मंगलवार, 8 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 8 Aug 2023

हमें मूक सेवा को महत्त्व देना चाहिए। नींव के अज्ञात पत्थरों की छाती पर ही विशाल इमारतें तैयार होती हैं। इतिहास के पन्नों पर लाखों परमार्थियों में से किसी एक का नाम संयोगवश आ पाता है। यदि सभी स्वजनों का नाम छापा जाने लगे तो दुनिया का सारा कागज इसी काम में समाप्त हो जाएगा। यह सोचकर हमें प्रशंसा की ओर से उदास ही नहीं रहना चाहिए, वरन् उसको तिलांजलि भी देनी चाहिए। नामवरी के लिए जो लोग आतुर हैं उनको निम्न स्तर का स्वार्थी ही माना जाना चाहिए।

युग परिवर्तन का श्रीगणेश इस प्रकार होगा कि जिनकी अंतरात्मा में भगवान् ने देश, धर्म की बात सोचने-समझने की दूरदृष्टि दी हो वे अपना जीवन लक्ष्य भोग से बदलकर त्याग कर लें। समृद्ध बनने की महत्त्वाकाँक्षा को पैरों तले कुचल दें और प्रबुद्ध बनने में गर्व गौरव अनुभव करने लगे।

आज प्रबुद्ध लोगों की स्थिति भी यह है कि वे लम्बी चौड़ी योजनाएँ बनाने, वाद-विवाद एवं आलोचना करने में तो बहुत सिर खपाते हैं, पर रचनात्मक कार्य करने के लिए जब समय आता है तो बगलें झाँकते हैं, दाँत निपोरते हैं और तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। इस स्थिति को बदला जाना चाहिए। भावनाशील लोगों को आदर्शवाद की चर्चा करते रहने की परिधि तोड़कर अब कुछ करने के लिए आगे आना चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 आकांक्षाएँ उचित और सोद्देश्य हों

न जाने किस कारण लोगों के मन में यह भ्रम पैदा हो गया है कि ईमानदारी और नीतिनिष्ठा अपनाकर घाटा और नुकसान ही हाथ लगता है। संभवतः इसका कारण यह है कि लोग बेईमानी अपनाकर छल-बल से, धूर्तता और चालाकी द्वारा जल्दी-जल्दी धन बटोरते देखे जाते हैं। तेजी से बढ़ती संपन्नता देखकर देखने वालों के मन में भी वैसा ही वैभव अर्जित करने की आकांक्षा उत्पन्न होती है। वे देखते हैं कि वैभव संपन्न लोगों का रौब और दबदबा रहता है। किंतु ऐसा सोचते समय वे यह भूल जाते हैं कि बेईमानी और चालाकी से अर्जित किए गए वैभव का रौब और दबदबा बालू की दीवार ही होती है, जो थोड़ी-सी हवा बहने पर ढह जाती है तथा यह भी कि वह प्रतिष्ठा दिखावा, छलावा मात्र होती है क्योंकि स्वार्थ सिद्ध करने के उद्देश्य से कतिपय लोग उनके मुँह पर उनकी प्रशंसा अवश्य कर देते हैं, परंतु हृदय में उनके भी आदर भाव नहीं होता।

इसके विपरीत ईमानदारी और मेहनत से काम करने वाले, नैतिक मूल्यों को अपनाकर नीतिनिष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले भले ही धीमी गति से प्रगति करते हों परन्तु उनकी प्रगति ठोस होती है तथा उनका सुयश देश काल की सीमाओं को लांघकर विश्वव्यापी और अमर हो जाता है।

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
बड़े आदमी नहीं महामानव बनें, पृष्ठ 3

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