अपने अध्ययन काल में पोले बड़ा आलसी था। रात भर सोने के बाद भी वह दिन चढ़े तक सोया करता था। एक दिन उसका मित्र आया और उसको बिस्तर पर पड़े देखकर बोला- “तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते मैं रात भर न सो सका। मैं सिर्फ यही सोचता रहा तुम कितने बेवकूफ हो। मेरे पास इतने साधन है कि मैं जितना चाहूँ आराम कर लूँ, जितना चाहूँ आलस करूं, पर तुम गरीब हो, और आलस्य तुम्हें उचित नहीं। मैं शायद संसार में कुछ भी नहीं कर दिखा सकता अगर कोशिश भी करूं, पर तुम सब कुछ कर सकने में समर्थ हो। मुझे रातभर सिर्फ यह सोच कर नींद नहीं आई कि तुम बड़े मूर्ख हो और अब मैं तुमको गंभीरता पूर्वक सावधान करने और चेतावनी देने आया हूँ। अगर वास्तव में तुम इसी तरह आलसी बने रहे तो मैं तुम्हारा साथ हमेशा के लिए छोड़ दूँगा।”
यह प्रेम की ताड़ना थी। पोले के बाद का जीवन ‘मित्र’ के महत्व का सबसे बड़ा साक्षी है। अज्ञान और आलस्य के गहन अंधकार को मित्र का प्रकाश ही दूर कर सकता है।
यह प्रेम की ताड़ना थी। पोले के बाद का जीवन ‘मित्र’ के महत्व का सबसे बड़ा साक्षी है। अज्ञान और आलस्य के गहन अंधकार को मित्र का प्रकाश ही दूर कर सकता है।
अपनी सच्ची शक्तियों को पहचान लेने के बाद और उनमें विकास के लिए उचित सहयोग प्राप्त कर लेने के बाद जीवन संग्राम के लिए यात्रा करने का समय आ जाता है। उसी समय यह भी निश्चित कर लेना आवश्यक है कि हम अपने उद्देश्य कभी भी न बदलेंगे और सूत्र से काम लेंगे। प्रारम्भ में कोई भी काम अच्छा नहीं लगता और उसके कारण भी है, चाहे वह नौकरी हो, चाहे व्यापार हो या कला की उपासना, शुरू में ही सारे आयोजन इकट्ठा करने और उपयुक्त वातावरण तैयार करने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। लुढ़कते हुए पत्थर पर काई नहीं जमती और ‘रोम का निर्माण एक दिन में नहीं हुआ”- यह दो कहावतें याद रखनी चाहिए। जीवन में यदि सब्र और शाँति से काम लिया जाय तो असफल होने का कोई कारण नहीं रहता।
कभी-कभी ऐसा होता है कि जिस उद्देश्य को लेकर हम चलना चाहते हैं, दूसरे लोग उसे नीची दृष्टि से देखते हैं। ऐसी स्थिति में अपने मन चाहे काम से घृणा न करने लगना चाहिए। दूसरों को व्यर्थ में प्रसन्न करने और झूठा सम्मान प्राप्त करने के लिए अपनी प्रतिभा की भूख को मार डालना बड़ी बेवकूफी है। हर एक काम को ईमानदारी और सुरुचिपूर्ण ढंग से करके गौरव पूर्ण बनाया जा सकता है। सड़क पर एक गंदा टाट बिछाकर हजारों मक्खियों की भिनभिनाहट के बीच में बैठ कर जूता तैयार करने वाले मोची का व्यवसाय घृणित नहीं है, उसकी क्रिया प्रणाली घृणित है। बाजार में साफ सुथरे ढंग से बैठ कर और अपने ग्राहकों को अच्छा काम देकर वही मोची पूरा सम्मान प्राप्त कर सकता है।
जीवन संग्राम की तैयारी का प्रारंभ यहीं से होता है।
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📖 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1949 पृष्ठ 14
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1949/October/v1.15
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