मंगलवार, 10 अक्तूबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 10 Oct 2023

तर्क की पहुँच विचारों तक है। विचारों से परे अनुभूतियों के कितने ही दिव्य क्षेत्र मौजूद हैं जो उनकी पकड़ में नहीं आते। मानवी श्रद्धा ही उन्हें अनुभव कर सकती है। मनुष्य के पारस्परिक रिश्ते श्रद्धा से ही संचालित होते हैं। जीवन से उसे निकाल दिया जाये तो भाई-भाई के, भाई-बहन के, माता-पिता के, पिता-पुत्र के रिश्तों का कुछ विशेष मूल्य नहीं रह जाता। प्यार एवं स्नेह की बहने वाली निर्झपिणी सूखे तर्क के आतप में सूखकर मरुस्थल का रूप ले लेती है। वे परिवार, परिवार न रहकर सराय बन जाते हैं। जब सामान्य जीवन में श्रद्धा के बिना काम नहीं चलता तो आध्यात्मिक क्षेत्र में कैसे चल सकता है?

किसी सिद्धान्त, किसी आदर्श अथवा किसी लक्ष्य के प्रति श्रद्धा भी तभी उमड़ती है जब ज्ञान द्वारा उनकी गरिमा की बुद्धि सामर्थ्य के समस्त आवेश के साथ आत्मसात् कर लिया जाता है। एक बार पूरे मन से उनको स्वीकार कर लेने पर तर्क नहीं जन्म लेता। दोष देखने वाली प्रवृत्ति नहीं रहती। “दोष दर्शनानुकूल वृत्ति प्रतिबन्धकवृत्तिः”, श्रद्धा की उपज है पर उसमें भी बुद्धि के पक्ष का सर्वथा अभाव नहीं होता। 

श्रद्धाविहीन किसी शंकालु व्यक्ति को साधक की अनुभूति एक कपोल कल्पना या पागलपन प्रतीत हो सकती है पर इससे यथार्थता पर कुछ आँच नहीं आती। ईश्वरीय अनुभूति के उच्च लोक में पहुँचने के बाद व्यक्ति का व्यवहार सामान्य लोगों की दृष्टि में असामान्य तथा असंगत प्रतीत होता है तो इसमें कुछ विशेष आश्चर्य नहीं करना चाहिए। संकीर्णता, चिन्ता, उदासीनता आदि मानसिक व्यतिरेकों के ऊपर उठा हुआ व्यक्ति यदि अपने बन्धनों को तोड़ते हुए आगे बढ़ जाता है तथा ‘वासुदेवः सर्वंमिति’- सभी कुछ ईश्वर है मानकर चलता है तो इसमें अस्वाभाविकता ही क्या है? 

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 ईश्वर या संसार

संसार में लोग सत्य भी बोलते हैं, और झूठ भी। सामान्य रूप से लोग सत्य बोलते हैं। परंतु जब कोई आपत्ति दिखाई दे, कहीं मान अपमान का प्रश्न हो, कहीं कोई स्वार्थ हो, कोई लोभ, कोई क्रोध हो आदि आदि, ऐसे कारण उपस्थित होने पर प्रायः लोग झूठ बोलते हैं। वे समझते हैं कि यदि मैंने इस अवसर पर सत्य बोल दिया, तो मेरा काम बिगड़ जाएगा। सामने वाला व्यक्ति मुझसे नाराज हो जाएगा। उससे मुझे जो लाभ मिल रहा है, वह नष्ट हो जाएगा।

परंतु सब लोग एक जैसे नहीं होते। कुछ लोग यह सोचते हैं, कि हानि लाभ तो जीवन में होता ही रहता है। यह संसार है, इसमें सुख और दुख दोनों आते ही रहते हैं। मैं झूठ बोलकर ईश्वर को नाराज क्यों करूं? ऐसा करने पर ईश्वर मुझे दंड देगा। और जो लाभ मुझे ईश्वर से मिल रहा है, या भविष्य में मिलने वाला है, वह मेरा लाभ नष्ट हो जाएगा।

इसलिए ऐसे लोग ईश्वर को सामने रख कर सत्य ही बोलते हैं। तब जो उन्हें सांसारिक लोगों से हानि होती है, उसे वे सहन कर लेते हैं।

ऐसे अवसर पर उनको सहन करने की शक्ति, ईश्वर ही देता है। अतः संसार के लोग भले ही कुछ नाराज हो जाएँ, आप ईश्वर को नाराज न करें। यदि ईश्वर नाराज हो गया, तो आपको उससे अधिक हानि उठानी पड़ेगी। संसार के लोग आपकी कम हानि कर पाएंगे। ईश्वर तो आगे पशु पक्षी घोड़ा साँप बिच्छू आदि पता नहीं क्या-क्या बना देगा। इसलिए सावधान रहें।

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...