शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

👉 धैर्य से काम


🔶 बात उस समय की है जब महात्मा बुद्ध विश्व भर में भ्रमण करते हुए बौद्ध धर्म का प्रचार कर रहे थे और लोगों को ज्ञान दे रहे थे।

🔷 एक बार महात्मा बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ एक गाँव में भ्रमण कर रहे थे। उन दिनों कोई वाहन नहीं हुआ करते थे सो लोग पैदल ही मीलों की यात्रा करते थे। ऐसे ही गाँव में घूमते हुए काफ़ी देर हो गयी थी। बुद्ध जी को काफ़ी प्यास लगी थी। उन्होनें अपने एक शिष्य को गाँव से पानी लाने की आज्ञा दी। जब वह शिष्य गाँव में अंदर गया तो उसने देखा वहाँ एक नदी थी जहाँ बहुत सारे लोग कपड़े धो रहे थे कुछ लोग नहा रहे थे तो नदी का पानी काफ़ी गंदा सा दिख रहा था।

🔶 शिष्य को लगा की गुरु जी के लिए ऐसा गंदा पानी ले जाना ठीक नहीं होगा, ये सोचकर वह वापस आ गया। महात्मा बुद्ध को बहुत प्यास लगी थी इसीलिए उन्होनें फिर से दूसरे शिष्य को पानी लाने भेजा। कुछ देर बाद वह शिष्य लौटा और पानी ले आया| महात्मा बुद्ध ने शिष्य से पूछा की नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम साफ पानी कैसे ले आए। शिष्य बोला की प्रभु वहाँ नदी का पानी वास्तव में गंदा था लेकिन लोगों के जाने के बाद मैने कुछ देर इंतजार किया। और कुछ देर बाद मिट्टी नीचे बैठ गयी और साफ पानी उपर आ गया।

🔷 बुद्ध यह सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और बाकी शिष्यों को भी सीख दी कि हमारा ये जो जीवन है यह पानी की तरह है। जब तक हमारे कर्म अच्छे हैं तब तक सब कुछ शुद्ध है, लेकिन जीवन में कई बार दुख और समस्या भी आते हैं जिससे जीवन रूपी पानी गंदा लगने लगता है। कुछ लोग पहले वाले शिष्य की तरह बुराई को देख कर घबरा जाते हैं और मुसीबत देखकर वापस लौट जाते हैं, वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते वहीं दूसरी ओर कुछ लोग जो धैर्यशील होते हैं वो व्याकुल नहीं होते और कुछ समय बाद गंदगी रूपी समस्याएँ और दुख खुद ही ख़त्म हो जाते हैं।

🔶 तो मित्रों, इस कहानी की सीख यही है कि समस्या और बुराई केवल कुछ समय के लिए जीवन रूपी पानी को गंदा कर सकती है| लेकिन अगर आप धैर्य से काम लेंगे तो बुराई खुद ही कुछ समय बाद आपका साथ छोड़ देगी।

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 16 Dec 2017


👉 आज का सद्चिंतन 16 Dec 2017


👉 सुख चाहिए किन्तु दुःख से डरिये मत (भाग 4)

🔶 आशा और उत्साह मनुष्य जीवन के दो बहुत बड़े सम्बल हैं। मनुष्य की प्रसन्नता के यह दोनों प्रमाणिक आधार हैं जो बुद्धिमान किसी भी दशा में इनको मन्द नहीं होने देते, अभाव, दुःख, कष्ट तथा प्रतिकूलतायें उस पर वैसे ही प्रभाव नहीं डाल पातीं जैसे कवच-सज्जित शरीर पर शत्रु के वाण! कष्ट आयेगा, कठिनाई खड़ी हो जायगी आशा उनका सत्य स्वरूप समझने और उनके हल के लिए मार्ग दिखलायेगी, उत्साह आगे बढ़ायेगा। और बढ़ते हुए व्यक्ति का मार्ग कोई भी अवरोध रोक नहीं सकता। दुःख-क्लेश होता उन्हीं को है जो किसी कारण से किंकर्तव्य विमूढ़ होकर एक जगह ठिठके रहते हैं। जो ठिठककर रुकना नहीं जानता, वह कठिनाइयों को परास्त कर आगे निकल ही जाता है।
   
🔷 आशा और उत्साह की शक्ति अपरिमित है। उसका परिमाण लगाया ही नहीं जाता। प्राणान्तक संकट में पड़े हुये न जाने कितने वीर व्यक्तियों ने केवल आशा और उत्साह के बल पर इतिहास प्रसिद्ध विजयों का वरण किया है। आशा और उत्साह के अभाव में एक नगण्य से कारण से परास्त होकर न जाने कितने व्यक्ति आत्म-हत्या कर लिया करते हैं, जब कि उनका वह दुःख, वह क्लेश अथवा वह अभाव—प्राण तो दूर, एक रोम के बलिदान योग्य भी नहीं होता। आशा और उत्साह का अभाव तिनके जैसी कठिनाई को पहाड़ जैसा बना दिया करता है। निराशा अन्धकार है और निरुत्साह व्याधि। अन्धेरे में एक छोटी-सी आशंका प्राण लेवा बन जाया करती है और व्याधिग्रस्त व्यक्ति एक कदम आगे बढ़ने का साहस नहीं रखता।

🔶 दिनों, महीनों और वर्षों के संचित विषाद को आशा की एक छोटी-सी किरण क्षणभर में दूर करके जीवन में उल्लास तथा उत्साह का संचार कर देती है। मरण शय्या पर पड़ा रोगी औषधि की अपेक्षा आशा के सहारे रोग या मृत्यु पर अधिक विजय पाता है जीवन से क्षुब्ध परेशानियों से परेशान होकर आत्महत्या को उद्यत यदि किसी व्यक्ति को किसी संयोग से आशा की किरण मिल जाती है तो वह तुरन्त अशुभ विचार छोड़कर जीवन-पथ पर हंसता हुआ बढ़ चलता है। तिल-तिल भूमि पर बलिदान देता हुआ कोई भी योद्धा विजय की आशा से ही युद्ध-भूमि में बढ़ता चला जाता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- दिसंबर 1966 पृष्ठ 23
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1966/July/v1.23

http://literature.awgp.org/book/sukh_shanti_ki_sadhana_/v1.3

👉 Secret Of Karma

🔶 Man is himself the creator of his own destiny. How can good fortune arise without elimination of whatever evil actions have been done previously by us knowingly or unknowingly? How can milk or butter be filled in a pitcher which is already full of dirt? Therefore, the first necessity is to make an effort to get rid of the physical and mental dirt and proliferation produced by malimpressions.

🔷 At the same time, we should continue trying to ensure that the same defects and evils may never attack us again. Purification on one side and development on the other, if undertaken regularly, will show immediate result. The pauper of yesterday is seen becoming a rich man of today. The rich of yesterday are seen begging from door to door today. Those who achieve some success in their ascetic practice. This is the open secret of Karma. Therefore, we should always act in a manner which will not make our Atma (soul)  reproach us of scorch us in the fire of repentance.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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