शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 37)

🌹  चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी और सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।

🔴 घर के बर्तन इस तरह नहीं रहने चाहिए जिन पर चूहे और छिपकली पेशाब करें और उस जहर से अप्रत्यक्ष बीमारियाँ शरीरों में घुस पड़ें। खुले हुए वाद्य पदार्थों में कीड़े-मकोड़े घुसते हैं। इसलिए हर खाने में काम आने वाली वस्तु दबी-ढकी रहनी चाहिए। कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, किताबें, जूते तथा अन्य सामान यथास्थान रखा हो तो ही सुंदर लगेगा अन्यथा बिखरी हुई अस्त-व्यस्त चीजें कूड़े और गंदगी की ही शक्ल धारण कर लेती हैं, भले ही वे कितनी ही मूल्यवान क्यों न हों। जिस वस्तु को झाड़ते-पोंछते न रहा जाएगा, वह धूल की पर्त जमा होने तथा लगातार ऋतु प्रभाव सहते रहने से मैली, पुरानी हो जाएगी।

🔵 हर चीज सफाई, मरम्मत और व्यवस्था चाहती है। घर का हर पदार्थ हम से यही आशा करता है कि उसे स्वच्छ और सुव्यवस्थित रखा जाए। जिन्हें स्वच्छता से सच्चा प्रेम है, वे शरीर का शृंगार करके ही न बैठ जाएँगे वरन् जहाँ रहेंगे वहाँ हर पदार्थ की शोभा, स्वच्छता एवं सुसज्जा का ध्यान रखेंगे। मकान की टूट-फूट और लिपाई-पुताई का, किवाड़ों की रंगाई का ध्यान रखा जाएगा तो उसमें बहुत पैसा खर्च नहीं होता। थोड़ा-थोड़ा समय बचाकर घर के लोग मिल-जुलकर यह सब सहज ही एक मनोरंजन की तरह करते रह सकते हैं और घर परिवार में शरीर और बच्चों में मानवोचित स्वच्छता का दर्शन हो सकता है। कलाकारिता, स्वच्छता से आरंभ होती है। अवांछनीयता को अस्वीकार करने की प्रवृत्ति का अभिवर्धन शरीर से आरंभ होकर वस्त्रों तक और मन से लेकर व्यवहार तक की स्वच्छता तक विकसित होता चला जाता है और इस अच्छी आदत के सहारे परम सौंदर्य से भरे हुए इस विश्व में भगवान की प्रकाशवान कलाकारिता को देखकर आनंद विभोर रहता हुआ पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचा जा सकता है।
  
🔴 अपने यहाँ मल-मूत्र संबंधी गंदगी के लोग बुरी तरह अभ्यस्त हो गए हैं। पुराने ढंग के पाखानों में फिनायल, चूना आदि न पड़ने से उनमें भारी दुर्गंध आती है। बच्चों को नालियों पर, गलियों में टट्टी कराके रास्ते दुर्गंध पूर्ण एवं जी मिचलाने वाले बना दिए जाते हैं। घरों के आगे लोग कूड़े का ढेर लगा देते हैं। पेशाब ऐसे स्थानों पर करते रहते हैं, जहाँ सार्वजनिक आवागमन रहता है। सफाई कर्मी के भरोसे सब कुछ निर्भर रहता है। यह नहीं सोचते कि मल-मूत्र आखिर है तो हमारे ही शरीर का, उसकी स्वच्छता के लिए कुछ काम स्वयं भी करें और सफाई कर्मी के काम में सहयोग देकर स्वच्छता बनाए रखने का अपना कर्तव्य निबाहें।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.51

http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.8

👉 हारिय न हिम्मत दिनांक :: २८

🌹  विचार और कार्य संतुलित करो
🔵 एक साथ बहुत सारे काम निबटाने के चक्कर में मनोयोग से कोई कार्य पूरा नहीं हो पाता। आधा- अधूरा कार्य छोडक़र मन दूसरे कार्यों की ओर दौडऩे लगता है। यहीं से श्रम, समय की बर्बादी प्रारंभ होती है तथा मन में खीझ उत्पन्न होती है। विचार और कार्य सीमित एवं संतुलित कर लेने से श्रम और शक्ति का अपव्यय रूक जाता है और व्यक्ति सफलता के सोपानों पर चढ़ता चला जाता है।  

🔴 कोई भी काम करते समय अपने मन को उच्च भावों से और संस्कारों से ओत- प्रोत रखना हीसाँसारिक जीवन में सफलता का मूल मंत्र है। हम जहाँ रह रहे हैं उसे नहीं बदल सकते पर अपने आपको बदल कर हर स्थिति में आनंद ले सकते हैं।

🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 Lose Not Your Heart Day 28

🌹  Balance Your Thoughts and Actions

🔵 When the mind is pulled in too many directions, it cannot    accomplish anything. It becomes disturbed by half- completed tasks and runs out of control. When it is burdened with too many tasks, it cannot complete a single one. You quickly lose time, energy, and most importantly, temper. By limiting your tasks and organizing your thoughts, you will not be as likely to waste your energies, and you will be able to achieve greater success in the tasks you undertake.


🔴 Before starting a task, saturate your mind with noble thoughts. This is the formula for worldly success. While we cannot change
ituations, we can change ourselves to accommodate a situation and remain cheerful.
🌹 ~Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 आज का सद्चिंतन 28 July 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 28 July 2017


👉 दो अक्षर की गम्भीर समस्या और दो अक्षर से ही समाधान



🔵  एक बार एक नगर मे कई व्यक्ति बड़े दुःखी थे बस अपने दुखों की दवा पाने के लिये इधरउधर मारे मारे फिरते थे!

🔴  एक बार उस नगर मे कोई संत आये और वो रोज प्रवचन दिया करते थे एक दिन जब वो प्रवचन देकर उठे तो बाहर से एक आदमी आया और वो लोगो को मिठाई बाँट रहा था और खुशी मे झूम रहा था लोगो ने पूछा अरे भाई क्या मिल गया तुम्हे ऐसा की इतने खुश हो रहे हो और ये मिठाई किस बात की बाँट रहे हो?

🔵  तो उसने कहाँ मेरे जीवन की एक बहुत ही गम्भीर समस्या थी मै उस समस्या से बड़ा दुःखी रहता था भगवान श्री राम की इस कथा मे आने से मेरी उस समस्या का समाधान हो गया उस करुणानिधान ने मेरी सारी समस्या को समाप्त कर दिया! तो लोगो ने पूछा की आखिर ऐसा क्या मिला तो उसने कहा मिला नही मेरा घोड़ा खो गया तो लोगो ने पूछा की घोड़ा मूल्यहीन होगा इसलिये लड्डू बाँट रहा है तो उसने कहा अरे नही वो तो बहुत ही चंचल और मूल्यवान है पर वो खो गया इसलिये मै बड़ा खुश हुं उसने सन्त श्री के चरणों मे खुब प्रणाम किया और नाचते गाते चला गया!

🔴  सभी लोग सन्त श्री के पास गये और उन्होंने कहा की हॆ देव ये कैसा पागल इंसान है जो लोगो से कह रहा है और मिठाई बाँट रहा है की इस कथा मे मेरा घोड़ा खो गया है ये कैसा पागल है?

🔵  तो सन्त श्री ने कहा की यहाँ मेरी कथा सार्थक हो गई तो लोगो ने कहा की हॆ देव हम आपका मतलब नही समझ पा रहे है तो सन्त श्री ने कहा की मै तो यही चाहता हुं जो भी कथा मे आये उन सब के घोड़े खो जाये तो लोगो ने कहा की हमारे पास तो घोड़े है ही नही तो फिर घोड़े खोयेँगे कैसे तो सन्त श्री ने जो उत्तर दिया तो सब अवाक रह गये!

🔴  सन्त श्री ने कहा की "मन" वो घोड़ा है जो बड़ा चंचल है और यदि ये "राम" मे खो जायें अर्थात ईष्ट मे खो जायें सार मे खो जाये तो आनन्द ही आनन्द है और संसार मे खो जाये तो दुःख दुःख और बस दुःख ही दुःख है !मन बड़ा चंचल है पता नही कहाँ कहाँ खो जाता है अरे जिसमे इसे खोना है ये उसमे तो नही खोता है और जिसमे इसे नही खोना है बस उसी मे खो जाता है!

🔵  सद्गुरु देव से एक अति विनम्र प्रार्थना है मेरी की हॆ नाथ इस मन को संसार मे मत खोने देना हॆ नाथ इस मन को सार मे लगा देना! मेरा मन खो जाये मेरे ईष्ट मे और पुरी तरह से खो जायें ईष्ट मे और सद्गुरु के चरणों मे, बस इतनी सी कृपा करना हॆ माँ की ये चंचल मन तुझमे खो जायें हॆ माँ!

🔴  बस हमको भी यही माँगना की मन रूपी घोड़ा खो जाये " संसार " मे ताकि फिर दुखी न हो संसार मे!

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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