🔶 जितना जानते हो उससे अधिक जानने को हर घड़ी कोशिश करते रहो, इन्द्रियों के गुलाम मत बनो और न आलस्य को ही अपने पास फटकने दो। काम को देखकर घबराओ मत, उसे पूरा करने के लिए मशीन की तरह जुट जाओ जितना अधिक काम करो उतनी ही अधिक प्रसन्नता का अनुभव करो। काम का तरीका ठीक रखो। ऐसा न हो कि जाना है पूर्व और पश्चिम को दौड़ पड़ो। अपनी बात पर मजबूत रहो, अपने काम पर श्रद्धा और विश्वास रखो, बार-बार विचारों को मत बदलो, यदि अपनी कार्यपद्धति सच्ची मालूम पड़ती है तो उस पर दृढ़ रहो किसी भी कठिनाई के आने पर मत डिगो। यह गुण तुम्हारे अन्दर जैसे जैसे बढ़ते जाएंगे वैसे ही वैसे भाग्य निर्माण होता जायगा।
🔷 जो नियम या कर्तव्य भय अथवा स्वार्थ मूलक हों वह नीति, और जिसमें भय अथवा स्वार्थ का अवकाश न हो किन्तु जिस नियम का केवल कर्तव्य बुद्धि से ही पालन किया जावे वह धर्म कहलाता है। रोज के अपने काम-काज के बीच अगर हम कुछ घंटे ध्यान में भी लगायें और अपने मन को मौन द्वारा ईश्वर की आवाज सुनने के लिये तैयार करें तो क्या ही अच्छा हो! वह तो ऐसा दैवी रेडियो है जो हमेशा गाता रहता है। जरूरत सिर्फ यह है कि हम उसे सुनने के लिये तैयार हों।
🔶 कहावत है कि ‘जहाँ चाह वहाँ राह’ जो जैसा होना चाहता है वैसा बन जाता है। महापुरुषों के जीवन चरित्रों पर नजर डालिए। क्या परिस्थितियों ने ही उन्हें ऊँचा उठा दिया था? नहीं, जिसने अपने को जैसा बनाना चाहा वह वैसा बन गया। अर्जुन, रावण, राम, कृष्ण, हनुमान, अभिमन्यु, प्रताप, शिवाजी जैसे महापुरुषों में वैसे बनने की चाहत नहीं होती, दृढ़ मनोबल नहीं होता तो क्या वे इतने बड़े कार्य कर पाते? महान् तानाशाह हिटलर और मुसोलिनी कभी अपने बहुत ही गरीब पिताओं के घरों में पैदा हुए थे और अपनी आधी उम्र तक इतना पैसा नहीं कमा पाये थे कि अच्छी तरह अपना खर्च चला लें। नैपोलियन बोनापार्ट एक गरीब के घर में पैदा हुआ था, पर उसने वह कर दिखाया जिसे अरबों-खरबों की गिनती रखने वाले और उसकी अपेक्षा चौगुना शारीरिक बल रखने वाले नहीं कर सकते।
🔷 जो नियम या कर्तव्य भय अथवा स्वार्थ मूलक हों वह नीति, और जिसमें भय अथवा स्वार्थ का अवकाश न हो किन्तु जिस नियम का केवल कर्तव्य बुद्धि से ही पालन किया जावे वह धर्म कहलाता है। रोज के अपने काम-काज के बीच अगर हम कुछ घंटे ध्यान में भी लगायें और अपने मन को मौन द्वारा ईश्वर की आवाज सुनने के लिये तैयार करें तो क्या ही अच्छा हो! वह तो ऐसा दैवी रेडियो है जो हमेशा गाता रहता है। जरूरत सिर्फ यह है कि हम उसे सुनने के लिये तैयार हों।
🔶 कहावत है कि ‘जहाँ चाह वहाँ राह’ जो जैसा होना चाहता है वैसा बन जाता है। महापुरुषों के जीवन चरित्रों पर नजर डालिए। क्या परिस्थितियों ने ही उन्हें ऊँचा उठा दिया था? नहीं, जिसने अपने को जैसा बनाना चाहा वह वैसा बन गया। अर्जुन, रावण, राम, कृष्ण, हनुमान, अभिमन्यु, प्रताप, शिवाजी जैसे महापुरुषों में वैसे बनने की चाहत नहीं होती, दृढ़ मनोबल नहीं होता तो क्या वे इतने बड़े कार्य कर पाते? महान् तानाशाह हिटलर और मुसोलिनी कभी अपने बहुत ही गरीब पिताओं के घरों में पैदा हुए थे और अपनी आधी उम्र तक इतना पैसा नहीं कमा पाये थे कि अच्छी तरह अपना खर्च चला लें। नैपोलियन बोनापार्ट एक गरीब के घर में पैदा हुआ था, पर उसने वह कर दिखाया जिसे अरबों-खरबों की गिनती रखने वाले और उसकी अपेक्षा चौगुना शारीरिक बल रखने वाले नहीं कर सकते।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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