तुम्हारी प्रक्रिया और तुम्हारी गतिविधियाँ तुम्हारे पल्ले में, लेकिन मेरे शरीर को और मेरे आदर्श को व्यथित नहीं किया जा सकता। घिसो जितना घिस सकते हो। मैंने भी घिसा। घिसते घिसते पसीना निकाल दिया। वह एक रत्ती मात्र रह गया। उसकी सारी की सारी हड्डियों को लोगों ने पीस डाला, लेकिन चंदन सुगंध फैलाता रहा। जब ऐसा महान देवत्व लकड़ी में है, यदि ऐसा ही इंसान में हो जाये तब? तब हम लकड़ी के चंदन को घिसेंगे मस्तक पर लगायेंगे और सोचेंगे कि हे चंदन! अपनी जैसी वृत्तियाँ कुछ हमारे मस्तिष्क में भी ठोंक, जिसमें कि कषाय कल्मष भरे पड़े हैं।
ईर्ष्या और द्वेष भरे पड़े हैं। डाह और छल भरे पड़े हैं। आकांक्षाएँ, इच्छाएँ भरी हुई पड़ी हैं। हमारे सामने न कोई आदर्श है, न कोई उद्देश्य। हे चंदन! आ और घुस जा हमारे दिमाग में अपनी वृत्तियों सहित। हमने तुझे हरदम लगाया, पर भावना रहित होकर लगाया।
मित्रो! पूजा का उद्देश्य बहुत ही विशेष और महत्त्वपूर्ण है। पूजा के पीछे न जाने क्या क्या विधान और उद्देश्य भरे पड़े हैं। पर क्या कभी यह हमारे दिमाग में आया? कभी नहीं आया। केवल लक्ष्यविहीन कर्मकाण्ड, भावनारहित कर्मकाण्ड करते रहे, जिनके पीछे न कोई मत था न उद्देश्य। जिनके पीछे न कोई भावना थी न विचारणा। केवल क्रिया और क्रिया...। ऐसी क्रिया की मैं निन्दा करता हूँ और ऐसी क्रिया के प्रति आपके मन में अविश्वास पैदा करता हूँ, बाधा उत्पन्न करता हूँ।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/lectures_gurudev/44.2
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