गुरुवार, 22 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 22 June 2023

🔷 ‘करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’ यह सिद्धान्त मात्र सूक्ति ही नहीं, बल्कि यह पुरुषार्थी एवं परिश्रमी व्यक्तियों का अनुभव सिद्ध सत्य है। परिश्रम के अभाव में प्रतिभा बेकार पड़ी रहती है, पर काम करते-करते योग्यता का विकास हो जाया करता है। प्रतिभा को उन्नति का आधार मानने वालों को यह बात न भूलनी चाहिए कि परिश्रम प्रतिभा का पिता है।

🔶 सहानुभूति दूसरों का प्रेम पाने का सर्वोत्तम उपाय है और आत्म संतोष का सर्वसुलभ साधन है।  जिस व्यक्ति, जिस समाज में सहानुभूति जिन्दा रहती है, दुःख-दर्द और अभाव में भी वहाँ के प्राणी राहत अनुभव करते हैं और दिव्य प्रेम के आदान-प्रदान का सुख प्राप्त करते हैं।

🔷 विश्वास रखिए संसार के प्रत्येक मनुष्य के भीतर कोई न कोई महान् पुरुष सोया पड़ा रहता है। आपके अंदर भी है। यदि ऐसा न होता तो एक साधारण दीन-हीन मजूदर का अपढ़ पुत्र अब्राहम लिंकन संसार का महान् व्यक्ति न हो पाता। एक जिल्दसाज की नौकरी करने वाला माइकल फैरिडे महान् वैज्ञानिक न होता। साधारण वकील के स्तर से महात्मा गाँधी विश्व बंधु बापू न हो पाते।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 कभी उधार न लीजिये-

उधार एक ऐसी बला है, जो मनुष्य की सब शक्तियों को क्षीण कर डालती है। उसे सबके सामने नीचा देखना पड़ता है, हाथ तंग रहता है। 

“उधार लेने की आदत कैसी है, इस पर दो राये नहीं हो सकतीं। इसका तो एक ही उत्तर है- आदत बहुत बुरी है। उधार लेते समय तो चाहे वह रुपया हो या और कोई चीज कुछ पता नहीं चलता, परन्तु देते समय दशा बिगड़ जाती है। ऐसा लगता है, जैसे पैसे फेंक रहे हैं। धीरे-2 यह आदत इतनी जोर पकड़ती है कि उधार की चीज या पैसा लौटाने को मन नहीं होता और फल यह होता है- मित्रों का कन्नी काटना, समाज में निरादर, बदनामी आदि। फिर वह “भेड़िया आया” वाली बात होती है। यदि कभी वास्तविक आवश्यकता पड़ी भी तो पैसा नहीं मिलता। इसलिए निश्चय करना चाहिए कि कभी कोई चीज या रुपया उधार नहीं लेंगे।”

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ऋण के चार प्रमुख कारण बतलाये हैं- कपड़े-लत्ते, जूता, तड़क भड़क और आमोद-प्रमोद। ऋण पर ऋण बढ़ता है और उसका तार जीवन भर नहीं छूटता। शुक्ल जी लिखते हैं-“ऋण एक नाले के समान है, जो ज्यों ज्यों आगे चलता है, त्यों त्यों बढ़ता है। सबसे बुरी बात ऋण में यह है कि जिसे ऋण का अभ्यास पड़ जाता है, उसकी घडक खुल जाती है, उसे आगम का भय नहीं रहता और जब तक उसका नाश नहीं होता, तब तक वह विष का घूँट बराबर पिये जाता है। यदि उसका चित्त ऐसा हुआ कि जिसमें लतें जल्दी लगती हो, तो वह निर्द्वन्द्व न रह सकेगा, ऋण के बराबर बढ़ते हुए बोझ से दब कर वह छटपटाया करेगा।

आमदनी और खर्च के ऊपर तीखी दृष्टि रखिये। व्यय से पूर्व आमदनी खर्च का एक चिट्ठा-बजट-तैयार कर लीजिये। जो बुद्धिमान व्यक्ति अपने रुपये से अधिकतम लाभ और उपयोगिता प्राप्त करना चाहता है, कर्ज से बच कर सज्जन नागरिक का प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत करना चाहता है, उसे बजट बनाना आवश्यक है। बजट हमें फिजूलखर्ची से सावधान करता है। सब व्यय तथा आमदनी नक्शे की तरह हमारे समाने रहती है। टिकाऊ वस्तुओं पर खर्च होता है, विलासिता से मुक्ति होती है।

अखण्ड ज्योति जनवरी 1950 पृष्ठ 10


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