आज के दिन हमने अपने ब्रह्मवर्चस का उद्घाटन कराया था। ब्रह्मवर्चस एक सिद्धान्त है कि मनुष्य के भीतर अनन्त शक्तियों का जखीरा सोया हुआ है जिसे जगाना है। जगाने के लिए तप करना पड़ता है। तप करके हम अपने भीतर सोए हुए स्रोतों को जगा सकते हैं, उभार सकते हैं। तप करने का सिद्धान्त यह है, जिससे खाने-पीने से लेकर ब्रह्मवर्चस के नियम पालने तक के बहिरंग तप आते है और भीतर वाले तप में हम अपनी अन्तरात्मा और चेतना को तपा डालते हैं। तप करने से शक्तियाँ आती हैं, मनुष्य में देवत्व का उदय होता है। मनुष्य में देवत्व का उदय करने के लिए सामान्य जीवन में आस्तिकता अपनानी और बहिरंग जीवन में तपश्चर्या करनी पड़ती है। आस्तिकता का अर्थ नेक जीवन और तपश्चर्या का अर्थ लोकहित के लिए, सिद्धान्तों के लिए मुसीबतें सहने से है। तप करने की शिक्षा ब्रह्मवर्चस द्वारा सिखाते हैं। यह एक प्रतीक है, सिम्बल है, एक स्थान है। मनुष्य के भीतर देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण—यही हमारे दो सपने हैं। हमारी कुण्डलिनी और शक्तिपात इन्हीं दो प्रयोजनों में काम आती हैं, तीसरे किसी प्रयोजन में नहीं। तपपरायण और लोकोपयोगी जीवन यही मनुष्य में देवत्व का उदय है।
धरती पर स्वर्ग के वातावरण का क्या मतलब है? अच्छे वातावरण को स्वर्ग बैकुण्ठ में ही नहीं वरन् जमीन पर भी हो सकता है। जहाँ अच्छे आदमी, शरीफ आदमी, अच्छी नीयत के आदमी ठीक परम्परा को अपनाकर भले आदमियों के तरीके से रहते हैं वहीं स्वर्ग पैदा हो जाता है। हम चाहते थे कि धरती पर स्वर्ग बनाने के लिए कोई एक ऐसा मोहल्ला बना दें, एक ऐसा ग्राम बसा दें, जिसमें त्याग करने वाले, सेवा करने वाले लोग आएँ और वहाँ पर सिद्धान्तों के आधार पर जिएँ, हल्की-फुल्की, हँसती-हँसाती शान्ति की जिन्दगी जिएँ, मोहब्बत की जिन्दगी जिएँ और यह दिखा सकें कि लोकोपयोगी जिन्दगी भी जी जा सकती है क्या? धरती पर इसका एक नमूना बनाने के लिए हमने गायत्री नगर बसाया है। और आपको दावत देते हैं कि आप अपने बच्चे को संस्कारवान नहीं बना सकते तो उसको हमारे सुपुर्द कर दीजिए। आप कौन हैं? हम वाल्मीकि ऋषि हैं और वाल्मीकि ऋषि के तरीके से आपके बच्चों को लव-कुश बना सकते हैं। आपकी औरत को तपस्विनी सीता बना सकते हैं। दोनों संस्थाओं की वसन्त पंचमी के दिन इसीलिए स्थापना की गई है। आस्तिकता के लिए, ज्ञानयज्ञ के लिए, विचार-क्रान्ति के लिए यह एक नमूना है।
तपश्चर्या के सिद्धान्तों को प्राणवान बनाने के लिए, ज्ञान-विज्ञान के लिए, ब्रह्मवर्चस और आस्तिकता को जीवित करने के लिए, धरती पर स्वर्ग पैदा करने के लिए, हिल-मिलकर रहने और त्याग, बलिदान, सेवा की जिन्दगी जीने के लिए गायत्री नगर बसाया गया है। लोग यहाँ हमारा प्यार पाने के लिए, संस्कार पाने के लिए, आदर्श पाने के लिए, प्रेरणा पाने के लिए, प्रकाश पाने के लिए आते हैं। नैमिषारण्य क्षेत्र में शौनक और सूत का संवाद होता था। सारे ब्राह्मण बैठते थे, ज्ञान-ध्यान की बातें करते थे और लोकोपयोगी जीवन जीते थे। मेरा भी मन था कि ‘एकदा नैमिषारण्ये’ के तरीके से स्नेहवश लोग यहाँ आएँ और हिल-मिलकर काम करें, समाज सेवा की बातें करें, दूसरों को उठाने की बातें करें। हम एक ऐसी दुनिया बसाना चाहते हैं, ऐसा नगर बसाना चाहते हैं, जिससे दुनिया को दिखा सकें कि भावी जीवन, भावी संसार अगर होगा तो स्वर्ग जैसा कैसे बनाया जा सकेगा? स्वर्ग में शान्ति का, परमार्थ का जीवन जीने के लिए क्या-क्या तकलीफें आ सकती हैं? ऐसा हम गायत्री नगर का उद्घाटन करते हैं। चूँकि हमारे गुरु ने यही दिया और उसके लिए वायदा किया कि तेरा ऊँचा उद्देश्य है, तो तेरे लिए कमी नहीं पड़ेगी। मैं भी आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अगर आपके जीवन में उद्देश्य ऊँचे हों तो आपको कमी नहीं रहेगी, कोई अभाव नहीं रहेगा। मेरी एक ही इच्छा और एक ही कामना रही है कि वसन्त पर्व के दिन आपको बुलाऊँ और अपने भीतर जो पक्ष है, उस पिटारी को खोलकर दिखाऊँ कि मेरे अन्दर कितना दर्द है? कितनी करुणा है? जीवन को पवित्र बनाने की कितनी संवेदना है? कितना देवत्व है? यही खोलकर आपको दिखाना चाहता था। अगर आपको ये चीजें पसन्द हों तो मैं चाहता हूँ कि आप इन चीजों को देखें, इनको परखें, छुएँ और अगर हिम्मत हो तो इनको खरीद ही ले जाएँ।
ॐ शान्ति।
.....समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
धरती पर स्वर्ग के वातावरण का क्या मतलब है? अच्छे वातावरण को स्वर्ग बैकुण्ठ में ही नहीं वरन् जमीन पर भी हो सकता है। जहाँ अच्छे आदमी, शरीफ आदमी, अच्छी नीयत के आदमी ठीक परम्परा को अपनाकर भले आदमियों के तरीके से रहते हैं वहीं स्वर्ग पैदा हो जाता है। हम चाहते थे कि धरती पर स्वर्ग बनाने के लिए कोई एक ऐसा मोहल्ला बना दें, एक ऐसा ग्राम बसा दें, जिसमें त्याग करने वाले, सेवा करने वाले लोग आएँ और वहाँ पर सिद्धान्तों के आधार पर जिएँ, हल्की-फुल्की, हँसती-हँसाती शान्ति की जिन्दगी जिएँ, मोहब्बत की जिन्दगी जिएँ और यह दिखा सकें कि लोकोपयोगी जिन्दगी भी जी जा सकती है क्या? धरती पर इसका एक नमूना बनाने के लिए हमने गायत्री नगर बसाया है। और आपको दावत देते हैं कि आप अपने बच्चे को संस्कारवान नहीं बना सकते तो उसको हमारे सुपुर्द कर दीजिए। आप कौन हैं? हम वाल्मीकि ऋषि हैं और वाल्मीकि ऋषि के तरीके से आपके बच्चों को लव-कुश बना सकते हैं। आपकी औरत को तपस्विनी सीता बना सकते हैं। दोनों संस्थाओं की वसन्त पंचमी के दिन इसीलिए स्थापना की गई है। आस्तिकता के लिए, ज्ञानयज्ञ के लिए, विचार-क्रान्ति के लिए यह एक नमूना है।
तपश्चर्या के सिद्धान्तों को प्राणवान बनाने के लिए, ज्ञान-विज्ञान के लिए, ब्रह्मवर्चस और आस्तिकता को जीवित करने के लिए, धरती पर स्वर्ग पैदा करने के लिए, हिल-मिलकर रहने और त्याग, बलिदान, सेवा की जिन्दगी जीने के लिए गायत्री नगर बसाया गया है। लोग यहाँ हमारा प्यार पाने के लिए, संस्कार पाने के लिए, आदर्श पाने के लिए, प्रेरणा पाने के लिए, प्रकाश पाने के लिए आते हैं। नैमिषारण्य क्षेत्र में शौनक और सूत का संवाद होता था। सारे ब्राह्मण बैठते थे, ज्ञान-ध्यान की बातें करते थे और लोकोपयोगी जीवन जीते थे। मेरा भी मन था कि ‘एकदा नैमिषारण्ये’ के तरीके से स्नेहवश लोग यहाँ आएँ और हिल-मिलकर काम करें, समाज सेवा की बातें करें, दूसरों को उठाने की बातें करें। हम एक ऐसी दुनिया बसाना चाहते हैं, ऐसा नगर बसाना चाहते हैं, जिससे दुनिया को दिखा सकें कि भावी जीवन, भावी संसार अगर होगा तो स्वर्ग जैसा कैसे बनाया जा सकेगा? स्वर्ग में शान्ति का, परमार्थ का जीवन जीने के लिए क्या-क्या तकलीफें आ सकती हैं? ऐसा हम गायत्री नगर का उद्घाटन करते हैं। चूँकि हमारे गुरु ने यही दिया और उसके लिए वायदा किया कि तेरा ऊँचा उद्देश्य है, तो तेरे लिए कमी नहीं पड़ेगी। मैं भी आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अगर आपके जीवन में उद्देश्य ऊँचे हों तो आपको कमी नहीं रहेगी, कोई अभाव नहीं रहेगा। मेरी एक ही इच्छा और एक ही कामना रही है कि वसन्त पर्व के दिन आपको बुलाऊँ और अपने भीतर जो पक्ष है, उस पिटारी को खोलकर दिखाऊँ कि मेरे अन्दर कितना दर्द है? कितनी करुणा है? जीवन को पवित्र बनाने की कितनी संवेदना है? कितना देवत्व है? यही खोलकर आपको दिखाना चाहता था। अगर आपको ये चीजें पसन्द हों तो मैं चाहता हूँ कि आप इन चीजों को देखें, इनको परखें, छुएँ और अगर हिम्मत हो तो इनको खरीद ही ले जाएँ।
ॐ शान्ति।
.....समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य