🌹 चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी और सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
🔴 घर के बर्तन इस तरह नहीं रहने चाहिए जिन पर चूहे और छिपकली पेशाब करें और उस जहर से अप्रत्यक्ष बीमारियाँ शरीरों में घुस पड़ें। खुले हुए वाद्य पदार्थों में कीड़े-मकोड़े घुसते हैं। इसलिए हर खाने में काम आने वाली वस्तु दबी-ढकी रहनी चाहिए। कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, किताबें, जूते तथा अन्य सामान यथास्थान रखा हो तो ही सुंदर लगेगा अन्यथा बिखरी हुई अस्त-व्यस्त चीजें कूड़े और गंदगी की ही शक्ल धारण कर लेती हैं, भले ही वे कितनी ही मूल्यवान क्यों न हों। जिस वस्तु को झाड़ते-पोंछते न रहा जाएगा, वह धूल की पर्त जमा होने तथा लगातार ऋतु प्रभाव सहते रहने से मैली, पुरानी हो जाएगी।
🔵 हर चीज सफाई, मरम्मत और व्यवस्था चाहती है। घर का हर पदार्थ हम से यही आशा करता है कि उसे स्वच्छ और सुव्यवस्थित रखा जाए। जिन्हें स्वच्छता से सच्चा प्रेम है, वे शरीर का शृंगार करके ही न बैठ जाएँगे वरन् जहाँ रहेंगे वहाँ हर पदार्थ की शोभा, स्वच्छता एवं सुसज्जा का ध्यान रखेंगे। मकान की टूट-फूट और लिपाई-पुताई का, किवाड़ों की रंगाई का ध्यान रखा जाएगा तो उसमें बहुत पैसा खर्च नहीं होता। थोड़ा-थोड़ा समय बचाकर घर के लोग मिल-जुलकर यह सब सहज ही एक मनोरंजन की तरह करते रह सकते हैं और घर परिवार में शरीर और बच्चों में मानवोचित स्वच्छता का दर्शन हो सकता है। कलाकारिता, स्वच्छता से आरंभ होती है। अवांछनीयता को अस्वीकार करने की प्रवृत्ति का अभिवर्धन शरीर से आरंभ होकर वस्त्रों तक और मन से लेकर व्यवहार तक की स्वच्छता तक विकसित होता चला जाता है और इस अच्छी आदत के सहारे परम सौंदर्य से भरे हुए इस विश्व में भगवान की प्रकाशवान कलाकारिता को देखकर आनंद विभोर रहता हुआ पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचा जा सकता है।
🔴 अपने यहाँ मल-मूत्र संबंधी गंदगी के लोग बुरी तरह अभ्यस्त हो गए हैं। पुराने ढंग के पाखानों में फिनायल, चूना आदि न पड़ने से उनमें भारी दुर्गंध आती है। बच्चों को नालियों पर, गलियों में टट्टी कराके रास्ते दुर्गंध पूर्ण एवं जी मिचलाने वाले बना दिए जाते हैं। घरों के आगे लोग कूड़े का ढेर लगा देते हैं। पेशाब ऐसे स्थानों पर करते रहते हैं, जहाँ सार्वजनिक आवागमन रहता है। सफाई कर्मी के भरोसे सब कुछ निर्भर रहता है। यह नहीं सोचते कि मल-मूत्र आखिर है तो हमारे ही शरीर का, उसकी स्वच्छता के लिए कुछ काम स्वयं भी करें और सफाई कर्मी के काम में सहयोग देकर स्वच्छता बनाए रखने का अपना कर्तव्य निबाहें।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.51
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.8
🔴 घर के बर्तन इस तरह नहीं रहने चाहिए जिन पर चूहे और छिपकली पेशाब करें और उस जहर से अप्रत्यक्ष बीमारियाँ शरीरों में घुस पड़ें। खुले हुए वाद्य पदार्थों में कीड़े-मकोड़े घुसते हैं। इसलिए हर खाने में काम आने वाली वस्तु दबी-ढकी रहनी चाहिए। कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, किताबें, जूते तथा अन्य सामान यथास्थान रखा हो तो ही सुंदर लगेगा अन्यथा बिखरी हुई अस्त-व्यस्त चीजें कूड़े और गंदगी की ही शक्ल धारण कर लेती हैं, भले ही वे कितनी ही मूल्यवान क्यों न हों। जिस वस्तु को झाड़ते-पोंछते न रहा जाएगा, वह धूल की पर्त जमा होने तथा लगातार ऋतु प्रभाव सहते रहने से मैली, पुरानी हो जाएगी।
🔵 हर चीज सफाई, मरम्मत और व्यवस्था चाहती है। घर का हर पदार्थ हम से यही आशा करता है कि उसे स्वच्छ और सुव्यवस्थित रखा जाए। जिन्हें स्वच्छता से सच्चा प्रेम है, वे शरीर का शृंगार करके ही न बैठ जाएँगे वरन् जहाँ रहेंगे वहाँ हर पदार्थ की शोभा, स्वच्छता एवं सुसज्जा का ध्यान रखेंगे। मकान की टूट-फूट और लिपाई-पुताई का, किवाड़ों की रंगाई का ध्यान रखा जाएगा तो उसमें बहुत पैसा खर्च नहीं होता। थोड़ा-थोड़ा समय बचाकर घर के लोग मिल-जुलकर यह सब सहज ही एक मनोरंजन की तरह करते रह सकते हैं और घर परिवार में शरीर और बच्चों में मानवोचित स्वच्छता का दर्शन हो सकता है। कलाकारिता, स्वच्छता से आरंभ होती है। अवांछनीयता को अस्वीकार करने की प्रवृत्ति का अभिवर्धन शरीर से आरंभ होकर वस्त्रों तक और मन से लेकर व्यवहार तक की स्वच्छता तक विकसित होता चला जाता है और इस अच्छी आदत के सहारे परम सौंदर्य से भरे हुए इस विश्व में भगवान की प्रकाशवान कलाकारिता को देखकर आनंद विभोर रहता हुआ पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचा जा सकता है।
🔴 अपने यहाँ मल-मूत्र संबंधी गंदगी के लोग बुरी तरह अभ्यस्त हो गए हैं। पुराने ढंग के पाखानों में फिनायल, चूना आदि न पड़ने से उनमें भारी दुर्गंध आती है। बच्चों को नालियों पर, गलियों में टट्टी कराके रास्ते दुर्गंध पूर्ण एवं जी मिचलाने वाले बना दिए जाते हैं। घरों के आगे लोग कूड़े का ढेर लगा देते हैं। पेशाब ऐसे स्थानों पर करते रहते हैं, जहाँ सार्वजनिक आवागमन रहता है। सफाई कर्मी के भरोसे सब कुछ निर्भर रहता है। यह नहीं सोचते कि मल-मूत्र आखिर है तो हमारे ही शरीर का, उसकी स्वच्छता के लिए कुछ काम स्वयं भी करें और सफाई कर्मी के काम में सहयोग देकर स्वच्छता बनाए रखने का अपना कर्तव्य निबाहें।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.51
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.8