रविवार, 24 मार्च 2019

👉 मौन बैठने से बदल सकता है आपका जीवन

अगर आप अपनी इच्छा से कुछ समय के लिए बोलना छोड़ दें, मौन धारण कर लें तो इससे आपको बहुत फायदे हो सकते हैं।

➡ मौन के लाभ
मौन की शुरुआत जुबान के चुप होने से होती है। धीरे-धीरे जुबान के बाद आपका मन भी चुप हो जाता है। मन में चुप्पी जब गहराएगी तो आंखें, चेहरा और पूरा शरीर चुप और शांत होने लगेगा। तब आप इस संसार को नए सिरे से देखना शुरू कर पाएंगे। बिल्कुल उस तरह से जैसे कोई नवजात शिशु संसार को देखता है। जरूरी है कि मौन रहने के दौरान सिर्फ श्वांसों के आवागमन को ही महसूस करते हुए उसका आनंद लें। मौन से मन की शक्ति बढ़ती है। शक्तिशाली मन में किसी भी प्रकार का भय, क्रोध, चिंता और व्यग्रता नहीं रहती। मौन का अभ्यास करने से सभी प्रकार के मानसिक विकार समाप्त हो जाते हैं। आइये जानते हैं मौन के सात महत्वपूर्ण फायदों के बारे में।

➡ संतुष्टि
कुछ न बोलना, यानि अपनी एक सुविधा से मुंह मोड़ना। जी हां, बोलना आपके लिए एक बहुत बड़ी सुविधा ही होती है। जो आपके मन में चल रहा होता है उसे आप तुरंत बोल देते हैं। लेकिन, मौन रहने से चीजें बिल्कुल बदल जाती हैं। मौन अभाव में भी खुश रहना सिखाता है।

➡अभिव्यक्ति
जब आप सिर्फ लिखकर बात कर सकते हैं तो आप सिर्फ वही लिखेंगे जो बहुत जरूरी होगा। कई बार आप बहुत बातें करके भी कम कह पाते हो। लेकिन ऐसे में आप सिर्फ कहते हो, बात नहीं करते। इस तरह से आप अपने आपको अच्छी तरह से व्यक्त कर सकते हैं।

➡प्रशंसा
हमारे बोल पाने की वजह से हमारा जीवन आसान हो जाता है, लेकिन जब आप मौन धारण करेंगे तब आपको ये अहसास होगा कि आप दूसरो पर कितना निर्भर हैं। मौन रहने से आप दूसरों को ध्यान से सुनते हैं। अपने परिवार, अपने दोस्तों को ध्यान से सुनना, उनकी प्रशंसा करना ही है।

➡ध्यान देना
जब आप बोल पाते हैं तो आपका फोन आपका ध्यान भटकाने का काम करता है। मौन आपको ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूर करता है। इससे किसी एक चीज या बात पर ध्यान लगाना आसान हो जाता है।

➡विचार
शोर से विचारों का आकार बिगड़ सकता है। बाहर के शोर के लिए तो शायद हम कुछ नहीं कर सकते, लेकिन अपने द्वारा उत्पन्न शोर को मौन जरूर कर सकते हैं। मौन विचारों को आकार देने में हमारी मदद करता है। हर रोज अपने विचारों को बेहतर आकार देने के लिए मौन रहें।

➡प्रकृति
जब आप हर मौसम में मौन धारण करना शुरू कर देंगे तो आप जान पाएंगे कि बसंत में चलने वाली हवा और सर्दियों में चलने वाली हवा की आवाज भी अलग-अलग होती है। मौन हमें प्रकृति के करीब लाता है। मौन होकर बाहर टहलें। आप पाएंगे कि प्रकृति के पास आपको देने के लिए काफी कुछ है।

➡शरीर
मौन आपको आपके शरीर पर ध्यान देना सिखाता है। अपनी आंखें बंद करें और अपने आप से पूछें, "मुझे अपने हाथ में क्या महसूस हो रहा है?" अपने शरीर को महसूस करने से आपका अशांत मन भी शांत हो जाता है। शांत मन स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है।

👉 आज का सद्चिंतन 24 March 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 24 March 2019


👉 Amrit Chintan

■ All dimensions of development and progress are the vision of “Yug Nirman Yojna.” (Transformation of the Era) We are inspired by the almighty for that. Who so ever will share this project will be properly gifted by the almighty. They will be blessed and feel so is mentioned in the scripture of “Kalki-Puran”.
 
□ To develop deep impression on the mind of family members and to develop moral codes life of great men of the history must be discussed in event and story forms. This solves the most of the negative reactions of daily happenings in life.

◆ It is through self-discipline and self-restrain that one develops control on his treasure mind. A firm believe on the ideality of life develops courage to act on those lines. This self introspection develops respect for others and develops gentlemen ship and responsibility of a good citizen. Without constant vigilance on self. True culture can not develop; only outward show of few courteous words will not hide your true nature for a long time.

◇ As it is said that man creates his own destiny. It means that every man have given a choice for self-growth in all dimensions. One must select his own ideal goal of life. If others don’t help he should works hard alone. This royal road may create obstructions and resistance but man have power with in to overcome that and attain excellence in any field of life.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 सूर्यकान्त मणि का उपयोग

महात्मा के पास ''सूर्यकान्त मणि'' थी। जब उनका अन्तकाल समीप आया तो बड़े प्रयत्न से अर्जित यह मणि उन्होने अपने पुत्र  सौमनस को दे दी और कहा- ' यह कामधेनु के समान मनोवाँछा प्रदान करने वाली है। इसको सम्भाल कर रखना। इससे तुम्हारी सब आवश्यकताएँ सहज में पूर्ण हो सकेगी और तुम्हें कभी किसी चीज का अभाव नहीं हो सकेगा।''

सौमनस ने मणि तो ले ली पर पिता के उपदेशों पर कुछ ध्यान नहीं दिया। रात्रि के समय दीपक के स्थान पर वह उसका उपयोग करने लगा। एक दिन उसकी प्रेयसी वेश्या ने उपहार में वह मणि माँगी और सौमनस ने उसे बिना किसी संकोच के दे डाली।'

वेश्या ने कुछ समय बाद एक जौहरी के हाथ उसे बेच दिया और उस धन से शृंगार की सामग्री खरीद ली। जौहरी ने मणि की परीक्षा ली और रासायनिक प्रयोगों द्वारा उसकी सहायता से बहुत- सा सोना बना लिया। इससे वह बड़ा वैभवशाली बन गया और अपना जीवन राजा- महाराजाओं की तरह व्यतीत करने लगा। अनेक दीन- दुखियों की भी उसने उस स्वर्ण राशि से बहुत सहायता की।

आनन्द ने' अपने शिष्य बिद्रुथ को यह कथा सुनाते हुए कहा- ' वत्स। यह जीवन सूर्यकान्त मणि के समान है। इसका सदुपयोग करना कोई- कोई पारखी जौहरी ही जानते हैं, अन्यथा सौमनस और गणिका की तरह उसे कौड़ी मील गँवा देने वाले ही अधिक होते हैं। ''

📖 प्रज्ञा पुराण भाग 1

👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 60 से 62





समाधिस्थो नारदोऽभूत्तस्मिन्नेव क्षणे प्रभु:।
प्रज्ञापुराणमेतत्तद्हृदयस्थम कारयत् ॥६०॥
उवाच च महामेघमण्डलीव समन्तत:।
कुरू त्वं मूसलाधारं वर्षां तां युगचेतनाम्॥६१॥
अनास्थाऽऽतपश्रष्कां च महर्षे धर्मधारणाम् ।
जीवयैतदिदं कार्यं प्रथमं ते व्यवस्थितम् ॥६२॥

टीका- नारद समाधिस्थ हो गये। भगवान् ने उस समय प्रज्ञापुराण कण्ठस्थ करा दिया और कहा-'इस युगचेतना की वर्षा मेघों की तरह सर्वत्र बरसाओ। अनास्था के आतप से सूखी धर्म-धारणा को फिर से हरी-भरी बना-दो तुम्हारा प्रथम काम यही है॥६०-६२॥

व्याख्या- बादलों का काम है बरसना तथा जल अभिसिंचन द्वारा सारी विश्व मानवता को तृप्त करना। जहाँ अकाल पड़ा हो वहाँ वर्षा की थोड़ी-सी बूंदें गिरते ही चारों और प्रसन्नता का साम्राज्य छा जाता है-कुछ ही समय में हरियाली फैली दिखाई पड़ती है। समुद्र सें उठने वाली भाप जब बादल बनती है तो उसका एक ही उद्देश्य रहता हैं-वनस्पति जगत तथा सारे जीव जगत में प्राण भर देना।

चेतना विस्तार की यही भूमिका अवतार, महामानव, अग्रदूत, जागृत आत्माएँ निभाती हैं। उनका उद्देश्य भी यही होता है। आस्था संकट का जो मूल उद्गम है-अन्त:करण, वहाँ वे व्यक्ति-व्यक्ति तक पहुँचकर उसके अन्दर हलचल मचाते हैं। मरुस्थल बन गये अन्तस्थल में संवेदनाएँ उभारते हैं, आदर्शवादी उत्कृष्टता के प्रति-समर्पण की भविष्य-जगाते हैं। अवतार की प्रक्रिया यही है। भगवान ने नारद ऋषि को वही काम सौंपा ताकि प्रस्तुत परिस्थितियों में परिव्रज्या द्वारा वे जन-जन में प्रज्ञावतार की प्रेरणा भर सकें। परिवर्तन-विचारणा में परिष्कार तथा संवेदनाओं में उत्कृष्टता परायण उभार की ही परिणति है। युग परिवर्तन की प्रक्रिया जो अगले दिनों सम्पादित होने जा रही है, उसका प्रथम चरण यही है।

महाकाल ने हमेशा बीज रूप में उपयुक्त पात्र को यह संदेश दिया हैं, वही कालान्तर में फला और मेघ की भूमिका उसनें निभाई है। इसी तथ्य को रामायणकार ने इस तरह समझाया है-

'राम सिंधु धन सज्जन धीरा । चन्दन तरु हरि सन्त समीरा॥'

अर्थात्- 'भगवान समुद्र हैं तो सज्जन व्यक्ति बादल के समान । चन्दन वृक्ष यदि भगवान है तो सन्त पवन की तरह मलयज सुगन्ध को फैलाने वाले। ' भगवान से अर्थ है आदर्शवादिता का समुचय। मेघ व पवन की ही भाँति संत व सज्जन उस युगचेतना को विस्तारित करते हैं, असंख्यों को धन्य बनाते हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 24-25

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