गुरुवार, 18 मई 2023

👉 मन को बालक्रीड़ाओं में भटकने न दें (अन्तिम भाग)

वासनाओं की पूर्ति क्षण भर के लिए होती है दूसरे की क्षण दूने वेग से फिर उभर आती है। उसकी पूर्ति में प्रसन्नता अनुभव करना ऐसा ही है जैसे कुत्ता सूखी हड्डी चबाते हुए अपना ही जबड़ा घायल कर लेता है और उससे टपकने वाले खून को सूखी हड्डी का रस मानता है। चटोरपन और कामुकता की ललक को पूरी करने का प्रयत्न ठीक इस मूर्ख कुत्ते के समान है जो अपना ही जबड़ा घायल करता जाता है और लाभ कमाने की बात सोचता है। दाद खुजाकर अपने को लहू-लुहान कर लेने की तरह ही विषयासक्ति है। उससे मनुष्य अपनी ही जीवनी शक्ति को निचोड़ता और खोखला होकर बेमौत मरता है।

लोभ, मोह और अहंकार, वासना, तृष्णा और बड़प्पन यही विडम्बनाएँ आदि से अन्त तक मनुष्य के सिर पर भूत-पलीत की तरह चढ़ी रहती हैं और गहरे नशे की तरह विचारशीलता को कुँठित किये रहती हैं।

मन को समझाया जाना चाहिए कि जीवन सृष्टा की सर्वोपरि कलाकृति है वह अमानत के रूप में किसी महान प्रयोजन के लिए मिला है। इसे इस उपहासास्पद ढंग से न गँवाया जाये, जिससे समय निकल जाने पर पश्चात्ताप ही शेष रहे। शरीर की वास्तविक आवश्यकताएँ थोड़े से श्रम व समय में पूरी की जा सकती है फिर उन्हीं को बढ़ाते रहने और न पूरी हो सकने वाली विडंबनाएं रचने से क्या लाभ? 

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति फरवरी 1986 पृष्ठ 4

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1986/February/v1.4

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👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 18 May 2023

मनोजगत् के प्रति दुर्व्यवहार की एक विडम्बना द्वेष, दुर्भाव और दुश्चिन्ताओं के रूप में देखी जा सकती है। जो प्रगति कर रहा है, उन्नति के पथ पर आगे बढ़ रहा है, उससे डाह रखकर हम उसकी प्रगति तो नहीं रोक सकते, हाँ अपने ही विकास में रोड़े जरूर खड़े कर सकते हैं। यह शत्रुता फिर किसके साथ बरती कही जाएगी, प्रगति करने वाले के साथ या अपने आपके साथ? इसी प्रकार की निर्मूल चिन्ताएँ, अकरणीय आशंकाएँ और आंतरिक द्वन्द्वों के बीच अपनी योग्यता, प्रतिभा, शक्ति को पीसते रहकर आत्म हिंसा का मार्ग ही तय किया जा सकता है।

जीवन निर्माण के लिए आत्म-निष्ठा पर आधारित आत्म-विश्वास की अभिवृद्धि आवश्यक है। इसका सहज मार्ग अपने कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्वों को ईमानदारी के साथ पूर्ण करते चलने में है। कार्यों के छोटे-बड़े की चिन्ता नहीं होनी चाहिए। छोटे-छोटे कार्यों के सम्पादन करते चलने से मनोबल बढ़ता है और आगे का मार्ग प्रशस्त होता है। बड़े लोगों ने अपने जीवन काल के प्रारंभ में छोटे काम ही हाथ में लिए थे। कोई भी कार्य छोटा और बड़ा नहीं होता, यह तो कार्य सम्पादन करने वालों की मनोभूमि पर आधारित होते हैं।

जीवन के हर क्षेत्र में विश्वास की आवश्यकता है। विश्वास हमारा मार्गदर्शन करता है तथा सद्पथ पर चलने की प्रेरणा देता है। जीवन रहस्य को समझने के लिए आत्म-विश्वास का सहारा लेना ही पड़ेगा। जीवन निर्माण में आत्म-विश्वास का प्रधान हाथ रहता है। जो व्यक्ति अपनी इस शक्ति का विकास नहीं कर पाये उन्हें अभाव और दरिद्रता में पलते हुए जीवन को समाप्त करना पड़ा। अविश्वासी व्यक्ति न तो किसी के सहायक हो पाते हैं और न दूसरों की आत्मीयता पूर्ण सहानुभूति ही प्राप्त कर पाते हैं।

अहंकार पर आधारित विश्वास पतन का द्वार खोलता है। भौतिकता के वशीभूत व्यक्ति संकीर्णता, स्वार्थपरता एवं अनुदारता के दलदल में फँस जाते हैं। अहंकार का आधार ही मनोविकार एवं भौतिक पदार्थ है। भोग-लिप्सा के सिवाय उसे कुछ दिखलाइ्र्र ही नहीं पड़ता। इसके अभिशाप से व्यक्ति दीन, दुःखी, असहाय तथा निष्प्राण होकर धरती पर भार स्वरूप बना रहता है। सभी अनर्थों की जड़ अहंकार जनित विश्वास ही है। अशान्ति, युद्ध, कलह और राग-द्वेष यहीं से उत्पन्न होते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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