🔷 उपासना कारतूस है और जीवन साधना बन्दूक। अच्छी बन्दूक होने पर ही कारतूस का चमत्कार देखा जा सकता है। बन्दूक रहित अकेला कारतूस तो थोड़ी आवाज करके फट ही सकता है उससे सिंह व्याघ्र का शिकार नहीं किया जा सकता। अनैतिक गतिविधियाँ और अवाँछनीय विचारणायें यदि भरी रहें तो कोई साधक आत्मिक प्रगति का वास्तविक और चिरस्थायी लाभ न ले सकेगा। किसी प्रकार कुछ मिल भी जाय तो उससे जादूगरी जैसा चमत्कार दिखा कर थोड़े दिन यश लिप्सा पूरी की जा सकती है। वास्तविक लाभ न अपना हो सकता है और न दूसरों का।
🔶 अस्तु आत्मबल से संबंधित सिद्धियाँ और आत्म-कल्याण के साथ जुड़ी हुई विभूतियाँ प्राप्त करने के लिए जो वस्तुतः निष्ठावान हों उन्हें अपने गुण-कर्म स्वभाव पर गहरी दृष्टि डालनी चाहिए और जहाँ कहीं छिद्र हों उन्हें बन्द करना चाहिए। फूटे हुए बर्तन में जल भरा नहीं रह सकता- छेद वाली नाव तैर नहीं सकती, दुर्बुद्धि और दुश्चरित्र व्यक्ति इन छिद्रों में अपना सारा उपासनात्मक उपार्जन गँवा बैठता है और उसे छूँछ बनकर खाली हाथ रहना पड़ता है।
🔷 हर दिन नया जन्म हर रात नई मौत वाली साधना इस दृष्टि से अति उपयोगी सिद्ध होती है। प्रातःकाल उठते ही यह अनुभव करना कि अब से लेकर सोते समय तक के लिए ही आज का नया जन्म मिला है। इसके एक-एक क्षण का सदुपयोग करना है। इस आधार पर दिन भर की पूरी दिनचर्या निर्धारित कर ली जाय। समय जैसी बहुमूल्य सम्पदा का एक कण भी बर्बाद होने की उसमें गुंजाइश न रहे। एक भी अनाचार बन पड़ने की ढील न रखी जाय। निकृष्ट स्तर पर सोचने और हेय कर्म करने पर पूरा प्रतिबन्ध लगाया जाय। इस प्रकार नित्य कर्म से लेकर आजीविका उपार्जन तक संभाषण से लेकर कर्तृत्व तक जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता और आदर्शवादिता का समावेश किया जाय।
🔶 रात को सोते समय लेखा-जोखा लिया जाय कि आज उत्कृष्टता और निकृष्टता में से किस का उपार्जन ज्यादा हुआ। पाप अधिक बना या पुण्य। भूलें प्रबल रहीं या सतर्कता जीती। इस प्रकार आत्म निरीक्षण करने के उपरान्त दूसरे दिन और भी अधिक सतर्क रहने- और भी उत्तम दिनचर्या बनाने की तैयारी करते हुए निद्रा माता को मृत्यु समझ कर उसकी गोद में शान्ति-पूर्वक जाना चाहिए। यह क्रम निरन्तर जारी रखा जाय तो जीवन में क्रमशः अधिकाधिक पवित्रता का समावेश होता चला जाता है और तदनुरूप आत्मिक प्रगति तीव्र होती चली जाती है।
.... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मई 1972 पृष्ठ 10
🔶 अस्तु आत्मबल से संबंधित सिद्धियाँ और आत्म-कल्याण के साथ जुड़ी हुई विभूतियाँ प्राप्त करने के लिए जो वस्तुतः निष्ठावान हों उन्हें अपने गुण-कर्म स्वभाव पर गहरी दृष्टि डालनी चाहिए और जहाँ कहीं छिद्र हों उन्हें बन्द करना चाहिए। फूटे हुए बर्तन में जल भरा नहीं रह सकता- छेद वाली नाव तैर नहीं सकती, दुर्बुद्धि और दुश्चरित्र व्यक्ति इन छिद्रों में अपना सारा उपासनात्मक उपार्जन गँवा बैठता है और उसे छूँछ बनकर खाली हाथ रहना पड़ता है।
🔷 हर दिन नया जन्म हर रात नई मौत वाली साधना इस दृष्टि से अति उपयोगी सिद्ध होती है। प्रातःकाल उठते ही यह अनुभव करना कि अब से लेकर सोते समय तक के लिए ही आज का नया जन्म मिला है। इसके एक-एक क्षण का सदुपयोग करना है। इस आधार पर दिन भर की पूरी दिनचर्या निर्धारित कर ली जाय। समय जैसी बहुमूल्य सम्पदा का एक कण भी बर्बाद होने की उसमें गुंजाइश न रहे। एक भी अनाचार बन पड़ने की ढील न रखी जाय। निकृष्ट स्तर पर सोचने और हेय कर्म करने पर पूरा प्रतिबन्ध लगाया जाय। इस प्रकार नित्य कर्म से लेकर आजीविका उपार्जन तक संभाषण से लेकर कर्तृत्व तक जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता और आदर्शवादिता का समावेश किया जाय।
🔶 रात को सोते समय लेखा-जोखा लिया जाय कि आज उत्कृष्टता और निकृष्टता में से किस का उपार्जन ज्यादा हुआ। पाप अधिक बना या पुण्य। भूलें प्रबल रहीं या सतर्कता जीती। इस प्रकार आत्म निरीक्षण करने के उपरान्त दूसरे दिन और भी अधिक सतर्क रहने- और भी उत्तम दिनचर्या बनाने की तैयारी करते हुए निद्रा माता को मृत्यु समझ कर उसकी गोद में शान्ति-पूर्वक जाना चाहिए। यह क्रम निरन्तर जारी रखा जाय तो जीवन में क्रमशः अधिकाधिक पवित्रता का समावेश होता चला जाता है और तदनुरूप आत्मिक प्रगति तीव्र होती चली जाती है।
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✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मई 1972 पृष्ठ 10