🔶 क्रोध प्राणहरः शत्रुः क्रोधऽमित्रमुखो रिपुः। क्रोधोऽसि महातीक्षणः सर्व क्रोधोऽर्षति॥
त्पते यतते चैव यच्च दानं प्रयच्छति। क्रोधेन सर्व हरति तस्मात क्रोधं विवजयेत्॥
(बाल्मीकि रामायण उत्तर. 71)
🔷 अर्थात् क्रोध प्राण हरण करने वाला शत्रु, क्रोध अमित्र - मुखधारी बैरी है, क्रोध महा तीक्ष्ण तलवार है, क्रोध सब प्रकार से गिराने वाला है, क्रोध तप, संयम, और दान सभी हरण कर लेता है। अतएव, क्रोध को छोड़ देना चाहिए।
🔶 क्रोध त्याग की महिमा बताते हुए श्री शुक्राचार्य जी अपनी कन्या देवयानी से कहते हैं- “देवयानी! जो नित्य दूसरों के द्वारा की हुई अपनी निन्दा को सह लेता है, तुम निश्चय जानो कि उसने सब को जीत लिया। जो बिगड़ते हुए घोड़ों के समान उभरे हुए क्रोध को जीत लेता है, उसी को साधु लोग जितेन्द्रिय कहते हैं, केवल घोड़ों की लगाम हाथ में रखने वाले को नहीं। देवयानी! जो पुरुष उभड़े हुए क्रोध का अक्रोध के द्वारा शान्त कर देता है, तुम निश्चय जानों, उसने सब जीत लिया। जो पुरुष उभरे हुए क्रोध को क्षमा के द्वारा शान्त कर देता है और सर्प के द्वारा पुरानी केंचुली छोड़ने के समान क्रोध का त्याग कर देता है, वास्तविक अर्थों में वहीं “पुरुष” कहलाता है। जो क्रोध को रोक लेता है, निन्दा को सह लेता है और दूसरों के द्वारा सताये जाने पर भी उनको बदले में नहीं सताता, वहीं परमात्मा की प्राप्ति का अधिकारी होता है। जो सौ वर्षों तक हर महीने बिना थके लगातार यज्ञ करता रहे और (जो कभी किसी पर क्रोध न करे- इन दोनों में क्रोध न करने वाला पुरुष ही श्रेष्ठ है।
(महाभारत आदिपर्व)
.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति मई 1950 पृष्ठ 15
त्पते यतते चैव यच्च दानं प्रयच्छति। क्रोधेन सर्व हरति तस्मात क्रोधं विवजयेत्॥
(बाल्मीकि रामायण उत्तर. 71)
🔷 अर्थात् क्रोध प्राण हरण करने वाला शत्रु, क्रोध अमित्र - मुखधारी बैरी है, क्रोध महा तीक्ष्ण तलवार है, क्रोध सब प्रकार से गिराने वाला है, क्रोध तप, संयम, और दान सभी हरण कर लेता है। अतएव, क्रोध को छोड़ देना चाहिए।
🔶 क्रोध त्याग की महिमा बताते हुए श्री शुक्राचार्य जी अपनी कन्या देवयानी से कहते हैं- “देवयानी! जो नित्य दूसरों के द्वारा की हुई अपनी निन्दा को सह लेता है, तुम निश्चय जानो कि उसने सब को जीत लिया। जो बिगड़ते हुए घोड़ों के समान उभरे हुए क्रोध को जीत लेता है, उसी को साधु लोग जितेन्द्रिय कहते हैं, केवल घोड़ों की लगाम हाथ में रखने वाले को नहीं। देवयानी! जो पुरुष उभड़े हुए क्रोध का अक्रोध के द्वारा शान्त कर देता है, तुम निश्चय जानों, उसने सब जीत लिया। जो पुरुष उभरे हुए क्रोध को क्षमा के द्वारा शान्त कर देता है और सर्प के द्वारा पुरानी केंचुली छोड़ने के समान क्रोध का त्याग कर देता है, वास्तविक अर्थों में वहीं “पुरुष” कहलाता है। जो क्रोध को रोक लेता है, निन्दा को सह लेता है और दूसरों के द्वारा सताये जाने पर भी उनको बदले में नहीं सताता, वहीं परमात्मा की प्राप्ति का अधिकारी होता है। जो सौ वर्षों तक हर महीने बिना थके लगातार यज्ञ करता रहे और (जो कभी किसी पर क्रोध न करे- इन दोनों में क्रोध न करने वाला पुरुष ही श्रेष्ठ है।
(महाभारत आदिपर्व)
.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति मई 1950 पृष्ठ 15
All World Gayatri Pariwar Official Social Media Platform
Shantikunj WhatsApp
8439014110
Official Facebook Page
Official Twitter
Official Instagram
Youtube Channel Rishi Chintan
Youtube Channel Shantikunjvideo