन्होंने भी पाया है। हमने तो कहीं अधिक पाया है। मरने के बाद तो कितने ही व्यक्तियों की लोग पूजा करते हैं। भगवान् बुद्ध की पूजा करते हैं। मरने के बाद भगवान् श्रीकृष्ण की जय बोलते हैं, जबकि उस समय लोगों ने उन्हें गालियाँ दी थीं। हमारे मरने के बाद कोई आरती उतारेगा कि नहीं, मैं यह नहीं कह सकता, परन्तु आज कितने लोगों ने आरती उतारी है, प्यार किया है, इसे हम बतला नहीं सकते। यह क्या हो गया? यह है हमारा ‘बोया एवं काटा’ का सिद्धान्त। यह है हमारी आराधना-समाज के लिए, भगवान् के लिए।

🔵 मित्रो, हमने पत्थर की मूर्ति के लिए नहीं, वरन् समाज के लिए काम किया है। पत्थर की मूर्ति को भगवान् नहीं कहते हैं। समाज को ही भगवान् कहते हैं। हमने ऐसा ही किया है। हमें दो मालियों की कहानी हमेशा याद रहती है। एक राजा ने एक बगीचा एक माली को दिया तथा दूसरा बगीचा दूसरे माली को। एक ने तो बगीचे में राजा का चित्र लगा दिया और नित्य चन्दन लगाता, आरती उतारता तथा एक सौ आठ परिक्रमा करता रहा। इसके कारण बगीचे का कार्य उपेक्षित पड़ा रहा। बगीचा सूखने लगा।

🔴 दूसरा माली तो राजा का नाम भी भूल गया, परन्तु वह निरन्तर बगीचे में खाद-पानी डालने, निराई करने का काम करता रहा। इससे उसका बगीचा हरियाली से भरा-पूरा होता चला गया। राजा एक वर्ष बाद बगीचा देखने आया, तो पहले वाले माली को उसने हटा दिया, जो एक सौ आठ परिक्रमा करता और आरती उतारता था। दूसरे उस माली का अभिनन्दन किया, उसे ऊँचा उठा दिया, जिसने वास्तव में बगीचे को सुन्दर बनाने का प्रयास किया था।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पूज्य पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Lectures/112.2

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...