सोमवार, 1 मई 2017
👉 MANAN (Part 1)
(motivating the self-being for present & future period) & its Significance.
🔴 Now comes, the second leg that is to be considered after first leg of ‘CHINTAN’ during the period you are in solitude. Its name is ‘MANAN’ (motivating the self-being). What is ‘MANAN’? ‘MANAN’ again like ‘CHINTAN’ comprises of two stages. The first stage here is called ‘SELF-INCULCATING/ AUTO-SUGGESTION’ while the second one is ‘SELF-DEVELOPMENT’. What to do in ‘INCULCATING’. ‘INCULCATING’ here stands for incorporating some new specification that you usually do not have by now in your temperament, virtue and action. For example you are illiterate and have no knowledge, so now starts trying for that. What to try? You have to start studying.
🔵 We are honest, do not smoke, that is nice but I ask why you do not fill the gap created due to your illiteracy or being uneducated? If you do not do that how progress will begin? How your knowledge-base will widen? How your mind will develop? That is why there is bulk of jobs to be done here as far as building your personality is concerned. Your health is weak due to smoking but your commitment alone to stop smoking will not work as it will only put a break to incurring losses. Yes, it was to be compulsorily stopped but one more thing will also have to be done. To add to your health, you will also have to make necessary changes in your food-habits. You will have to exercise celibacy besides adopting some new way of physical exercise. These new specifications for what, for unleashing the chain of progress as all these are the parts of ‘SELF-INCULCATING’.
🌹 to be continue...
🌹 ~Pt Shriram Sharma Aachrya
🔴 Now comes, the second leg that is to be considered after first leg of ‘CHINTAN’ during the period you are in solitude. Its name is ‘MANAN’ (motivating the self-being). What is ‘MANAN’? ‘MANAN’ again like ‘CHINTAN’ comprises of two stages. The first stage here is called ‘SELF-INCULCATING/ AUTO-SUGGESTION’ while the second one is ‘SELF-DEVELOPMENT’. What to do in ‘INCULCATING’. ‘INCULCATING’ here stands for incorporating some new specification that you usually do not have by now in your temperament, virtue and action. For example you are illiterate and have no knowledge, so now starts trying for that. What to try? You have to start studying.
🔵 We are honest, do not smoke, that is nice but I ask why you do not fill the gap created due to your illiteracy or being uneducated? If you do not do that how progress will begin? How your knowledge-base will widen? How your mind will develop? That is why there is bulk of jobs to be done here as far as building your personality is concerned. Your health is weak due to smoking but your commitment alone to stop smoking will not work as it will only put a break to incurring losses. Yes, it was to be compulsorily stopped but one more thing will also have to be done. To add to your health, you will also have to make necessary changes in your food-habits. You will have to exercise celibacy besides adopting some new way of physical exercise. These new specifications for what, for unleashing the chain of progress as all these are the parts of ‘SELF-INCULCATING’.
🌹 to be continue...
🌹 ~Pt Shriram Sharma Aachrya
👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 90)
🌹 जीवन साधना जो कभी असफल नहीं जाती
🔴 गुरुदेव के निर्देशन में अपनी चारों ही सम्पदाओं को भगवान के चरणों में अर्पित करने का निश्चय किया। १-शारीरिक श्रम, २-मानसिक श्रम, ३-भाव संवेदनाएँ, ४-पूर्वजों का उपार्जित धन। अपना कमाया तो कुछ था ही नहीं। चारों को अनन्य निष्ठा के साथ निर्धारित लक्ष्य के लिए लगाते चले आए हैं। फलतः सचमुच ही वे सौ गुने होकर वापस लौटते रहे हैं। शरीर से बाहर घण्टा नित्य श्रम किया है। इससे थकान नहीं आई। वरन् कार्य क्षमता बढ़ी ही है। इन दिनों इस बुढ़ापे में भी जवानों जैसी कार्य क्षमता है। मानसिक श्रम भी शारीरिक श्रम के साथ सँजोए रखा। उसकी परिणति यह है कि मनोबल में-मस्तिष्कीय क्षमता में कहीं कोई ऐसे लक्षण प्रकट नहीं हुए जैसे कि आमतौर से बुढ़ापे में प्रकट होते हैं।
🔵 हमने खुलकर प्यार बाँटा और बिखेरा है। फलस्वरूप दूसरी ओर से भी कमी नहीं रही है, व्यक्तिगत स्नेह, सम्मान, सद्भाव ही नहीं, मिशन के लिए जब-जब, जो-जो अपील, अनुरोध प्रस्तुत किए जाते रहे हैं, उनमें कमी नहीं पड़ी है। २४०० प्रज्ञापीठों का दो वर्ष में बनकर खड़े हो जाना इसका जीवंत उदाहरण है। आरम्भ में मात्र अपना ही धन था। पैतृक संपत्ति से ही गायत्री तपोभूमि का निर्माण हुआ। जन्मभूमि में हाईस्कूल खड़ा किया गया, बाद में एक और शक्तिपीठ वहाँ विनिर्मित हो गया। आशा कम ही थी कि लोग बिना माँगे देंगे और निर्माण का इतना बड़ा स्वरूप खड़ा हो जाएगा।
🔴 आज गायत्री तपोभूमि, शान्तिकुञ्ज गायत्री तीर्थ, ब्रह्मवर्चस् की इमारतों को देखकर भी यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बोया हुआ बीज सौ गुना होकर फलता है या नहीं। यह श्रद्धा का अभाव ही है, जिसमें लोग अपना संचय बगल में दबाए रखना चाहते हैं, भगवान से लाटरी अथवा लोगों से चंदा माँगते हैं। यदि बात आत्मसमर्पण से प्रारंभ की जा सके तो उसका आश्चर्यजनक परिणाम होगा। विनिर्मित गायत्री शक्ति पीठों में से जूनागढ़ के निर्माता ने अपने बर्तन बेचकर कार्य आरम्भ किया था और वही अब तक विनिर्मित, सभी इमारतों में मूर्धन्यों में से एक है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/hari/jivan.4
🔴 गुरुदेव के निर्देशन में अपनी चारों ही सम्पदाओं को भगवान के चरणों में अर्पित करने का निश्चय किया। १-शारीरिक श्रम, २-मानसिक श्रम, ३-भाव संवेदनाएँ, ४-पूर्वजों का उपार्जित धन। अपना कमाया तो कुछ था ही नहीं। चारों को अनन्य निष्ठा के साथ निर्धारित लक्ष्य के लिए लगाते चले आए हैं। फलतः सचमुच ही वे सौ गुने होकर वापस लौटते रहे हैं। शरीर से बाहर घण्टा नित्य श्रम किया है। इससे थकान नहीं आई। वरन् कार्य क्षमता बढ़ी ही है। इन दिनों इस बुढ़ापे में भी जवानों जैसी कार्य क्षमता है। मानसिक श्रम भी शारीरिक श्रम के साथ सँजोए रखा। उसकी परिणति यह है कि मनोबल में-मस्तिष्कीय क्षमता में कहीं कोई ऐसे लक्षण प्रकट नहीं हुए जैसे कि आमतौर से बुढ़ापे में प्रकट होते हैं।
🔵 हमने खुलकर प्यार बाँटा और बिखेरा है। फलस्वरूप दूसरी ओर से भी कमी नहीं रही है, व्यक्तिगत स्नेह, सम्मान, सद्भाव ही नहीं, मिशन के लिए जब-जब, जो-जो अपील, अनुरोध प्रस्तुत किए जाते रहे हैं, उनमें कमी नहीं पड़ी है। २४०० प्रज्ञापीठों का दो वर्ष में बनकर खड़े हो जाना इसका जीवंत उदाहरण है। आरम्भ में मात्र अपना ही धन था। पैतृक संपत्ति से ही गायत्री तपोभूमि का निर्माण हुआ। जन्मभूमि में हाईस्कूल खड़ा किया गया, बाद में एक और शक्तिपीठ वहाँ विनिर्मित हो गया। आशा कम ही थी कि लोग बिना माँगे देंगे और निर्माण का इतना बड़ा स्वरूप खड़ा हो जाएगा।
🔴 आज गायत्री तपोभूमि, शान्तिकुञ्ज गायत्री तीर्थ, ब्रह्मवर्चस् की इमारतों को देखकर भी यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बोया हुआ बीज सौ गुना होकर फलता है या नहीं। यह श्रद्धा का अभाव ही है, जिसमें लोग अपना संचय बगल में दबाए रखना चाहते हैं, भगवान से लाटरी अथवा लोगों से चंदा माँगते हैं। यदि बात आत्मसमर्पण से प्रारंभ की जा सके तो उसका आश्चर्यजनक परिणाम होगा। विनिर्मित गायत्री शक्ति पीठों में से जूनागढ़ के निर्माता ने अपने बर्तन बेचकर कार्य आरम्भ किया था और वही अब तक विनिर्मित, सभी इमारतों में मूर्धन्यों में से एक है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/hari/jivan.4
👉 यम के दूत निकट नहीं आवें
🔵 मैं अपने परिवार के साथ मई २००४ में शान्तिकुञ्ज दर्शन करने आया। हमें याद है, मैं शान्तिकुञ्ज में चार- पाँच दिन रुका था। १८ मई को वापस बलरामपुर अपने सरकारी आवास पर पहुँच गया। रास्ते की थकान होने के कारण हमें काफी सुस्ती महसूस हो रही थी। इसी बीच भाई की पत्नी भी आ गई। उसे मालूम हुआ कि हम लोग शान्तिकुञ्ज से वापस आ गए हैं। इसलिए एक दिन के लिए मिलने चली आई थी। उस दिन रुककर २० तारीख शाम को ४ बजे वापस चली गई।
🔴 चूँकि हम लोग काफी थके हुए थे, इसलिए उस दिन जल्दी खाना बन गया। हम लोग खा- पीकर जल्दी सो गए। रात में, करीब १२- १ बजे का समय रहा होगा- सात- आठ अज्ञात लोग अचानक मेरे घर में घुस आए। घर में आवाज सुनकर मैं हड़बड़ाकर जाग उठा। मेरी पत्नी और लड़का सो रहा था। मैं बहुत घबड़ा गया था। सोचा उठकर शोर मचाऊँ, तो शायद कोई पड़ोसी ही पहुँच जाए। इतने सारे हथियार बंद लोगों के सामने मेरी क्या औकात थी? उन लोगों ने मेरी आँखों के सामने मेरी पत्नी के हाथ पैरों को बाँध दिया। उसने उठकर चिल्लाने की कोशिश की तो मुँह पर टेप चिपका दिया। मैंने उन्हें रोकने का प्रयास किया तो उन लोगों ने कट्टे के बट से मेरी कनपटी पर वार कर दिया, जिसके कारण मेरे सिर से खून की धार बह निकली। मेरी स्थिति को देख पत्नी अचेत हो गई। मैं अन्दर से बुरी तरह काँप उठा। मुझे लगा कि अब मेरा परिवार तो गया। मैं बुरी तरह जख्मी हो गया था। मेरी दोनों लड़कियाँ दूसरे कमरे में सो रही थीं। मेरा मन आशंका से भर उठा कि वे लोग अब न जाने क्या करें? शरीर से खून बह जाने के कारण कमजोर इतना हो गया था कि उठा भी नहीं जा रहा था। वे लोग मुझे साक्षात् यम के दूत की तरह से लग रहे थे।
🔵 अब पूज्य गुरुदेव को पुकारने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। मैं व्याकुल होकर कह उठा- हे गुरुदेव! मैंने कौन सा अपराध किया है, जिसका मुझे इस तरह दण्ड मिल रहा है। अब तो मेरे परिवार का अन्त हो जाएगा। आपके रहते ऐसा कैसे सम्भव है? मेरे मन में न जाने कितने भाव आ रहे थे! इधर मैं प्रार्थना में तल्लीन था। इस बीच घटना ने किस तरह मोड़ लिया यह मैंने बाद में अपनी पत्नी से सुना। मुझे चोटिल देख उसे मूर्छा आ गई थी। मूर्छा में ही उसने सुना कि बाहर से कोई दरवाजा खोलने के लिए कह रहा है। फिर पता नहीं कैसे दरवाजा अपने आप खुल गया। उसने देखा कि स्वयं गुरुदेव कमरे में प्रवेश कर रहे हैं। सफेद धोती कुर्ता पहने हुए हैं। उनको देखते ही पत्नी की मूर्छा टूट गई। वह चिल्लाई गुरुदेव- गुरुदेव! इतने में सारे बदमाश अचानक डर गए। वे समझे इन लोगों को बचाने वाले आ गए।
🔴 इतना सब कुछ होने के बावजूद कोई व्यक्ति सहायता के लिए नहीं पहुँचा था। अचानक मैंने देखा कि कर्नल साहब का चपरासी अन्दर चिल्लाते हुए आया कि क्या बात है? न जाने मुझमें कहाँ से हिम्मत आ गई। मैं एक ईंट उठाकर बदमाशों के पीछे- पीछे भागा। पता नहीं कैसी कृपा गुरुदेव की हुई कि थोड़ी देर पहले मैं डर के मारे परेशान था, बोलने की हिम्मत नहीं थी। मैंने उन लोगों को बहुत दूर तक दौड़ा दिया। वे लोग डर कर भाग गए।
🔵 इतना घाव एवं रक्त बहने के बावजूद मैं कपड़े से अपने सर को पकड़े हुए एक हाथ से जीप चलाते हुए थाने पहुँच गया। वहाँ मैंने रिपोर्ट लिखवाई। मेरे दिमाग में काफी चोट आने के कारण मेरा दिमागी संतुलन बिगड़ गया था। मुझे बात भूलने की समस्या हो गई थी। लेकिन धीरे- धीरे गुरुकृपा से सब सामान्य हो गया। सभी बदमाश पकड़े गए। मुकदमा चला लेकिन बाद में मंैने मुकदमा समाप्त करा दिया। सभी को बाद में बरी करवा दिया।
🔴 मुझे अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास हो गया था। जब उनकी कृपादृष्टि है तो मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता। मैं किसी को दण्ड क्यों दूँ। सारा न्याय तो ऊपर वाले के हाथ में है। इस प्रकार गुरुकृपा से थोड़े दिनों के भीतर सारी परिस्थितियाँ सामान्य हो गईं। अगर गुरुजी का सहारा न होता तो हमारे परिवार का न जाने क्या हाल होता! इस घटना के बाद से मेरी श्रद्धा गुरुदेव के प्रति हमेशा के लिए बँध गई।
🌹 सुरेश कुमार सोनी तहसीलदार, धामपुर बिजनौर (उ.प्र.)
🌹 अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Samsarn/won/yam
🔴 चूँकि हम लोग काफी थके हुए थे, इसलिए उस दिन जल्दी खाना बन गया। हम लोग खा- पीकर जल्दी सो गए। रात में, करीब १२- १ बजे का समय रहा होगा- सात- आठ अज्ञात लोग अचानक मेरे घर में घुस आए। घर में आवाज सुनकर मैं हड़बड़ाकर जाग उठा। मेरी पत्नी और लड़का सो रहा था। मैं बहुत घबड़ा गया था। सोचा उठकर शोर मचाऊँ, तो शायद कोई पड़ोसी ही पहुँच जाए। इतने सारे हथियार बंद लोगों के सामने मेरी क्या औकात थी? उन लोगों ने मेरी आँखों के सामने मेरी पत्नी के हाथ पैरों को बाँध दिया। उसने उठकर चिल्लाने की कोशिश की तो मुँह पर टेप चिपका दिया। मैंने उन्हें रोकने का प्रयास किया तो उन लोगों ने कट्टे के बट से मेरी कनपटी पर वार कर दिया, जिसके कारण मेरे सिर से खून की धार बह निकली। मेरी स्थिति को देख पत्नी अचेत हो गई। मैं अन्दर से बुरी तरह काँप उठा। मुझे लगा कि अब मेरा परिवार तो गया। मैं बुरी तरह जख्मी हो गया था। मेरी दोनों लड़कियाँ दूसरे कमरे में सो रही थीं। मेरा मन आशंका से भर उठा कि वे लोग अब न जाने क्या करें? शरीर से खून बह जाने के कारण कमजोर इतना हो गया था कि उठा भी नहीं जा रहा था। वे लोग मुझे साक्षात् यम के दूत की तरह से लग रहे थे।
🔵 अब पूज्य गुरुदेव को पुकारने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। मैं व्याकुल होकर कह उठा- हे गुरुदेव! मैंने कौन सा अपराध किया है, जिसका मुझे इस तरह दण्ड मिल रहा है। अब तो मेरे परिवार का अन्त हो जाएगा। आपके रहते ऐसा कैसे सम्भव है? मेरे मन में न जाने कितने भाव आ रहे थे! इधर मैं प्रार्थना में तल्लीन था। इस बीच घटना ने किस तरह मोड़ लिया यह मैंने बाद में अपनी पत्नी से सुना। मुझे चोटिल देख उसे मूर्छा आ गई थी। मूर्छा में ही उसने सुना कि बाहर से कोई दरवाजा खोलने के लिए कह रहा है। फिर पता नहीं कैसे दरवाजा अपने आप खुल गया। उसने देखा कि स्वयं गुरुदेव कमरे में प्रवेश कर रहे हैं। सफेद धोती कुर्ता पहने हुए हैं। उनको देखते ही पत्नी की मूर्छा टूट गई। वह चिल्लाई गुरुदेव- गुरुदेव! इतने में सारे बदमाश अचानक डर गए। वे समझे इन लोगों को बचाने वाले आ गए।
🔴 इतना सब कुछ होने के बावजूद कोई व्यक्ति सहायता के लिए नहीं पहुँचा था। अचानक मैंने देखा कि कर्नल साहब का चपरासी अन्दर चिल्लाते हुए आया कि क्या बात है? न जाने मुझमें कहाँ से हिम्मत आ गई। मैं एक ईंट उठाकर बदमाशों के पीछे- पीछे भागा। पता नहीं कैसी कृपा गुरुदेव की हुई कि थोड़ी देर पहले मैं डर के मारे परेशान था, बोलने की हिम्मत नहीं थी। मैंने उन लोगों को बहुत दूर तक दौड़ा दिया। वे लोग डर कर भाग गए।
🔵 इतना घाव एवं रक्त बहने के बावजूद मैं कपड़े से अपने सर को पकड़े हुए एक हाथ से जीप चलाते हुए थाने पहुँच गया। वहाँ मैंने रिपोर्ट लिखवाई। मेरे दिमाग में काफी चोट आने के कारण मेरा दिमागी संतुलन बिगड़ गया था। मुझे बात भूलने की समस्या हो गई थी। लेकिन धीरे- धीरे गुरुकृपा से सब सामान्य हो गया। सभी बदमाश पकड़े गए। मुकदमा चला लेकिन बाद में मंैने मुकदमा समाप्त करा दिया। सभी को बाद में बरी करवा दिया।
🔴 मुझे अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास हो गया था। जब उनकी कृपादृष्टि है तो मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता। मैं किसी को दण्ड क्यों दूँ। सारा न्याय तो ऊपर वाले के हाथ में है। इस प्रकार गुरुकृपा से थोड़े दिनों के भीतर सारी परिस्थितियाँ सामान्य हो गईं। अगर गुरुजी का सहारा न होता तो हमारे परिवार का न जाने क्या हाल होता! इस घटना के बाद से मेरी श्रद्धा गुरुदेव के प्रति हमेशा के लिए बँध गई।
🌹 सुरेश कुमार सोनी तहसीलदार, धामपुर बिजनौर (उ.प्र.)
🌹 अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
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