👉 भक्ति से जुड़ी शक्ति
🔷 १९५८ के सहस्रकुण्डीय महायज्ञ के सफल प्रयोग परीक्षण ने अपनी श्रद्धा-विश्वास असंख्य गुना बढ़ा दिया और बाद में निर्देशित हुए कामों का सिलसिला चल पड़ा, जिनका कि उल्लेख पहले भी हो चुका है। साहित्य सृजन, संगठन, केन्द्रों की खर्चीली व्यवस्था, अभावग्रस्तों की सहायता जैसे काम इस प्रकार चलते रहे, मानो वे सभी कार्य किसी दूसरे ने किए हों और अपने सिर पर श्रेय अनायास ही लद गया हो। यह वैयक्तिक सफलता का प्रसंग नहीं माना जाना चाहिए कि यह किसी के पुरुषार्थ का प्रतिफल सामने आया, वरन् यह समझा जाना चाहिए कि भक्ति के साथ शक्ति का भी अविच्छिन्न सामंजस्य हैं। निर्देशक शक्ति अपने संकेतों पर चलने वाले समर्पित व्यक्ति के लिए वैसी ही व्यवस्था भी करती है, जैसी कि मोर्चे पर लड़ने जाने वाले सैनिक के लिए आवश्यक सुविधा सामग्री का प्रबन्ध सेनापति या रक्षा विभाग द्वारा किया जाता है।
🔶 वैयक्तिक प्रयास से बन पड़ने में जिन्हें संभव समझा जा सकता है, उन छिटपुट कामों को संपन्न करने के उपरांत निर्देशक ने अपनी कठपुतली में इतनी क्षमता भर दी कि वह संकेतों के इशारे भर से मनमोहक नृत्य अभिनय कर सके। इतना बन पड़ने के उपरान्त वह भारी वजन लादा गया, जिसे सम्पन्न करने की कोई व्यक्ति विशेष कल्पना तक नहीं कर सकता, जिसे वह अदृश्य सत्ता ही कर सकती है, जिसने इतना बड़ा पसारा बनाकर खड़ा किया है और जो मनुष्य को एक सीमा तक नटखटपन बरतने तक की छूट देने के उपरांत जब देखती है कि उद्दण्डता मर्यादा से बाहर जा रही है, तब उसके कान पकड़कर सीधी राह अपनाने के लिए बाधित ही नहीं, प्रताड़ित भी कर सकती है। इसी को युग परिवर्तन की पृष्ठभूमि कहा जा सकता है। यही है इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य की परिकल्पना, महाक्रान्ति की अभूतपूर्व परियोजना।
🔷 प्रस्तुत प्रयोजन के लिए जितना कुछ दृश्य रूप में मानवी प्रयत्नों के अन्तर्गत सम्भव था, उसे युग निर्माण योजना के अन्तर्गत पिछले कई वर्षों से किया जाता रहा है। उसमें जो सफलता मिली है, वह लगभग इसी स्तर की मानी जा सकती है जितनी की मानवी पुरुषार्थ के अंतर्गत आने की परिकल्पना की जा सकती है। मानवी पुरुषार्थ और साधना के समन्वय से संसार के इतिहास में बहुत कुछ ऐसा बन पड़ा है, जिसे असाधारण भी कहा जा सकता है और आश्चर्यजनक भी। इसी आधार पर मिशन के दृश्य प्रयास जिस प्रकार बन पड़े हैं और उसके प्रतिफल जिस प्रकार के सामने आए, उन्हीं में इन्हें भी एक गिना जा सकता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 परिवर्तन के महान् क्षण पृष्ठ 25
🔷 १९५८ के सहस्रकुण्डीय महायज्ञ के सफल प्रयोग परीक्षण ने अपनी श्रद्धा-विश्वास असंख्य गुना बढ़ा दिया और बाद में निर्देशित हुए कामों का सिलसिला चल पड़ा, जिनका कि उल्लेख पहले भी हो चुका है। साहित्य सृजन, संगठन, केन्द्रों की खर्चीली व्यवस्था, अभावग्रस्तों की सहायता जैसे काम इस प्रकार चलते रहे, मानो वे सभी कार्य किसी दूसरे ने किए हों और अपने सिर पर श्रेय अनायास ही लद गया हो। यह वैयक्तिक सफलता का प्रसंग नहीं माना जाना चाहिए कि यह किसी के पुरुषार्थ का प्रतिफल सामने आया, वरन् यह समझा जाना चाहिए कि भक्ति के साथ शक्ति का भी अविच्छिन्न सामंजस्य हैं। निर्देशक शक्ति अपने संकेतों पर चलने वाले समर्पित व्यक्ति के लिए वैसी ही व्यवस्था भी करती है, जैसी कि मोर्चे पर लड़ने जाने वाले सैनिक के लिए आवश्यक सुविधा सामग्री का प्रबन्ध सेनापति या रक्षा विभाग द्वारा किया जाता है।
🔶 वैयक्तिक प्रयास से बन पड़ने में जिन्हें संभव समझा जा सकता है, उन छिटपुट कामों को संपन्न करने के उपरांत निर्देशक ने अपनी कठपुतली में इतनी क्षमता भर दी कि वह संकेतों के इशारे भर से मनमोहक नृत्य अभिनय कर सके। इतना बन पड़ने के उपरान्त वह भारी वजन लादा गया, जिसे सम्पन्न करने की कोई व्यक्ति विशेष कल्पना तक नहीं कर सकता, जिसे वह अदृश्य सत्ता ही कर सकती है, जिसने इतना बड़ा पसारा बनाकर खड़ा किया है और जो मनुष्य को एक सीमा तक नटखटपन बरतने तक की छूट देने के उपरांत जब देखती है कि उद्दण्डता मर्यादा से बाहर जा रही है, तब उसके कान पकड़कर सीधी राह अपनाने के लिए बाधित ही नहीं, प्रताड़ित भी कर सकती है। इसी को युग परिवर्तन की पृष्ठभूमि कहा जा सकता है। यही है इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य की परिकल्पना, महाक्रान्ति की अभूतपूर्व परियोजना।
🔷 प्रस्तुत प्रयोजन के लिए जितना कुछ दृश्य रूप में मानवी प्रयत्नों के अन्तर्गत सम्भव था, उसे युग निर्माण योजना के अन्तर्गत पिछले कई वर्षों से किया जाता रहा है। उसमें जो सफलता मिली है, वह लगभग इसी स्तर की मानी जा सकती है जितनी की मानवी पुरुषार्थ के अंतर्गत आने की परिकल्पना की जा सकती है। मानवी पुरुषार्थ और साधना के समन्वय से संसार के इतिहास में बहुत कुछ ऐसा बन पड़ा है, जिसे असाधारण भी कहा जा सकता है और आश्चर्यजनक भी। इसी आधार पर मिशन के दृश्य प्रयास जिस प्रकार बन पड़े हैं और उसके प्रतिफल जिस प्रकार के सामने आए, उन्हीं में इन्हें भी एक गिना जा सकता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 परिवर्तन के महान् क्षण पृष्ठ 25