उचित दिशा में चलता हुआ मन आशावादी, दूरदर्शी, पुरुषार्थ, गुणग्राही, और सुधारवादी होता रहने वाला, तुरन्त की बात सोचने वाला, भाग्यवादी, कठिनाइयों की बात सोच−सोचकर खिन्न रहने वाला और आपका पक्षपात करने वाला होता है। वह परिस्थितियों के निर्माण में अपने उत्तरदायित्व को स्वीकार नहीं करता। मन पत्थर या काँच का बना नहीं होता जो बदला न जा सके। प्रयत्न करने पर मन को सुधारा और बदला जा सकता है। यह सुधार ही जीवन का वास्तविक सुधार है। युग−निर्माण का प्रमुख आधार यह मानसिक परिवर्तन ही है। दुमुँहे साँप की उलटी चाल को यदि सीधी कर दिया जाय तो वह पीछे लौटने की अपेक्षा स्वभावतः आगे बढ़ने लगेगा।
हमारा मन यदि अग्रगामी पथ पर बढ़ने की दिशा पकड़ ले तो जीवन के सुख शान्ति और भविष्य के उज्ज्वल बनने में कोई सन्देह नहीं रह जाता। कई लोग ऐसा सोचते रहते हैं कि आज जो कठिनाइयाँ सामने हैं वे कल और बढ़ेंगी, इसलिए परिस्थिति दिन−दिन अधिक खराब होती जावेंगी और अन्त बहुत दुखमय होगा। जिनके सोचने का क्रम यह है कल्पना शक्ति उनके सामने वैसे ही भयंकर संभावनाओं के चित्र बना-बनाकर खड़ी करती रहती है, जिससे दिन−रात भयभीत होने और परेशान रहने का वातावरण बना रहता है। निराशा छाई रहती है। भविष्य अन्धकारमय दीखता है। दुर्भाग्य की घटाऐं चारों ओर से घुमड़ती आती हैं। इस प्रकार के कल्पना चित्र जिसके मन में उठते रहेंगे वह खिन्न और निराश ही रहेगा और बढ़ने एवं पुरुषार्थ करने की क्षमता दिन−दिन घटती चली जायगी। अन्त में वह इसी मानसिक दुर्बलता के कारण लुञ्ज−पुञ्ज एवं सामर्थ्यहीन बन जायेगा किसी काम को आरंभ करते ही उसके मन में असफलता की आशंका सामने खड़ी काम करते न बन पड़ेगा। ऐसे लोगों का शंका शंकित मन से किया हुआ कार्य सफलता की मंजिल तक पहुँच सकेगा इसकी संभावना कम ही रहेगी।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जून 1962