सोमवार, 22 मई 2017
👉 पथ प्रभु प्रेम का
🔵 आखिर भयभीत क्यों हो? न तो इहलोक में, न परलोक में ही भय का कोई कारण है। सभी जीवों को आलोकित करता हुआ प्रेम का महाभाव विद्यमान है और उस प्रेम के लिए ईश्वर के अतिरिक्त और कोई दूसरा नाम नहीं है। ईश्वर तुमसे दूर नहीं है। वह देश की सीमा में बद्ध नहीं है, क्योंकि वह निराकार एवं अंतर्यामी है। स्वयं को पूर्णतः उसके प्रति समर्पित कर दो। शुभ तथा अशुभ तुम जो भी हो सर्वस्व उसको समर्पित कर दो। कुछ भी बचा न रखो। इस प्रकार के सर्वस्व समर्पण के द्वारा तुम्हारा संपूर्ण चरित्र बन जाएगा। विचार करो प्रेम कितना महान है। यह जीवन से भी बड़ा तथा मृत्यु से भी अधिक सशक्त है। ईश्वरप्राप्ति के सभी मार्गों में यह सर्वाधिक शीघ्रगामी है।
🔴 ज्ञान का पथ कठिन है। प्रेम का पथ सहज है। शिशु के समान सरल-निश्छल बनो। विश्वास और प्रेम रखो, तब तुम्हें कोई हानि नहीं होगी। धीर आशावान बनो, तभी तुम सहज रूप से जीवन की सभी परिस्थतियों का सामना करने में समर्थ हो सकोगे। उदार हृदय बनो। क्षुद्र अहं तथा अनुदारता के सभी विचारों को निर्मूल कर दो। पूर्ण विश्वास के साथ स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित कर दो। वे तुम्हारी सभी बातों को जानते हैं। उनके ज्ञान पर विश्वास करो। वे कितने पितृतुल्य हैं, सर्वोपरि वे कितने मातृतुल्य हैं। अनंत प्रभु अपनी अनंतता में तुम्हारे दुख के सहभागी हैं। उनकी कृपा असीम है। यदि तुम हजार भूलें करो तो भी प्रभु तुम्हें हजार बार क्षमा करेंगे। यदि दोष तुम पर आ पड़े, तो वह दोष नहीं रह जाएगा। यदि तुम प्रभु से प्रेम करते हो तो अत्यंत भयावह अनुभव भी तुम्हें तुम्हारे प्रेमास्पद प्रभु के सन्देशवाहक ही प्रतीत होंगे।
🔵 निश्चित ही प्रेम के द्वारा तुम ईश्वर को प्राप्त करोगे। क्या माँ सर्वदा प्रेममयी नहीं होती? वह, अपना ईश्वर, आत्मा का प्रेमी भी कुछ उसी प्रकार है, विश्वास करो! केवल प्रेमपूर्ण विश्वास करो!! फिर तुम्हारे लिए सब कुछ ठीक हो जाएगा। तुमसे जो भूलें हो गयी हैं, उनसे तनिक भी भयभीत न होओ। मनुष्य बनो-सच्चे अर्थों में मनुष्य-वह मनुष्य जिसके पास प्रेम से लबालब भरा हुआ हृदय है। जीवन का साहसपूर्वक सामना करो। जो भी हो, उसे होने दो। प्रभु प्रेम की शक्ति से ही तुम शक्तिशाली बन सकते हो। स्मरण रखो कि तुम्हारे पास अनंत शक्ति है। तुम्हारे परम प्रेमास्पद प्रभु स्वयं तुम्हारे साथ हैं। फिर तुम्हें क्या भय हो सकता है? प्रभु प्रेम के इस पथ पर निर्भीक हो बढ़े चलो, सब कुछ वह स्वतः होता चला जाएगा, जो तुम्हारे लिए परम कल्याणकारी एवं प्रीतिकर है।
🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 78
🔴 ज्ञान का पथ कठिन है। प्रेम का पथ सहज है। शिशु के समान सरल-निश्छल बनो। विश्वास और प्रेम रखो, तब तुम्हें कोई हानि नहीं होगी। धीर आशावान बनो, तभी तुम सहज रूप से जीवन की सभी परिस्थतियों का सामना करने में समर्थ हो सकोगे। उदार हृदय बनो। क्षुद्र अहं तथा अनुदारता के सभी विचारों को निर्मूल कर दो। पूर्ण विश्वास के साथ स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित कर दो। वे तुम्हारी सभी बातों को जानते हैं। उनके ज्ञान पर विश्वास करो। वे कितने पितृतुल्य हैं, सर्वोपरि वे कितने मातृतुल्य हैं। अनंत प्रभु अपनी अनंतता में तुम्हारे दुख के सहभागी हैं। उनकी कृपा असीम है। यदि तुम हजार भूलें करो तो भी प्रभु तुम्हें हजार बार क्षमा करेंगे। यदि दोष तुम पर आ पड़े, तो वह दोष नहीं रह जाएगा। यदि तुम प्रभु से प्रेम करते हो तो अत्यंत भयावह अनुभव भी तुम्हें तुम्हारे प्रेमास्पद प्रभु के सन्देशवाहक ही प्रतीत होंगे।
🔵 निश्चित ही प्रेम के द्वारा तुम ईश्वर को प्राप्त करोगे। क्या माँ सर्वदा प्रेममयी नहीं होती? वह, अपना ईश्वर, आत्मा का प्रेमी भी कुछ उसी प्रकार है, विश्वास करो! केवल प्रेमपूर्ण विश्वास करो!! फिर तुम्हारे लिए सब कुछ ठीक हो जाएगा। तुमसे जो भूलें हो गयी हैं, उनसे तनिक भी भयभीत न होओ। मनुष्य बनो-सच्चे अर्थों में मनुष्य-वह मनुष्य जिसके पास प्रेम से लबालब भरा हुआ हृदय है। जीवन का साहसपूर्वक सामना करो। जो भी हो, उसे होने दो। प्रभु प्रेम की शक्ति से ही तुम शक्तिशाली बन सकते हो। स्मरण रखो कि तुम्हारे पास अनंत शक्ति है। तुम्हारे परम प्रेमास्पद प्रभु स्वयं तुम्हारे साथ हैं। फिर तुम्हें क्या भय हो सकता है? प्रभु प्रेम के इस पथ पर निर्भीक हो बढ़े चलो, सब कुछ वह स्वतः होता चला जाएगा, जो तुम्हारे लिए परम कल्याणकारी एवं प्रीतिकर है।
🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 78
👉 आवश्यकता है दृढ़ विवेकयुक्त आस्था की
🔵 इस समय हम इतिहास के उन महायुगों में से एक युग में हैं, जबकि मानवता भविष्य में छलाँग लगा रही है। हम संक्रमण काल के व्यक्तित्व हैं, जो इतिहास की नयी स्थिति में कार्यरत हैं। व्याकुलता के स्वर-निराशा के चिह्न, जिन्हें हम समूचे विश्व में देख रहे हैं, वे जीवन के दृष्टिकोणों में और व्यवहार में आमूल परिवर्तन की माँग कर रहे हैं, जिससे कि आदर्शों की गरिमा एवं मनुष्यत्व को पहचाना जा सके।
🔴 अगर हम अब तक चले आ रहे मृत रूपों को छोड़ने और नए आदर्शों वाली संस्था की रचना करने में सक्षम नहीं होते, तो हम समाप्त हो जाएँगे। हमने एक महान सभ्यता के निर्माण के लिए, उज्ज्वल भविष्य की संरचना के लिए पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया है, लेकिन इसे नियंत्रित करने और सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त बुद्धि अर्जित नहीं की है। विचारों और सिद्धांतों के रूप में हमारे पास युगों-युगों की धरोहर है, लेकिन यह सब तब तक व्यर्थ है, जब तक हम इसे युगानुरूप बनाकर अपने व्यवहार में न ले आएँ, स्वयं आत्मसात् न कर लें।
🔵 हमारी उपलब्धियाँ अगणित और गौरवास्पद हो सकती हैं। फिर भी हमें अधिक प्रखरता, साहस एवं अनुशासन की आवश्यकता है। अगर अपने आदर्शों एवं उद्देश्य के गौरव की रक्षा करनी है, तो अपने व्यक्तित्व का नवीनीकरण करना होगा। आदमी अपनी पहचान की, जीवन के अर्थ की और उस हार के महत्त्व की खोज कर रहा है, जो उसे एक ऐसे यथार्थ का पल्ला पकड़ने से मिलती है, जो उसके हाथों टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। अपनी शक्ति एवं समृद्धि के शिखर पर हम असुरक्षा के गहरे क्षणों का अनुभव कर रहे हैं। अपनी सभी प्रगतियों के बावजूद हम आज जितनी अर्थहीनता और निरर्थकता का अनुभव कर रहे हैं, उतना पहले कभी नहीं किया।
🔴 समर्थ सत्ता पर विश्वास आम इनसान को अनुशासित करने वाली शक्ति रहा है। शायद इस विश्वास की कमी ही वर्तमान दुरावस्था के लिए उत्तरदायी है। आज हमें एक ऐसी आस्था की आवश्यकता है, जो विवेकशील हो, जिसे हम बौद्धिक निष्ठा और सौन्दर्यशास्त्रीय विश्वास के साथ अपना सकें, एक बड़ी लचीली आस्था समूची मानवजाति के लिए, जिसमें प्रत्येक जीवित धर्म अपना योगदान कर सकता है। हमें एक ऐसी आस्था की आवश्यकता है, जो समूची मानव जाति में निष्ठा रखे, इसके इस या उस टुकड़े पर नहीं। एक ऐसी आस्था, जिसका पल्ला निरपेक्ष और प्रबुद्ध मस्तिष्क सम्मुख विनाश के समय भी पकड़े रह सके।
🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 77
🔴 अगर हम अब तक चले आ रहे मृत रूपों को छोड़ने और नए आदर्शों वाली संस्था की रचना करने में सक्षम नहीं होते, तो हम समाप्त हो जाएँगे। हमने एक महान सभ्यता के निर्माण के लिए, उज्ज्वल भविष्य की संरचना के लिए पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया है, लेकिन इसे नियंत्रित करने और सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त बुद्धि अर्जित नहीं की है। विचारों और सिद्धांतों के रूप में हमारे पास युगों-युगों की धरोहर है, लेकिन यह सब तब तक व्यर्थ है, जब तक हम इसे युगानुरूप बनाकर अपने व्यवहार में न ले आएँ, स्वयं आत्मसात् न कर लें।
🔵 हमारी उपलब्धियाँ अगणित और गौरवास्पद हो सकती हैं। फिर भी हमें अधिक प्रखरता, साहस एवं अनुशासन की आवश्यकता है। अगर अपने आदर्शों एवं उद्देश्य के गौरव की रक्षा करनी है, तो अपने व्यक्तित्व का नवीनीकरण करना होगा। आदमी अपनी पहचान की, जीवन के अर्थ की और उस हार के महत्त्व की खोज कर रहा है, जो उसे एक ऐसे यथार्थ का पल्ला पकड़ने से मिलती है, जो उसके हाथों टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। अपनी शक्ति एवं समृद्धि के शिखर पर हम असुरक्षा के गहरे क्षणों का अनुभव कर रहे हैं। अपनी सभी प्रगतियों के बावजूद हम आज जितनी अर्थहीनता और निरर्थकता का अनुभव कर रहे हैं, उतना पहले कभी नहीं किया।
🔴 समर्थ सत्ता पर विश्वास आम इनसान को अनुशासित करने वाली शक्ति रहा है। शायद इस विश्वास की कमी ही वर्तमान दुरावस्था के लिए उत्तरदायी है। आज हमें एक ऐसी आस्था की आवश्यकता है, जो विवेकशील हो, जिसे हम बौद्धिक निष्ठा और सौन्दर्यशास्त्रीय विश्वास के साथ अपना सकें, एक बड़ी लचीली आस्था समूची मानवजाति के लिए, जिसमें प्रत्येक जीवित धर्म अपना योगदान कर सकता है। हमें एक ऐसी आस्था की आवश्यकता है, जो समूची मानव जाति में निष्ठा रखे, इसके इस या उस टुकड़े पर नहीं। एक ऐसी आस्था, जिसका पल्ला निरपेक्ष और प्रबुद्ध मस्तिष्क सम्मुख विनाश के समय भी पकड़े रह सके।
🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 77
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