गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Dec 2016


👉 आज का सद्चिंतन 30 Dec 2016


👉 सतयुग की वापसी (भाग 24) 30 Dec

🌹 समग्र समाधान—  मनुष्य में देवत्व के अवतरण से

🔴 अपने-अपनों के लाभ के लिए ही उनकी उपलब्धियाँ खपती रहती हैं। प्रदर्शन के रूप में ही यदाकदा उनका उपयोग ऐसे कार्यों में लग पाता है, जिससे सत्प्रवृत्ति संवर्धन में कदाचित् कुछ योगदान मिल सके। वैभव भी अन्य नशों की तरह कम विक्षिप्तता उत्पन्न नहीं करता, उसकी खुमारी में अधिकाधिक उसका संचय और अपव्यय के उद्धत् आचरण ही बन पड़ते हैं। ऐसी दशा में इस निश्चय पर पहुँचना अति कठिन हो जाता है कि उपर्युक्त त्रिविध समर्थताएँ यदि बढ़ाने-जुटाने को लक्ष्य मानकर चला जाए तो प्रस्तुत विपन्नताओं से छुटकारा मिल सकेगा।     

🔵 सच तो यह है कि समर्थता का जखीरा हाथ लगने पर तथाकथित बलिष्ठों ने ही घटाटोप की तरह छाए हुए संकट और विग्रह खड़े किए हैं। प्रदूषण उगलने वाले कारखाने सम्पन्न लोगों ने ही लगाए हैं। उन्हीं ने बेरोजगारी और बेकारी का अनुपात बढ़ाया है। आतंक, आक्रमण और अनाचार में संलग्न बलिष्ठ लोग ही होते हैं। युद्धोन्माद उत्पन्न करना, खर्चीले माध्यमों के सहारे उन्हीं के द्वारा बन पड़ता है। प्रतिभा के धनी कहे जाने वाले वैज्ञानिकों ने ही मृत्यु किरणों जैसे आविष्कार किए हैं।

🔴 कामुकता को धरती से आसमान तक उछाल देने में तथाकथित कलाकारों की ही संरचनाएँ काम करती हैं। अनास्थाओं को जन्म देने का श्रेय बुद्धिवादी कहे जाने वालों के ही पल्ले बँधा है। नशेबाजी को घर-घर तक पहुँचाने में चतुरता के धनी लोग ही अपने स्वेच्छाचार का परिचय दे रहे हैं। इस प्रकार आँकलन करने पर प्रतीत होता है कि मूर्द्धन्यों बलिष्ठों, सम्पन्न और प्रतिभाशालियों की छोटी-सी चौकड़ी ने ही ये अनर्थ थोड़े समय में खड़े किए हैं।

🔵 यहाँ साधन-सम्पन्नता की निन्दा नहीं की जा रही है और न दुर्बलता के सिर पर शालीनता का सेहरा बाँधा जा रहा है। कहा इतना भर जा रहा है कि पिछड़ेपन को हटाने-मिटाने का एकमात्र यही उपाय नहीं है।
 
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 गायत्री विषयक शंका समाधान (भाग 8) 30 Dec

🌹 गायत्री उपासना का समय

🔴 विधि निषेध का असमंजस अधिक हो तो रात्रि की उपासना मौन मानसिक की जा सकती है। माला का प्रयोजन घड़ी से पूरा किया जा सकता है। माला प्राचीन काल में हाथ से प्रयुक्त होने वाली घड़ी है। परम्परा का निर्वाह करना और माला के सहारे जप करने की नियमितता बनाये रहना उत्तम है। फिर भी रात्रि में माला न जपने से किसी विधि निषेध की मन में उथल-पुथल हो तो माला का काम घड़ी से लेकर नियत संख्या की—उपासना अवधि की नियमितता बरती जा सकती है।

🔵 माला में चन्दन की उत्तम है। शुद्ध चन्दन की माला आसानी से मिल भी जाती है। तुलसी के नाम पर बाजार में अरहर की या किन्हीं जंगली झाड़ियों की लकड़ियां ही काम में लाई जाती हैं। इसी प्रकार रुद्राक्ष के नाम पर नकली गुठलियां ही बाजार में भरी पड़ी हैं। उनके मनमाने पैसे वसूल करते हैं। आज की स्थिति में श्वेत चन्दन की माला ही उत्तम है। यों वे नकली भी खूब बिकती हैं। असली होना आवश्यक है। चन्दन, तुलसी, रुद्राक्ष में से जिसका भी प्रयोग करना हो वह असली ली जाय इसका यथासंभव प्रयत्न करना चाहिए।

🔴 मानसिक जप रात्रि में करने में कोई अड़चन नहीं है। रास्ते चलते, सवारी में बैठे, चारपाई पर पड़े हुए भी मानसिक जप करते रहा जा सकता है। होठ, कण्ठ, जीभ बिना हिलाये मन ही मन जप, ध्यान करने में किसी भी स्थिति—किसी भी समय का कोई प्रतिबन्ध नहीं है। विधिवत् की गई साधना की तुलना में विधि रहित मानसिक जप-ध्यान का फल कुछ कम होता है। इतनी ही कमी है। जितना गुड़ डाला जाय उतना मीठा होने की बात विधिवत् और मानसिक जप पर भी लागू होती है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 पराक्रम और पुरुषार्थ (भाग 2) 30 Dec

🌹 प्रतिकूलताएं वस्तुतः विकास में सहायक

🔵 बहुत समय पूर्व ग्रीस में गुलाम प्रथा का आतंक चरम सीमा पर था। गुलामों की खराद बिक्री का कार्य पशुओं की भांति चलता था। उनके साथ व्यवहार भी जानवरों की भांति होता था। गुलामों के विकास शिक्षा स्वास्थ्य की बातों पर ध्यान देने की तोबात ही दूर थी, यदि कोई गुलाम पढ़ने लिखने की बात सोचता था तो इसे अपराध माना जाता था। ऐसी ही विषम प्रतिकूल एवं आतंक भरी परिस्थितियों में एक गुलाम के घर जन्मे एक किशोर के मन में ललित कला सीखने की उत्कट इच्छा जागृत हुई। ग्रीस में यह कानून बन चुका था कि कोई भी गुलाम स्वाधीन व्यक्ति की भांति ललित कलाओं का अध्ययन नहीं कर सकता था। जबकि स्वाधीनों को हर प्रकार की सुविधा थी और उन पर किसी प्रकार की रोक-टोक न थी।

🔴  ‘क्रियो’ का किशोर हृदय इस स्थिति को देखकर रोता रहता था। डर था कि उसकी कलाकृति पकड़ी गई तो कठोर दण्ड मिलेगा। सहयोगी के नाम पर एकमात्र उसकी बहिन उसे निरन्तर प्रोत्साहित किया करती थी और कहती थी— ‘‘भैया डरने की आवश्यकता नहीं तुम्हारी कला में शक्ति होगी तो स्थिति अवश्य बदलेगी, तुम अपनी आराधना में लगे भर रहो।’’ बहिन की प्रेरणा उसमें समय-समय पर शक्ति संचार करती थी। कला देवता की आराधना के लिए बहिन ने अपने टूटे-फूटे मकान के नीचे तहखाने में भाई के लिए सारी आवश्यक वस्तुयें जुटा दीं। भोजन शयन की व्यवस्था भी उसके लिए तहखाने में ही थीं। क्रियो ने अपनी समूची कलाकृति संगमरमर की एक मूर्ति बनाने में झोंक दी।

🔵 उन्हीं दिनों ग्रीस के एथेन्स नगर में विशाल कला प्रदर्शनी आयोजित हुई। पेरी क्लाज नामक विद्वान प्रदर्शनी के अध्यक्ष नियुक्त किये गये। एस्पेसिया, फीडीयस, दार्शनिक सुकरात, साफोक्लीज जैसे विद्वान भी कला की प्रदर्शनी में आमन्त्रित थे। ग्रीस के सभी प्रख्यात कलाकारों की कलाकृतियां वहां आयी थीं। एक-एक करके सभी कलाकृतियों के ऊपर से चादर हटा दी गई। दर्शकों को ऐसा लगा जैसे मानो ललित कलाओं के देवता अपोलो ने अपने हाथों मूर्ति को गढ़ा हो। उसको बनाने वाला कौन है, सभी का एक ही प्रश्न था? कोई उत्तर न मिला।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌿🌞     🌿🌞     🌿🌞

👉 हमारी युग निर्माण योजना (भाग 59)

🌹 राजनीति और सच्चरित्रता

🔴 88. मत-दान और मतदाता— जहां प्रजातन्त्र पद्धति है वहां शासन के भले या बुरे होने का उत्तर-दायित्व वहां के उन सभी नागरिकों पर रहता है जो मतदान करते हैं। ‘वोट’ राष्ट्र की एक परम पवित्र थाती है। उसकी महत्ता हम में से हर को समझनी चाहिये। किसी पक्षपात, दबाव या लोभ में आकर इसे चाहे किसी को दे डालने का उथलापन नहीं अपनाना चाहिए। जिस पार्टी या उम्मीदवार को वोट देना हो उसकी विचारधारा, भावना एवं उत्कृष्टता को भली भांति परखना चाहिए। राष्ट्र के भाग्य निर्माण का उत्तरदायित्व हम किसे सौंपे? इस कसौटी पर जो भी खरा उतरे उसे ही वोट दिया जाय। प्रजातन्त्र का लाभ तभी है जब हर नागरिक उसका महत्व और उत्तरदायित्व समझे और अनुभव करे। शासन में आवश्यक सुधार अभीष्ट हो तो इसके लिये मतदाताओं को समझाया और सुधारा जाना आवश्यक है।

🔵 89. शिक्षा पद्धति का स्तर— शिक्षालय व्यक्तित्व ढालने की फैक्ट्रियां होती हैं। वहां जैसा वातावरण रहता है, जिस व्यक्तित्व के अध्यापक रहते हैं, जैसा पाठ्यक्रम रहता है, जैसी व्यवस्था बरती जाती है उसका भारी प्रभाव छात्रों की मनोभूमि पर पड़ता है और वे भावी जीवन में बहुत कुछ उसी ढांचे में ढल जाते हैं। आज शिक्षा का पूरा नियन्त्रण सरकार के हाथ में है, इसलिए छात्रों की मनोभूमि का निर्माण करने की जिम्मेदारी भी बहुत कुछ उसी के ऊपर है। शिक्षण पद्धति में ऐसा सुधार करने के लिए सरकार को कहा जाय जिससे चरित्रवान् कर्मठ और सभ्य, सेवा भावी नागरिक बनकर शिक्षार्थी निकल सकें। सैनिक शिक्षा को शिक्षण का अनिवार्य अंग बनाया जाय और नैतिक एवं सांस्कृतिक भावनाओं से विद्यालयों का वातावरण पूर्ण रहे। इसके लिये सरकार पर आवश्यक दबाव डाला जाय।

🔴 90. कुरीतियों का उन्मूलन—
सामाजिक कुरीतियों की हानियां नैतिक अपराधों में बढ़कर हैं। भले ही उन्हें मानसिक दुर्बलतावश अपनाये रखा गया हो पर समाज का अहित तो बहुत भारी ही होता है। इसलिये इनके विरुद्ध भी कानून बनाने चाहिए। स्वर्ण नियन्त्रण का कानून कड़ाई के साथ अमल में आते ही जेवरों का सदियों पुराना मोह सप्ताहों के भीतर समाप्त हो गया। इसी प्रकार सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अन्य कानून भी बनाये जांय और उनके पालन कराने में स्वर्ण नियन्त्रण जैसी कड़ाई बरती जाय। यों दहेज, मृत्युभोज, बाल-विवाह, वेश्यावृत्ति आदि के विरुद्ध कानून मौजूद हैं पर वे इतने ढीले-पोले हैं कि उससे न्याय और कानून का उपहास ही बनता है। यदि सचमुच ही कोई सुधार करना हो तो कानूनों में तेजी और कड़ाई रहनी आवश्यक है। सरकार पर ऐसे सुधारात्मक कड़े कानून बनाने के लिए जोर डाला जाय।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 गहना कर्मणोगति: (भाग 27)

🌹 अपनी दुनियाँ के स्वयं निर्माता

🔵 अंतरिक्ष लोक से मुक्त आत्माओं का अविरल प्रेम रस फुहारों की तरह झरने लगता है। जैसे ठंडा चश्मा लगा लेने पर जेठ की जलती दोपहरी शीतल हो जाती है, वैसे ही सुख की भावना करते ही विश्व का एक-एक कण अपनी सुख-शांति का भाग हमारे ऊपर छोड़ता चला जाता है। गुबरीले कीड़े के लिए विष्टा के और हंस के लिए मोतियों के खजाने इस संसार में भली प्रकार भरे हुए हैं। आपके लिए वही वस्तुएँ तैयार हैं, जिन्हें चाहते है। संसार को दुःखमय, पापी, अन्यायी मानते हैं, तो ‘मनसा भूत’ की तरह उसी रूप में सामने आता है। जब सुखमय मान लेते हैं, तो मस्त फकीर की तरह रूखी रोटी खाकर बादशाही आनंद लूटते हैं। सचमुच दुःख और पाप का कुछ अंश दुनियाँ में है, पर वह दुःख सहन करने योग्य है, सुख की महत्ता खोजने वाला है, जो पाप है, वह आत्मोन्नति की प्रधान साधना है। यदि परीक्षा की व्यवस्था न हो तो विद्वान और मूर्ख में कुछ अंतर ही न रहे।

🔴 पाठकों को उपरोक्त पंक्तियों से यह जानने में सहायता हुई होगी कि सृष्टि जड़ होने के कारण हमारे लिए दुःख-सुख का कारण नहीं कही जा सकती। यह दर्पण के समान है, जिससे हर व्यक्ति अपना कुरूप या सुंदर मुख जैसे का तैसा देख सकता है। ‘संसार कल्पित है’ दर्शनशास्त्र की इस उक्ति के अंतर्गत यही मर्म छिपा हुआ है कि हर व्यक्ति अपनी कल्पना के अनुसार संसार को समझता है। कई अंधों ने एक हाथी को छुआ। जिसने पूँछ छुई थी, हाथी को साँप जैसा बताने लगा।

🔵 जिसने पैर पकड़ा उसे खंभे जैसा जँचा, जिसने पेट पकड़ा उसे पर्वत के समान प्रतीत हुआ। संसार भी ऐसा ही है, इसका रूप अपने निकटवर्ती स्थान को देखकर निर्धारित किया जाता है। आप अपने आस-पास पवित्रता, प्रेम, भ्रातृभाव, उदारता, स्नेह, दया, गुण, दर्शन का वातावरण तैयार कर लें। अपनी दृष्टि को गुणग्राही बना लें, तो हम शपथपूर्वक कह सकते हैं कि आपको यही संसार नंदन वन की तरह, स्वर्ग के उच्च सोपान की तरह आनंददायक बन जाएगा। भले ही पड़ौसी लोग अपनी बुरी और दुःखदायी कल्पना के अनुसार इसे बुरा और कष्टप्रद समझते हैं।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/gah/aapni.5

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 11)

🌞 जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय

🔴 उस दिन हमने सच्चे मन से उन्हें समर्पण किया। वाणी ने नहीं, आत्मा ने कहा-‘‘जो कुछ पास में है, आपके निमित्त ही अर्पण। भगवान् को हमने देखा नहीं, पर वह जो कल्याण कर सकता था, वही कर रहे हैं। इसलिए आप हमारे भगवान् हैं। जो आज सारे जीवन का ढाँचा आपने बताया है, उसमें राई-रत्ती प्रमाद न होगा।’’ 

🔵 उस दिन उनने भावी जीवन सम्बन्धी थोड़ी सी बातें विस्तार से समझाईं। १-गायत्री महाशक्ति के चौबीस वर्ष में चौबीस महापुरश्चरण, २-अखण्ड घृत दीप की स्थापना, ३-चौबीस वर्ष में एवं उसके बाद समय-समय पर क्रमबद्ध मार्गदर्शन के लिए चार बार हिमालय अपने स्थान पर बुलाना, प्रायः छः माह से एक वर्ष तक अपने समीपवर्ती क्षेत्र में ठहराना।

🔴  इस संदर्भ में और भी विस्तृत विवरण जो उनको बताना था, सो बता दिया। विज्ञ पाठकों को इतनी ही जानकारी पर्याप्त है, जितना ऊपर उल्लेख है। उनके बताए निर्देशानुसार सारे काम जीवन भर निभते चले गए एवं वे उपलब्धियाँ हस्तगत होती रहीं, जिन्होंने आज हमें वर्तमान स्थिति में ला बिठाया है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/hari/jivana.3

👉 "सुनसान के सहचर" (भाग 11)

🌞  हमारा अज्ञातवास और तप-साधना का उद्देश्य

🔵 संसार को, मानव जाति को सुखी और समुन्नत बनाने के लिए अनेक प्रयत्न हो रहे हैं। उद्योग- धन्धे, कल- कारखाने, रेल, तार, सड़क, बाँध, स्कूल, अस्पतालों आदि का बहुत कुछ निर्माण कार्य चल रहा है। इससे गरीबी और बीमारी, अशिक्षा और असभ्यता का बहुत कुछ समाधान होने की आशा की जाती है; पर मानव अन्तःकरणों में प्रेम और आत्मीयता का, स्नेह और सौजन्य का आस्तिकता और धार्मिकता का, सेवा और संयम का निर्झर प्रवाहित किए बिना, विश्व शान्ति की दिशा में कोई कार्य न हो सकेगा। जब तक सन्मार्ग की प्रेरणा देने वाले गाँधी, दयानन्द, शंकराचार्य, बुद्ध, महावीर, नारद, व्यास जैसे आत्मबल सम्पन्न मार्गदर्शक न हों, तब तक लोक मानस को ऊँचा उठाने के प्रयत्न सफल न होगें। लोक मानस को ऊँचा उठाए बिना पवित्र आदर्शवादी भावनाएँ उत्पन्न किये बिना लोक की गतिविधियाँ ईर्ष्या- द्वेष, शोषण, अपहरण आलस्य, प्रमाद, व्यभिचार, पाप से रहित न होंगी, तब तक क्लेश और कलह से, रोग और दारिद्र से कदापि छुटकारा न मिलेगा।

🔴 लोक मानस को पवित्र, सात्विक एवं मानवता के अनुरूप, नैतिकता से परिपूर्ण बनाने के लिए जिन सूक्ष्म आध्यात्मिक तरंगों को प्रवाहित किया जाना आवश्यक है, वे उच्चकोटि की आत्माओं द्वारा विशेष तप साधन से ही उत्पन्न होगी । मानवता की, धर्म और संस्कृति की यही सबसे बड़ी सेवा है। आज इन प्रयत्नों की तुरन्त आवश्यकता अनुभव की जाती है, क्योंकि जैसे- जैसे दिन बीतते जाते हैं असुरता का पलड़ा अधिक भारी होता जाता है, देरी करने में अति और अनिष्ट की अधिक सम्भावना हो सकती है। 

🔵 समय की इसी पुकार ने हमें वर्तमान कदम उठाने को बाध्य किया। यों जबसे यज्ञोपवीत संस्कार संपन्न हुआ, ६ घण्टे की नियमित गायत्री उपासना का क्रम चलता रहा है; पर बड़े उद्देश्यों के लिए जिस सघन साधना और प्रचंड तपोबल की आवश्यकता होती है, उसके लिए यह आवश्यक हो गया कि १ वर्ष ऋषियों की तपोभूमि हिमालय में रहा और प्रयोजनीय तप सफल किया जाय। इस तप साधना का कोई वैयक्तिक उद्देश्य नहीं। स्वर्ग और मुक्ति की न कभी कामना रही और न रहेगी। अनेक बार जल लेकर मानवीय गरिमा की प्रतिष्ठा का संकल्प लिया है, फिर पलायनवादी कल्पनाएँ क्यों करें। विश्व हित ही अपना हित है। इस लक्ष्य को लेकर तप की अधिक उग्र अग्नि में अपने को तपाने का वर्तमान कदम उठाया है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books/sunsaan_ke_shachar/hamara_aagyatvaas.5

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...