🔹 आप लोगों को मालूम है कि ग्वाल- बाल इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने अपनी लाठी के सहारे गोवर्धन को उठा लिया था। इसी तरह रीछ- बन्दर इतने शक्तिशाली थे कि वे बड़े- बड़े पत्थर उठाकर लाये और समुद्र में सेतु बनाकर उसे लाँघ गये थे। क्या यह उनकी शक्ति थी? नहीं बेटे, यह भगवान् श्रीकृष्ण एवं राम के प्रति उनके समर्पण की शक्ति थी, जिसके बल पर वे इतने शक्तिशाली हो गये थे। भगवान् के साथ, गुरु के साथ मिल जाने से, जुड़ जाने से आदमी न जाने क्या से क्या हो जाता है। हम अपने गुरु से- भगवान् से जुड़ गये, तो आप देख रहे हैं कि हमारे अन्दर क्या- क्या चीजें हैं। आप कृपा करके मछली पकड़ने वालों, चिड़िया पकड़ने वालों के तरीके से मत बनना और न इस तरह की उपासना करना, जो आटे की गोली और चावल के दाने फेंककर उन्हें फँसा लेते और पकड़ लेते हैं तथा कबाब बना लेते हैं।
🔸 आप ऐसे उपासक मत बनना, जो भगवान् को फँसाने के लिए तरह- तरह के प्रलोभन फेंकता है। बिजली का तार लगा हो, परन्तु उसका सम्बन्ध जनरेटर से न हो तो करेण्ट कहाँ से आयेगा? उसी तरह हमारे अंदर अहंकार, लोभ, मोह भरा हो, तो वे चीजें हम नहीं पा सकते हैं। जो भगवान् के पास हैं। अपने पिता की सम्पत्ति के अधिकारी आप तभी हो सकते हैं, जब आप उनका ध्यान रखते हों, उनके आदर्शों पर चलते हों। आप केवल यह कहें कि हम तो उन्हें पिताजी- पिताजी कहते थे तथा अपना सारा वेतन अपनी पाकेट में रखते थे और उनकी हारी- बीमारी से हमारा कोई लेना- देना नहीं था, तो फिर आपको उनकी सम्पत्ति का कोई अधिकार नहीं मिलने वाला है।
🔹 साथियो, हमने भगवान् को देखा तो नहीं है, परन्तु अपने गुरु को हमने भगवान् के रूप में पा लिया है। उनको हमने समर्पण कर दिया है। उनके हर आदेश का पालन किया है। इसलिए आज उनकी सारी सम्पत्ति के हम हकदार हैं। आपको मालूम नहीं है कि विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस को देखा था, स्वामी दयानन्द ने विरजानन्द को देखा था। चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त का नाम सुना है न आपने। उनके गुरु ने जो उनको आदेश दिये, उनका उन्होंने पालन किया। गुरुओं ने शिष्यों को, भगवान ने भक्तों को जो आदेश दिये, वे उनका पालन करते रहे। आपने सुना नहीं है, एक जमाने में समर्थ गुरु रामदास के आदेश पर शिवाजी लड़ने के लिए तैयार हो गये थे। उनके एक आदेश पर वे आजादी की लड़ाई के लिए तैयार हो गये। यही समर्पण का मतलब है। आपको मालूम नहीं है कि इसी समर्पण की वजह से समर्थ गुरु रामदास की शक्ति शिवाजी में चली गयी और वे उसे लेकर चले गये।
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🔸 आप ऐसे उपासक मत बनना, जो भगवान् को फँसाने के लिए तरह- तरह के प्रलोभन फेंकता है। बिजली का तार लगा हो, परन्तु उसका सम्बन्ध जनरेटर से न हो तो करेण्ट कहाँ से आयेगा? उसी तरह हमारे अंदर अहंकार, लोभ, मोह भरा हो, तो वे चीजें हम नहीं पा सकते हैं। जो भगवान् के पास हैं। अपने पिता की सम्पत्ति के अधिकारी आप तभी हो सकते हैं, जब आप उनका ध्यान रखते हों, उनके आदर्शों पर चलते हों। आप केवल यह कहें कि हम तो उन्हें पिताजी- पिताजी कहते थे तथा अपना सारा वेतन अपनी पाकेट में रखते थे और उनकी हारी- बीमारी से हमारा कोई लेना- देना नहीं था, तो फिर आपको उनकी सम्पत्ति का कोई अधिकार नहीं मिलने वाला है।
> 👉 *अमृतवाणी:- जीवन कैसे जीयें? | Amritvanni Jeevan Kaise Jiyen* https://youtu.be/CeQTye3fBFI?si=pjsjzVYDRb42iMV4
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.... क्रमशः जारी
✍🏻 पूज्य पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी