इस तथ्य से सभी अवगत है कि खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं। धूमधाम, देन दहेज की शादियों का वर्तमान प्रचलन देखने में हर्षोत्सव की साज सज्जा जैसा भले ही प्रतीत होता हो किन्तु वस्तुतः उसकी भयंकरता उतनी हलकी है नहीं। इस कारण नर और नारी के बीच भयंकर खाई खड़ी हुई है, कन्या और पुत्र का अन्तर बढ़ा है, कन्या शिक्षा में कटौती हुई है, हत्याओं और आत्म हत्याओं का सिलसिला चला है, सगे सम्बन्धियों के बीच डकैती जैसी दुष्टता की जड़ जमी है, दाम्पत्य जीवन की उत्कृष्टता को भयानक चोट लगी है, देश की आर्थिक कमर टूटी है, समाज का ढाँचा बेतरह लड़खड़ाया है। और भी न जाने क्या क्या अनर्थ इस कारण हुआ है। समय की माँग और दूरदर्शिता का संकेत यह है कि सर्व प्रथम धूमधाम और देन दहेज की शादियों के विरुद्ध व्यापक मोर्चा खड़ा किया जाय, और प्रचण्ड संघर्ष छोड़ जाय। इसमें कुछेक मदोन्मत्तों को छोड़कर सर्व साधारण का समर्थन पूरी तरह मिलने की संभावना है।
इस संदर्भ में प्रथम उपाय प्रतिज्ञा पत्र अभियान के रूप में आरम्भ किया जाय। अभिभावक प्रतिज्ञा करे हम अपने बालकों के विवाह में धूमधाम एवं देन दहेज स्वीकार न करेंगे। विवाह योग्य लड़की लड़के प्रतिज्ञा करें कि वे नितान्त सादगी और बिना मोल भाव का विवाह ही करेंगे, भले ही वैसा सुयोग न बनने पर आजीवन कुँआरा ही क्यों न रहना पड़े। प्रभावशाली लोग अपने सम्पर्क क्षेत्र में सादगी प्रधान विवाहों को प्रोत्साहन दें, और खर्चीली शादियों का डट कर विरोध करें।
यहाँ सर्व साधारण द्वारा अपनाया जाने योग्य सरल सत्याग्रह यह है कि खर्चीली शादियों में सम्मिलित होने से स्पष्ट इन्कार कर दें भले ही वे अपने सम्बन्धियों कुटुम्बियों या मित्रों के ही यहाँ क्यों न हो रही हो। कुछ समय पूर्व यह असहयोग आनदोलन प्रज्ञा अभियान के अन्तर्गत मृतक भोज न खाने के सम्बन्ध में चलाया गया और पूरी तरह सफल रहा और अब खर्चीले विवाहों को भी इसी असहयोग आन्दोलन का अगला चरण माना जाय और एक एक करके प्रचलित अवांछनीयताओं के विरुद्ध असहयोग प्रतिरोध संघर्ष कड़ा करते चला जाय।
हम बदलेंगे युग बदलेगा का उद्घोष इन्ही दिनों विज्ञ जनों को सच्चे मन से अपनाना और तत्काल चरितार्थ करना चाहिए। इसके तीन सिद्धान्त सूत्रों को बिनाएक क्षण गंवाये अपनाया जाय।
१. औसत नागरिक स्तर का निर्वाह-चतुर्विधि संयम अनुशासन २. समय दान अंश दान ३. दहेज की धूमधाम वाली शादियों का विरोध, असहयोग। यह तीन आधार ऐसे है जिन्हें नवयुग के भव्य निर्माण में अनिवार्य रूप से अपनाया जाना चाहिए। इन आदर्शों को अपनाते हुये सृजन प्रयोगों को अधिकाधिक प्रखर विस्तृत करते चलना चाहिए। यही है सतयुग की वापिसी का भागीरथी प्रयास, जिसकी सफलता पर मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण सुनिश्चित रूप से संभव हो सकता है।
.... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
इस संदर्भ में प्रथम उपाय प्रतिज्ञा पत्र अभियान के रूप में आरम्भ किया जाय। अभिभावक प्रतिज्ञा करे हम अपने बालकों के विवाह में धूमधाम एवं देन दहेज स्वीकार न करेंगे। विवाह योग्य लड़की लड़के प्रतिज्ञा करें कि वे नितान्त सादगी और बिना मोल भाव का विवाह ही करेंगे, भले ही वैसा सुयोग न बनने पर आजीवन कुँआरा ही क्यों न रहना पड़े। प्रभावशाली लोग अपने सम्पर्क क्षेत्र में सादगी प्रधान विवाहों को प्रोत्साहन दें, और खर्चीली शादियों का डट कर विरोध करें।
यहाँ सर्व साधारण द्वारा अपनाया जाने योग्य सरल सत्याग्रह यह है कि खर्चीली शादियों में सम्मिलित होने से स्पष्ट इन्कार कर दें भले ही वे अपने सम्बन्धियों कुटुम्बियों या मित्रों के ही यहाँ क्यों न हो रही हो। कुछ समय पूर्व यह असहयोग आनदोलन प्रज्ञा अभियान के अन्तर्गत मृतक भोज न खाने के सम्बन्ध में चलाया गया और पूरी तरह सफल रहा और अब खर्चीले विवाहों को भी इसी असहयोग आन्दोलन का अगला चरण माना जाय और एक एक करके प्रचलित अवांछनीयताओं के विरुद्ध असहयोग प्रतिरोध संघर्ष कड़ा करते चला जाय।
हम बदलेंगे युग बदलेगा का उद्घोष इन्ही दिनों विज्ञ जनों को सच्चे मन से अपनाना और तत्काल चरितार्थ करना चाहिए। इसके तीन सिद्धान्त सूत्रों को बिनाएक क्षण गंवाये अपनाया जाय।
१. औसत नागरिक स्तर का निर्वाह-चतुर्विधि संयम अनुशासन २. समय दान अंश दान ३. दहेज की धूमधाम वाली शादियों का विरोध, असहयोग। यह तीन आधार ऐसे है जिन्हें नवयुग के भव्य निर्माण में अनिवार्य रूप से अपनाया जाना चाहिए। इन आदर्शों को अपनाते हुये सृजन प्रयोगों को अधिकाधिक प्रखर विस्तृत करते चलना चाहिए। यही है सतयुग की वापिसी का भागीरथी प्रयास, जिसकी सफलता पर मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण सुनिश्चित रूप से संभव हो सकता है।
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✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य