रविवार, 28 जुलाई 2024

👉 उपासना, साधना व आराधना (भाग 2)

🔹 आप लोगों को मालूम है कि ग्वाल- बाल इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने अपनी लाठी के सहारे गोवर्धन को उठा लिया था। इसी तरह रीछ- बन्दर इतने शक्तिशाली थे कि वे बड़े- बड़े पत्थर उठाकर लाये और समुद्र में सेतु बनाकर उसे लाँघ गये थे। क्या यह उनकी शक्ति थी? नहीं बेटे, यह भगवान् श्रीकृष्ण एवं राम के प्रति उनके समर्पण की शक्ति थी, जिसके बल पर वे इतने शक्तिशाली हो गये थे। भगवान् के साथ, गुरु के साथ मिल जाने से, जुड़ जाने से आदमी न जाने क्या से क्या हो जाता है। हम अपने गुरु से- भगवान् से जुड़ गये, तो आप देख रहे हैं कि हमारे अन्दर क्या- क्या चीजें हैं। आप कृपा करके मछली पकड़ने वालों, चिड़िया पकड़ने वालों के तरीके से मत बनना और न इस तरह की उपासना करना, जो आटे की गोली और चावल के दाने फेंककर उन्हें फँसा लेते और पकड़ लेते हैं तथा कबाब बना लेते हैं।

🔸 आप ऐसे उपासक मत बनना, जो भगवान् को फँसाने के लिए तरह- तरह के प्रलोभन फेंकता है। बिजली का तार लगा हो, परन्तु उसका सम्बन्ध जनरेटर से न हो तो करेण्ट कहाँ से आयेगा? उसी तरह हमारे अंदर अहंकार, लोभ, मोह भरा हो, तो वे चीजें हम नहीं पा सकते हैं। जो भगवान् के पास हैं। अपने पिता की सम्पत्ति के अधिकारी आप तभी हो सकते हैं, जब आप उनका ध्यान रखते हों, उनके आदर्शों पर चलते हों। आप केवल यह कहें कि हम तो उन्हें पिताजी- पिताजी कहते थे तथा अपना सारा वेतन अपनी पाकेट में रखते थे और उनकी हारी- बीमारी से हमारा कोई लेना- देना नहीं था, तो फिर आपको उनकी सम्पत्ति का कोई अधिकार नहीं मिलने वाला है।


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🔹 साथियो, हमने भगवान् को देखा तो नहीं है, परन्तु अपने गुरु को हमने भगवान् के रूप में पा लिया है। उनको हमने समर्पण कर दिया है। उनके हर आदेश का पालन किया है। इसलिए आज उनकी सारी सम्पत्ति के हम हकदार हैं। आपको मालूम नहीं है कि विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस को देखा था, स्वामी दयानन्द ने विरजानन्द को देखा था। चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त का नाम सुना है न आपने। उनके गुरु ने जो उनको आदेश दिये, उनका उन्होंने पालन किया। गुरुओं ने शिष्यों को, भगवान ने भक्तों को जो आदेश दिये, वे उनका पालन करते रहे। आपने सुना नहीं है, एक जमाने में समर्थ गुरु रामदास के आदेश पर शिवाजी लड़ने के लिए तैयार हो गये थे। उनके एक आदेश पर वे आजादी की लड़ाई के लिए तैयार हो गये। यही समर्पण का मतलब है। आपको मालूम नहीं है कि इसी समर्पण की वजह से समर्थ गुरु रामदास की शक्ति शिवाजी में चली गयी और वे उसे लेकर चले गये।

.... क्रमशः जारी
✍🏻  पूज्य पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी

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👉 सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा

श्रद्धा अर्थात् श्रेष्ठता से असीम प्यार, अटूट अपनत्व। सजलता - तरलता इसकी विशेषता है। पानी पर कितने भी प्रहार कि ए जाएँ, वह कटता - टूटता नहीं है। पानी से टकराने वाला उसे तोड़ नहीं पाता, उसी में समा जाता है। श्रद्धा की यही विशेषता उसे अमोघ प्रभाव वाली बना देती है।
  
प्रज्ञा अर्थात् जानने, समझने, अनुभव करनें की उत्कृष्ठ क्षमता, दूरदर्शी विवेकशीलता। प्रखरता इसकी विशेषता है। प्रखरता की गति अबाध होती है। प्रखरता युक्त प्रज्ञा हजार अवरोधों - भ्रमों को चीरती हुई यथार्थ तक पहुँचने एवं बुद्धि के उत्कृष्ठतम नियोजन में सफ ल होती है।
  
सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा तीर्थ के सनातन मूल घटक हैं। जहाँ ऋषियों अवतारी सत्ताओं के प्रभाव से यह दोनों धाराऐं सघन सबल हो जाती हैं वहीं तीर्थ विकसित - प्रतिष्ठित हो जाते हैं। युगतीर्थ - गायत्री तीर्थ के भी यही मूल घटक हैं।

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युगतीर्थ के संस्थापक वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं स्नेह सलिला वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा की वास्तविक पहचान उनके शरीर नहीं, उनके द्वारा प्रवाहित प्रखर प्रज्ञा एवं सजल श्रद्धा की सशक्त धाराएँ रही हैं। इसलिए उनके स्मृति चिन्हों के रूप में उनकी स्थूल काया की मूर्तियाँ नहीं, उनके सूक्ष्म तात्विक प्रतीकों के रूप में उन स्मृति चिन्हों को स्थापित किया गया है। वेजीवन भर दो शरीर एक प्राण रहे, इसलिये उनके शरीर का अन्तिम संस्कार एक ही स्थान पर, उनके तात्विक प्रतीकों के समीप संपन्न कर उसी स्थल को उनके संयुक्त समाधि स्थल का रूप दे दिया गया है। तीर्थ चेतना के इन प्रतीकों पर अपनी श्रद्धा समर्पित करके सत्प्रयोजनों के लिये उनसे शक्ति, अनुदान, आशीर्वाद सभी श्रद्धालु प्राप्त कर सकते हैं।

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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