स्वामी विवेकानन्द ने कहा है- ”हम जितना साध्य पर ध्यान देते हैं, उससे अधिक साधन पर दें। यदि साधन ठीक होंगे तो सही परिणाम मिलेगा ही। कारण से ही कार्य की उत्पत्ति होती है। कार्य अपने आप नहीं आ सकता। कारण जब तक उपयुक्त , ठीक और बलशाली न होगा तब तक ठीक परिणाम नहीं मिल सकता। एक बार हम अपना लक्ष्य बना लेते है और ठीक-ठीक साधनों का निश्चय हो जाय, तो फल तो मिलेगा ही यदि साधन में पूर्णता है। यदि हम कारण की परवाह करते हैं तो फल अपने आप स्वयं की परवाह कर लेगा। साधन ही कारण है, इसलिए उन पर ध्यान देना ही साध्य का रहस्य है।”
इसमें कोई सन्देह नहीं कि साध्य कितना ही पवित्र उत्कृष्ट महान् क्यों न हो यदि उस तक पहुँचने का साधन गलत है, दोषयुक्त क्यों है तो साध्य की उपलब्धि भी असम्भव है। जिस तरह मिट्टी का तेल जला कर वातावरण को सुगन्धित नहीं बनाया जा सकता, उसी तरह दोष-युक्त साधनों के सहारे उच्चस्थ लक्ष्य को प्राप्त करना असम्भव है। वातावरण की शुद्धि के लिए सुगन्धित द्रव्य जलाने होंगे। उत्तम साध्य के लिए उत्तम साधनों का होना आवश्यक है, अनिवार्य है। ठीक इसी तरह उत्कृष्ट साध्य-लक्ष्य का बोध न हो तो उत्तम साधन भी हानिकारक सिद्ध हो जाते हैं।
आज हमारी सबसे बड़ी भूल यह है कि हम साध्य तो उत्तम चुन लेते हैं, महान् लक्ष्य भी निर्धारित कर लेते है, लेकिन उसके अनुकूल साधनों पर ध्यान नहीं देते। इसीलिए हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में गतिरोध पैदा हो जाता है। और साध्य से हम दूर भटक जाते हैं हम जो कुछ भी लक्ष्य निर्धारित करते हैं, तो फिर हमारा ध्यान उस लक्ष्य पर ही रहता है। उसे कैसे जैसे भी प्राप्त कर लिया जाय, यही हमारी साधना होती है। और कई बार भ्रम में भटक कर हम गलत साधनों का उपयोग कर बैठते है। फलतः साध्य के प्राप्त होने का जो सन्तोष और प्रसन्नता मिलनी चाहिए, उससे हम वंचित रह जाते हैं।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि साध्य कितना ही पवित्र उत्कृष्ट महान् क्यों न हो यदि उस तक पहुँचने का साधन गलत है, दोषयुक्त क्यों है तो साध्य की उपलब्धि भी असम्भव है। जिस तरह मिट्टी का तेल जला कर वातावरण को सुगन्धित नहीं बनाया जा सकता, उसी तरह दोष-युक्त साधनों के सहारे उच्चस्थ लक्ष्य को प्राप्त करना असम्भव है। वातावरण की शुद्धि के लिए सुगन्धित द्रव्य जलाने होंगे। उत्तम साध्य के लिए उत्तम साधनों का होना आवश्यक है, अनिवार्य है। ठीक इसी तरह उत्कृष्ट साध्य-लक्ष्य का बोध न हो तो उत्तम साधन भी हानिकारक सिद्ध हो जाते हैं।
आज हमारी सबसे बड़ी भूल यह है कि हम साध्य तो उत्तम चुन लेते हैं, महान् लक्ष्य भी निर्धारित कर लेते है, लेकिन उसके अनुकूल साधनों पर ध्यान नहीं देते। इसीलिए हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में गतिरोध पैदा हो जाता है। और साध्य से हम दूर भटक जाते हैं हम जो कुछ भी लक्ष्य निर्धारित करते हैं, तो फिर हमारा ध्यान उस लक्ष्य पर ही रहता है। उसे कैसे जैसे भी प्राप्त कर लिया जाय, यही हमारी साधना होती है। और कई बार भ्रम में भटक कर हम गलत साधनों का उपयोग कर बैठते है। फलतः साध्य के प्राप्त होने का जो सन्तोष और प्रसन्नता मिलनी चाहिए, उससे हम वंचित रह जाते हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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