वैज्ञानिक, राजनेता, भविष्यवक्ता, अन्वेषक अपने-अपने तर्क और तथ्य आगे रखकर यह प्रमाणित करने का प्रयत्न कर रहे हैं कि महाविनाश में अब उँगलियों पर गिनने जितने समय को देर है किसी सीमा तक उठे हुए कदम अब वापस नहीं लौटेंगे। इन प्रवक्ताओं के कथन अनुमान, विश्लेषण पर कोई आक्षेप न करते हुए हमें यह पूरी हिम्मत के साथ कहने ही छूट मिली है कि आतंक के समय रहते शान्त होने की भविष्यवाणी करें और जन साधारण से कहें कि विकसित होने की अपेक्षा सृजन की बात सोचें। दुनिया यह नहीं रहेगी जो आज है। उसकी मान्यताएं, भावनाएं, विचारणाएं। आकांक्षाएं ही नहीं, गतिविधियाँ भी इस तरह बदलेंगी कि सब कुछ नया-नया प्रतीत होने लगे।
आज से पाँच सौ वर्ष पुराना कोई मनुष्य कहीं जीवित हो और आकर अबकी भौतिक प्रगति के दृश्य देखे तो उसे आश्चर्यचकित होकर रह जाना पड़ेगा और कहना पड़ेगा कि यह उसके जानने वाली दुनिया नहीं रही। यह तो भूतो की बस्ती जैसी बन गई है। सचमुच पिछले दिनों बुद्धिवाद और भौतिकवाद की सम्मिलित संरचना हुई भी ऐसी ही है जिसे असाधारण अद्भुत, अनुपम और आश्चर्यजनक परिवर्तन कहा जा सके।
ठीक इसी के समतुल्य दूसरा परिवर्तन होने जा रहा है। उसके लिए पाँच सौ वर्ष प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। इस नये परिवर्तन के लिए एक शताब्दी पर्याप्त है। आज की चकाचौंध जैसी परिस्थितियाँ और आसुरी मायाचार जैसी समस्याएँ अब इन दिनों भयावह लगती है और उनके चलते प्रवाह को देखकर लगता है कि सूर्य अस्त हो चला और निविड़ निशा से भरा अंधकार अति समीप आ पहुँचा पर ऐसा होगा नहीं। यह ग्रहण की युति है। बदली की छाया है, जिसे हटा देने वाले प्रचंड आधार विद्यमान भी हैं और गतिशील भी। लंका काण्ड की नृशंसता के उपरान्त रामराज्य का सतयुग वापस आया था। वैसी ही पुनरावृत्ति की हम अपेक्षा कर सकते हैं।
विनाश की सोचते और चेष्टा करते हुए मनुष्य का बुद्धि संसार थक जायेगा और वैभव के साधन स्रोत सूख जायेंगे। उन्हें नये सिरे से नई बातें सोचनी पड़ेगी कि प्रवाह की इस दिशा को उलट दिया जाय और उपलब्ध साधनों को सृजन के लिए लगाया जाय। ऊपर से पड़ने वाले दबाव ऐसी ही उलट फेर संभव करेंगे। उनने उलटे को उलट कर सीधा करने का निश्चय कर लिया है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति, अगस्त 1986 पृष्ठ 19-20
आज से पाँच सौ वर्ष पुराना कोई मनुष्य कहीं जीवित हो और आकर अबकी भौतिक प्रगति के दृश्य देखे तो उसे आश्चर्यचकित होकर रह जाना पड़ेगा और कहना पड़ेगा कि यह उसके जानने वाली दुनिया नहीं रही। यह तो भूतो की बस्ती जैसी बन गई है। सचमुच पिछले दिनों बुद्धिवाद और भौतिकवाद की सम्मिलित संरचना हुई भी ऐसी ही है जिसे असाधारण अद्भुत, अनुपम और आश्चर्यजनक परिवर्तन कहा जा सके।
ठीक इसी के समतुल्य दूसरा परिवर्तन होने जा रहा है। उसके लिए पाँच सौ वर्ष प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। इस नये परिवर्तन के लिए एक शताब्दी पर्याप्त है। आज की चकाचौंध जैसी परिस्थितियाँ और आसुरी मायाचार जैसी समस्याएँ अब इन दिनों भयावह लगती है और उनके चलते प्रवाह को देखकर लगता है कि सूर्य अस्त हो चला और निविड़ निशा से भरा अंधकार अति समीप आ पहुँचा पर ऐसा होगा नहीं। यह ग्रहण की युति है। बदली की छाया है, जिसे हटा देने वाले प्रचंड आधार विद्यमान भी हैं और गतिशील भी। लंका काण्ड की नृशंसता के उपरान्त रामराज्य का सतयुग वापस आया था। वैसी ही पुनरावृत्ति की हम अपेक्षा कर सकते हैं।
विनाश की सोचते और चेष्टा करते हुए मनुष्य का बुद्धि संसार थक जायेगा और वैभव के साधन स्रोत सूख जायेंगे। उन्हें नये सिरे से नई बातें सोचनी पड़ेगी कि प्रवाह की इस दिशा को उलट दिया जाय और उपलब्ध साधनों को सृजन के लिए लगाया जाय। ऊपर से पड़ने वाले दबाव ऐसी ही उलट फेर संभव करेंगे। उनने उलटे को उलट कर सीधा करने का निश्चय कर लिया है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति, अगस्त 1986 पृष्ठ 19-20