आज आदमी खुशी के लिए तरस रहा है। जिन्दगी की लाश इतनी भारी हो गई है कि वजन ढोते-ढोते आदमी की कमर टूट गई है। वह खुशी ढूँढने के लिए सिनेमा, क्लब, रेस्टारेंट, कैबरे डांस सब जगह जाता है, पर वह कहीं मिलती नहीं। खुशी जबकि दृष्टिकोण है, जिसे ज्ञान की संपदा कहना चाहिए। वही व्यक्ति ज्ञानवान् है, जिसे खुशी तलाशना-बाँटना आता है।
आज हर आदमी यही सोचता है कि अनैतिक रहने में उसका भौतिक लाभ है। इसलिए वह बाहर से नैतिकता का समर्थन करते हुए भी भीतर ही भीतर अनैतिक रहता है। हमें मानसिक स्वच्छता का वह पहलू जनता के सामने प्रस्तुत करना होगा, जिसके अनुसार यह भली प्रकार समझा जा सके कि अनैतिकता व्यक्तिगत स्वार्थपरता की दृष्टि से भी घातक है।
अपने समाज के सुधार पर ध्यान देना उतना ही आवश्यक है, जितना अपना स्वास्थ्य एवं उपार्जन की समस्याओं का सुलझाना। समाजगत पापों से हम निर्दोष होते हुए भी पापी बनते हैं। भूकम्प, दुर्भिक्ष, युद्ध, महामारी आदि के रूप में ईश्वर भी हमें सामूहिक दण्ड दिया करता है और सचेत करता है कि हम अपने को ही नहीं, सारे समाज को भी सुधारें। स्वयं ही सभ्य न बनें, सारे समाज को भी सभ्य बनायें।
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
आज हर आदमी यही सोचता है कि अनैतिक रहने में उसका भौतिक लाभ है। इसलिए वह बाहर से नैतिकता का समर्थन करते हुए भी भीतर ही भीतर अनैतिक रहता है। हमें मानसिक स्वच्छता का वह पहलू जनता के सामने प्रस्तुत करना होगा, जिसके अनुसार यह भली प्रकार समझा जा सके कि अनैतिकता व्यक्तिगत स्वार्थपरता की दृष्टि से भी घातक है।
अपने समाज के सुधार पर ध्यान देना उतना ही आवश्यक है, जितना अपना स्वास्थ्य एवं उपार्जन की समस्याओं का सुलझाना। समाजगत पापों से हम निर्दोष होते हुए भी पापी बनते हैं। भूकम्प, दुर्भिक्ष, युद्ध, महामारी आदि के रूप में ईश्वर भी हमें सामूहिक दण्ड दिया करता है और सचेत करता है कि हम अपने को ही नहीं, सारे समाज को भी सुधारें। स्वयं ही सभ्य न बनें, सारे समाज को भी सभ्य बनायें।
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य