शनिवार, 11 जनवरी 2020

👉 नारी का सम्मान


👉 दिमाग की शक्ति


👉 भारत माता

भारत माता का आँचल हिमालय के श्वेत शिखरों से लेकर केरल की हरियाली तक फैला हुआ है। कन्याकुमारी के महासागर की तरंगों में इसकी तिरंगी आभा लहराती है। माता अपने आँचल में अपनी सभी एक सौ तीस करोड़ संतानों को समेटे हुए हैं। सभी जातियाँ, सभी वंश इसी की कोख से उपजे हैं। अपनी छाती चीरकर सभी के लिए पोषण की व्यवस्था जुटाती है। संतानों का सुख ही इस माँ का सुख है, संतानों का दुःख ही इसकी पीड़ा।
  
इस प्रेममयी जननी ने अपने पुत्रों के लिए, पुत्रियों के लिए बहुत कुछ सहा है। परायों के आघातों ने इसे कष्ट तो दिया, पर इसके धैर्य को डिगा नहीं पाये। गोरी, गजनी जैसे आक्रान्ताओं की मर्मान्तक चोटों को इसने न केवल सहा, बल्कि उन्हें उदारतापूर्वक क्षमा भी किया। तैमूरलंग, चंगेजखान की क्रूरताओं को इसने बिना विचलित हुए बर्दाश्त किया। यहाँ तक कि इन सभी के वंशजों को अपनी संतान समझकर अपने आँचल की छाँव दी।
  
यह क्षमामयी माता बिलखी तो तब, तड़पी तो तब, जब अपनों ने ही मीरजाफर, जयचन्द बनकर इस पर वार किये। माँ की ममता को छला, इसकी भावनाओं को आहत किया, कोख को लजाया। आज भी जब इसके अपने बच्चे परायों के बहकावे में आकर अपनों को आतंकित करते हैं, क्रूरता के कुकृत्य करते हैं, तो इस धैर्यमयी का धीरज रो पड़ता है। समझ में नहीं आता कि यह किससे कहें, कैसे कहें अपनी पीड़ा? कहाँ बाँटें अपना दर्द।
  
हालाँकि भारत माता के सत्पुत्रों, सत्पुत्रियों की भी कमी नहीं है। वीर शिवाजी, महाप्रतापी राणाप्रताप, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, इसके यश को दिगन्तव्यापी बनाने वाले विवेकानन्द, इस पर अपने सुखों को न्यौछावर करने वाले सुभाष, गाँधी, इसके दुःखों को मिटाने के लिए सदा-सर्वदा तप में रत युगऋषि आचार्य श्रीराम शर्मा-इन मातृभक्तों ने ही तो इसे गुलामी से मुक्त कर गौरान्वित किया। आज माता ने फिर से अपनी संतानों की संवेदना को पुकारा है, जो इसकी कोख का मान रखें, इसके आँचल की अखण्डता बनाये रखें।

✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १५८

👉 FALLACIES ABOUT SCRIPTURAL RESTRICTIONS (Part 4)

Q.4. I have already taken Diksha (initiation) from a Guru. Will it be proper for me to seek another Guru?

Ans. There are no restrictions on choosing more than one Guru. It all depends on the type and level of achievement sought for. Ram had Vashistha as his family Guru and Vishwamitra for learning of martial and other branches of knowledge. Dattatreya is known for having twenty four Gurus. Durvasa was family-Guru of Krishna and Brahaspati was his Guru in respect of learning the specific branches of knowledge.              

In schools, with the change in class, teachers also change. Village Purohit, Teerth Purohit, Family Purohit, Dikcha Purohit, Sadhana Purohit are all different. They do not contradict but supplement each other.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Gayatri Sadhna truth and distortions Page 48

👉 नव निर्माण हेतु विभूतियों का आह्वान (भाग ४)

(४) विज्ञान-विज्ञान की उपलब्धियाँ आश्चर्यजनक हैं। उसने मानवी सुख सुविधाओं में आश्चर्यजनक अभिवृद्धि की है। पर यह भी सही है कि उसके दुरुपयोग से होने वाली हानियाँ भी कम नहीं उठानी पड़ रही हैं। अस्त्रों के उत्पादन में विशेषतया गैसें, किरणें एवं अणु विस्फोटजन्य अस्त्रों ने तो संसार के अस्तित्व को ही संकट में डालने वाली विभीषिका उत्पन्न कर दी है। यदि यह शोध, आविष्कार सृजनात्मक प्रयोजनों तक ही सीमित रहे, तो उसका प्रतिफल धरती पर स्वर्गीय परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है। ध्वंसात्मक उपकरण जुटाने में जितने साधन खपाये जा रहे हैं, यदि उन्हें मानवी अभावों और शोक-सन्तापों की निवृत्ति में लगा दिया जाय, तो उसका प्रतिफल इस संसार को स्वर्गोपम बनाने में हो सकता है। समुद्र के खारे पानी से मीठा जल प्राप्त किया जा सकता है। जमीन के नीचे बहने वाली विशाल नदियों का जल धरती पर लाया जा सकता है और सारी दुनियाँ सचमुच शस्यश्यामला बन सकती है। कृषि, पशुपालन, बागवानी, वन सम्पदा, स्वास्थ्य सम्वर्धन और मस्तिष्कीय विकास की दिशा में विज्ञान को अभी बहुत काम करना बाकी है। प्रकृति के प्रकोपों से लोहा लेने के साधन जुटाने में, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, महामारी, भूकम्प, बाढ़, तूफान, शीत-ताप की असहनीयता का सामना करने योग्य शक्ति का उपार्जन हो सकता है। वाहनों को सरल एवं सस्ता बनाया जा सकता है, संचार साधनों के विस्तार की अभी बहुत गुंजायश है।

(५) शासन सत्ता-राज सत्ता जिनके हाथ में इन दिनों है अथवा अगले दिनों आने वाली है, उन्हें संकीर्ण राष्ट्रीयता के अपने प्रिय क्षेत्र या वर्ग के लोगों को लाभान्वित करने की बात छोड़कर समस्त विश्व में समान रूप से सुख शान्ति की बात सोचनी होगी और समस्त संसार को एक परिवार बनाने की नीति अपना कर प्रकृति प्रदत्त साधनों एवं मानवी उपार्जन को समान रूप से सर्वसाधारण के लिए उपलब्ध करना होगा। युद्धों की भाषा में सोचना बन्द कर न्याय का आधार स्वीकार करना होगा। वर्गभेद और वर्णभेद की जड़े उखाड़नी होंगी।

.....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...