एक बड़ा व्यापारी नदी में स्नान करने गया। उस दिन वहां काफी भीड़ थी। व्यापारी की नजर नदी में डूबते हुए एक व्यक्ति पर पड़ी। वह तुरंत नदी में कूद गया। व्यक्ति को बाहर निकालने पर देखा कि वह उनका अकाउंटेंट था। कुछ देर बाद अकाउंटेंट को होश आया। व्यापारी ने उससे इस हालत में पहुंचने का कारण पूछा। अकाउंटेंट ने बात बनाते हुए कहा, ‘मैंने अपना सारा पैसा सट्टा बाजार में खो दिया है। लोगों का काफी उधार है मुझ पर। उन्हीं लोगों के डर से मैंने यह कदम उठाया है।’
व्यापारी ने अकाउंटेंट को सांत्वना दी व कहा, ‘अब चिंता छोड़ो, भविष्य में कभी ऐसा काम मत करना। ईमानदारी से नौकरी करते रहो।’ अकाउंटेंट को नौकरी करते हुए एक साल बीत गया। इस बीच व्यापारी को काफी लाभ हुआ। अकाउंटेंट की नीयत फिर खराब हो गयी।
एक दिन उसके बेटे का जन्मदिन था। उसने सबको खीर खिलाई। व्यापारी के लिए भी एक कटोरा खीर लेकर वह उनके घर पहुंचा। व्यापारी व्यस्त था तो उसे कटोरा मेज पर रखने को कह दिया। काम करते हुए देर हो गयी। थोड़ी देर बाद देखा तो खीर का कटोरा बिल्ली खा रही थी, जिसे खाते ही उसकी तबीयत बिगड़ गयी। व्यापारी को समझ आ गया, पर उसने किसी के सामने जिक्र नहीं किया। सोचा कि जब तक मेरा पुण्य है, मेरा कुछ नहीं हो सकता। अगले दिन अकाउंटेंट ने जब व्यापारी को देखा तो सकपका गया। व्यापारी ने फिर भी कुछ जाहिर नहीं किया। अकाउंटेंट को लगा कि व्यापारी को कुछ पता नहीं चला।
वह फिर व्यापारी का धन हड़पने के बारे में सोचने लगा। एक दिन व्यापारी को कहीं जाना था। उसने अकाउंटेंट को भी मोटी रकम साथ लेकर चलने को कहा। अकाउंटेंट ने व्यापारी को नुकसान पहुंचाने के लिए कुछ गुंडों को साथ रख लिया। एक मंदिर आया। व्यापारी उस ओर जाने लगा। वह जैसे ही झुका, गुंडों ने हमला कर दिया। व्यापारी वहीं बेहोश होकर गिर गया। अकाउंटेंट जैसे ही धन लेकर भागने लगा तो गुंडों की नीयत बिगड़ गयी। उन्होंने धन छीनकर उसे नदी में धकेल दिया।
व्यापारी को होश आया तो सामने अकाउंटेंट को डूबते हुए देखा। अपने दयालु स्वभाव के अनुसार सेठ ने फिर अकाउंटेंट को बचा लिया। होश में आने के बाद अकाउंटेंट ने व्यापारी के पैर पकड़े और माफी मांगने लगा। व्यापारी ने उसे मन ही मन माफी दी और इतना ही कहा- जब तक किसी के पुण्य की जड़ें हरी हैं, तब तक कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
व्यापारी ने अकाउंटेंट को सांत्वना दी व कहा, ‘अब चिंता छोड़ो, भविष्य में कभी ऐसा काम मत करना। ईमानदारी से नौकरी करते रहो।’ अकाउंटेंट को नौकरी करते हुए एक साल बीत गया। इस बीच व्यापारी को काफी लाभ हुआ। अकाउंटेंट की नीयत फिर खराब हो गयी।
एक दिन उसके बेटे का जन्मदिन था। उसने सबको खीर खिलाई। व्यापारी के लिए भी एक कटोरा खीर लेकर वह उनके घर पहुंचा। व्यापारी व्यस्त था तो उसे कटोरा मेज पर रखने को कह दिया। काम करते हुए देर हो गयी। थोड़ी देर बाद देखा तो खीर का कटोरा बिल्ली खा रही थी, जिसे खाते ही उसकी तबीयत बिगड़ गयी। व्यापारी को समझ आ गया, पर उसने किसी के सामने जिक्र नहीं किया। सोचा कि जब तक मेरा पुण्य है, मेरा कुछ नहीं हो सकता। अगले दिन अकाउंटेंट ने जब व्यापारी को देखा तो सकपका गया। व्यापारी ने फिर भी कुछ जाहिर नहीं किया। अकाउंटेंट को लगा कि व्यापारी को कुछ पता नहीं चला।
वह फिर व्यापारी का धन हड़पने के बारे में सोचने लगा। एक दिन व्यापारी को कहीं जाना था। उसने अकाउंटेंट को भी मोटी रकम साथ लेकर चलने को कहा। अकाउंटेंट ने व्यापारी को नुकसान पहुंचाने के लिए कुछ गुंडों को साथ रख लिया। एक मंदिर आया। व्यापारी उस ओर जाने लगा। वह जैसे ही झुका, गुंडों ने हमला कर दिया। व्यापारी वहीं बेहोश होकर गिर गया। अकाउंटेंट जैसे ही धन लेकर भागने लगा तो गुंडों की नीयत बिगड़ गयी। उन्होंने धन छीनकर उसे नदी में धकेल दिया।
व्यापारी को होश आया तो सामने अकाउंटेंट को डूबते हुए देखा। अपने दयालु स्वभाव के अनुसार सेठ ने फिर अकाउंटेंट को बचा लिया। होश में आने के बाद अकाउंटेंट ने व्यापारी के पैर पकड़े और माफी मांगने लगा। व्यापारी ने उसे मन ही मन माफी दी और इतना ही कहा- जब तक किसी के पुण्य की जड़ें हरी हैं, तब तक कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।