रविवार, 15 अक्टूबर 2017

👉 देवत्व विकसित करें, कालनेमि न बनें (भाग 3)

🔴 साथियो ! आज गुरुपूर्णिमा का दिन है, आप में से हर एक आदमी की, देवता की जिम्मेदारी हम उठाते हैं। देवता जब रीछ-बन्दर बनकर चले आए थे तो पीछे उनके घर बीवी-बच्चे रह गए थे, कुटुम्ब रह गया था, उन सबको भगवान ने सँभाला था। आपके घर को सँभालने की, व्यापार को सँभालने की, खेती-बाड़ी को सँभालने की, हारी-बीमारी को सँभालने की जिम्मेदारी हमारी है और यह सब जिम्मेदारियाँ हम उठाते हैं। आप हमारा काम कीजिए हम आपका काम करेंगे। हम आपको यकीन दिलाते हैं, आप हमारा विश्वास कीजिए हम आपका काम जरूर करेंगे। पिता ने बच्चे का हर काम किया है। पिता से बच्चे ने जब जो माँगा है, दिया है।
   
🔵 जब टॉफी माँगी टॉफी दी है, झुनझुना माँगा तो झुनझुना दिया है। तुम तो छोटे बच्चे हो, इसलिए यही माँगते रहते हो। अब आगे से जो भी कहना हो बेटे लिखकर दे जाना। लिखना और कहना बराबर है और फिर हमारा जवाब सुनते जाना और नोट करके ले जाना कि गुरुजी ने यह वायदा किया है कि चौबीस पुरश्चरणों का जो पुण्य पहले कमाया था उसका और अब हमको तीन साल हो गए हैं, एकान्त मौन रहकर साधना की है, उसकी पुण्य-सम्पदा जो हमारे पास जमा है, उसमें आपका हिस्सा बराबर है। माँ के पेट में जब बच्चा आता है, तब कानूनन उसका हक बाप की जायदाद पर हो जाता है।

🔴 इसी तरह हमारी कमाई पर आपका हक है। प्रार्थना मत कीजिए, निवेदन मत कीजिए, मनुहार मत कीजिए, वरदान मत माँगिए। आप अपना हक माँगिए, हम आपका काम करते हैं और आपको हक चुकाना पड़ेगा। आप बीमार रहते हैं तो हम आपकी बीमारी को अच्छा करेंगे। आप पैसे की तंगी में आ गए हैं तो हम उस तंगी को भी दूर करेंगे। आप लड़ाई-झगड़े में फँस गए हैं तो हम उसमें भी आपकी मदद करेंगे। आप पर मुसीबत आ गई है तो आपकी ढाल बनकर उस मुसीबत को रोकेंगे।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

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