शनिवार, 2 जून 2018

आज के समय के सन्दर्भ में परम पूज्य गुरुदेव ( डॉ चिन्मय पंड्या)



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👉 हिन्दू वीर योद्धा “तक्षक”

🔷 सन 711ई. की बात है। अरब के पहले मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने मुल्तान विजय के बाद  एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं, इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब मरीं।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया। भारतीय सैनिकों ने ऎसी बर्बरता पहली बार देखी थी।

🔶 एक बालक तक्षक के पिता कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। लुटेरी अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी।भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं।
तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला।उसके बाद अरबों द्वारा उनकी काटी जा रही गाय की तरफ और  बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली, और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया।

🔷 आठ वर्ष का बालक तक्षक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भाग गया।
                              
🔶 25 वर्ष बीत गए। अब वह बालक बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज  के गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था। वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी। उसकी आँखे सदैव प्रतिशोध की वजह से अंगारे की तरह लाल रहती थीं। उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था। कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम से अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे अरब कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे,पर हर बार योद्धा गुर्जर प्रतिहार उन्हें खदेड़ देते। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण मुस्लिम शासक आदत से मजबूर बार बार मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे। ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था।

🔷 इस बार फिर से सभा बैठी थी, अरब के खलीफा से सहयोग ले कर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी। सारे सेनाध्यक्ष अपनी अपनी राय दे रहे थे...तभी अंगरक्षक तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला---
महाराज, हमे इस बार दुश्मन को उसी की शैली में उत्तर देना होगा।

🔶 महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- "अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।"

🔷 "महाराज, अरब सैनिक महाबर्बर हैं, उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।"

महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले-
"किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक। "

🔶 तक्षक ने कहा- "मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों। ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज। इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है।"

"पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर"

🔷 "राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा। देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था। ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह आप भली भाँति जानते हैं।"

🔶 महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए।

🔷 अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।

🔶 आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी। अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते,सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए।

🔷 इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था।वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। आज माँ और बहनों की आत्मा को ठंडक देने का समय था....

🔶 उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।

🔷 विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था।सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा-लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया। युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा-

🔶 "आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक.... भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।"

🔷 इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों कीें भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।
तक्षक ने सिखाया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण दिए ही नही, लिए भी जाते है, साथ ही ये भी सिखाया कि दुष्ट सिर्फ दुष्टता की ही भाषा जानता है, इसलिए उसके दुष्टतापूर्ण कुकृत्यों का प्रत्युत्तर उसे उसकी ही भाषा में देना चाहिए अन्यथा वो आपको कमजोर ही समझता रहेगा।

👉 शान्त विचारों की शक्ति

🔷 हमारे मन में दो प्रकार के विचार आते हैं−एक उद्वेग युक्त और दूसरे शान्त। भय, क्रोध, शोक, लोभ आदि मनोवेगों से पूरित विचार उद्वेग युक्त विचार हैं और जिनके विचारों में मानसिक उद्वेगों का अभाव रहता है उन्हें शान्त विचार कहा जाता है। हम साधारणतः विचारों के बल को उससे सम्बन्धित उद्वेगों से ही नापते हैं। जब हम देखते हैं कि कोई व्यक्ति अवश्य ही कुछ कर दिखावेगा। पर क्रोधातुर व्यक्ति से उतना अधिक डरने का कारण नहीं जितना कि शान्त मन के व्यक्ति से डरने का कारण है। भावावेश में आने वाले व्यक्ति यों के निश्चय सदा डावाँडोल रहते हैं। भावों पर विजय प्राप्त करने वाले व्यक्ति के निश्चय स्थिर रहते हैं। वह जिस काम में लग जाता है उसे पूर्ण करके दिखाता है।

🔶 उद्वेग पूर्ण विचार वैयक्तिक होते हैं उनकी मानसिक शक्ति वैयक्तिक होती है, शाँत विचार बृहद् मन के विचार हैं, उनकी शक्ति अपरिमित होती है। मनुष्य जो निश्चय शान्त मन से करता है उसमें परमात्मा का बल रहता है और उसमें अपने आपको फलित होने की शक्ति होती है। अतएव जब कोई व्यक्ति अपने अथवा दूसरे व्यक्ति के कल्याण के लिये कोई निश्चय करता है और अपने निश्चय में अविश्वास नहीं करता तो वह निश्चय अवश्य फलित होता है। शान्त विचार सृजनात्मक और उद्वेगपूर्ण विचार प्रायः विनाशकारी होते हैं। किसी भी प्रकार के विचार में अपने आपको फलित करने की शक्ति होती है। पर यह शक्ति सन्देह के कारण नष्ट हो जाती है। जिन विचारों को हेतु वैयक्तिक होता है उनमें अनेक प्रकार के सन्देह उत्पन्न होते हैं। अतएव उनके विचार की शक्ति नष्ट हो जाती है। जब कोई मनुष्य अपने विचारों में किसी भी प्रकार का सन्देह नहीं लाता तो विचार स्वतः ही फलित हो जाते हैं। सन्देहों को रोकने के लिये अपनी आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास होना आवश्यक है।

🔷 अपने आपकी ही अनुकूलता ईश्वर और प्रकृति की अनुकूलता के विश्वास के रूप में मनुष्य की भावना के समक्ष आती हैं। ये भावनायें अचेतन मन की अनुभूति के प्रतिभास मात्र हैं। मनुष्य अपनी आन्तरिक अनुभूति के अनुसार अनेक प्रकार की कल्पनाओं को रचता है। इन कल्पनाओं की वास्तविकता उसकी अज्ञात वास्तविक प्रेरणा पर निर्भर करती है। कल्पनायें वैसी ही होती हैं जैसी की आन्तरिक प्रेरणा होती है। मनुष्य की कल्पनायें ही उसे आशावादी ओर निराशावादी बनाती है अर्थात् मन का जैसा रुख होता है उसी प्रकार की कल्पनायें मन करने लगता है। ईश्वरवादी विश्वास में लगता है कि ईश्वर उसे आगे ले जा रहा है और जड़वादी विश्वास करने लगता है कि प्रकृति उसे आगे ले जा रही है। प्रगति और अप्रगति के सभी प्रमाण मनुष्य के रुख पर निर्भर करते हैं।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति, मई 1955 पृष्ठ 6

👉 भारत को ईसाई बनाने का षडयन्त्र (भाग 1)

🔷 ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’—अर्थात् अति का हर क्षेत्र में निषेध है। बुरी बात तो बुरी बात ही होती है, उसमें अति या अनीति का प्रश्न ही क्या? अच्छी बात भी जब अपनी वांछित मर्यादा का उल्लंघन कर जाती है, तो वह बुराई की कोटि में पहुंच जाती है।

🔶 धार्मिक सहिष्णुता एक महान गुण है। किसी दूसरे के धार्मिक विचारों तथा कार्यों में हस्तक्षेप न करना स्वयं ही एक धार्मिकता है। हिन्दुओं ने इस गुण का जितना व्यापक परिचय दिया है, उसका हजारवां भाग भी संसार की कोई अन्य जाति न दे सकी। बल्कि यह कहने में भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि वेद-धर्म के अनुयायियों को छोड़कर संसार की अधिकांश जातियों ने असहिष्णुता का ही परिचय दिया है।

🔷 हिन्दुओं की इस सहिष्णुता से प्रोत्साहित होकर अन्य धर्मावलम्बियों ने क्या-क्या किया और इससे हिन्दू राष्ट्र को कितनी क्षति हुई है? यह बात किसी से छिपी नहीं है। विगत हानियों तथा अत्याचारों की चर्चा करना बेकार है। किन्तु वर्तमान में हिन्दू-जाति पर ईसाइयों का जो आक्रमण हो रहा है, उसकी ओर से आंखें बंद नहीं की जा सकती हैं।

🔶 भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है और भारत सरकार धर्मनिरपेक्षता की संरक्षिका। विधान की इस धारा के अनुसार भारत में सभी धर्मों को फलने-फूलने और विकसित होने का अधिकार है। किन्तु इसका तह आशय कदापि नहीं कि कोई एक धर्म दूसरे किसी धर्म को मिटाकर फूल-फल सकता है। ईसाई पादरी भारतीय विधान की इस धारा का दुरुपयोग करके हिन्दू धर्म को मिटाकर अपने ईसाई धर्म का विस्तार करने में बुरी तरह जुटे हुए हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 भारतीय संस्कृति की रक्षा कीजिए पृष्ठ 33

👉 स्वयं पर विश्वास ही सफलता का पैमाना है

🔷 सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉक्टर जगदीशचंद्र बोस ने यह खोज की थी कि सभी पेड़-पौधों में जीव-जंतु एवं प्राणी की तरह ही प्राण होते हैं, वे दुःख-दर्द का अनुभव करते हैं। यदि पौधों को जहर दे दिया जाए, तो वे भी मर जाते हैं। अपने इस शोध का प्रदर्शन करने के दौरान, इंग्लैंड में उन्होेंने एक इंजेक्शन में जहर भरकर उसे एक पौधे में लगा दिया, लेकिन पौधा मरा नहीं। वहाँ  पर एकत्रित भीड़ उनकी हंसी उड़ाने लगी ।

🔶 चूँकि उन्हें अपनी खोज और उससे कहीं ज्यादा अपने आप पर पूरा भरोसा था, उसी वक्त उन्होंने सोचा कि जब यह पौधा इस जहर से नहीं मर सकता, तो मैं भी इस जहर से कैसे मर सकता हूँ?

🔷 वे उसी जहर का इंजेक्शन स्वयं में भी लगाने को तैयार हुए कि आयोजकों में से एक व्यक्ति ने उनका हाथ रोककर कहा- ‘सर, हमने जहर के स्थान पर इस शीशी में रंगीन पानी भर दिया था।‘

🔶 डॉक्टर बोस ने वह प्रयोग वास्तविक जहर से दोबारा किया और पौधा धीरे-धीरे मुरझा गया।

🔷 उन्होंने अपने प्रयास और स्वयं पर इतना अटूट विश्वास था कि अंत में पूरे विश्व को उनकी इस खोज पर पूर्ण मान्यता देनी पड़ी।

🔶 तो दोस्तों , यह होती है स्वयं पर विश्वास की ताकत | अगर डॉक्टर बोस को अपने ऊपर इतना विश्वास नहीं होता तो वह भी और लोगो की तरह ही अपनी खोज को बेकार मान लेते लेकिन अपनी विश्वास के दम पर उन्होंने पूरे विश्व को झुका दिया।

🔷 अगर हमें अपने आप पर भरोसा है , विश्वास है तो सिर्फ ये सोच लेने से ही “कि मैं इस कार्य को ज़रूर कर लूंगा ” हमारे अंदर इतना आत्मविश्वास आ जाता है कि हम बड़े से बड़ा और मुश्किल से मुश्किल कार्य भी बहुत आसानी से कर देते है और अपने आत्मविश्वास कि बल पर हम दुनिया को झुका सकते है।

🔶 अगर हमें अपने आप पर अटूट विश्वास है तो दूसरे लोग भी हम पर भरोसा करेंगे और ये ही हमारी सफलता का पैमाना है।

http://awgpskj.blogspot.com/2016/07/blog-post_80.html

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