बुधवार, 24 अगस्त 2016

👉 समाधि के सोपान (भाग 23) (In The Hours Of Meditation)


🔴 वह वाणी जिसका निवास मौन में है, ध्यान के क्षणों में उसने मेरी आत्मा से कहा: -

🔵 वत्स! गंभीर! गहन गम्भीर शांति में आओ। व्यक्तित्व के कोलाहल के परे, उसके विविध अनुभवों के परे महान् शांति में आओ। वासनाओं या इच्छाओं की आँधी से सतह पर ही विक्षुब्ध न होओ! यद्यपि घने के बादल छा जाते हैं किन्तु उनके ऊपर सूर्य चमकता ही रहता है । शांति के क्षणों में ही हमारा हृदय दिव्यानन्द में सर्वोत्तम स्पन्दित होता है। सर्वव्यापी प्रेम के सम्मुख स्वयं को अनावृत कर दो। वह स्थिरता कितना संगीतमय है। वह कैसी शांति प्रदान करता है। ओ! वह अनन्त स्थिरता! अनन्त शांति!!

🔴 एक भी सत् विचार, आध्यात्मिक विचार, कभी नष्ट नहीं होता। इसलिए तुम समय की सीमा के बाहर चले जाओ। वहाँ महत् विचारों पर मनन करो तथा उसमें तुम्हारी आत्मा अनंत को पाने की इच्छा करे। तुम्हारे मन में ही तुम्हारे संसार का अस्तित्व है। तथा तुम समय के प्रवाह के भीतर भी अनन्त को प्रगट कर सकते हो । अपने विचारों के द्वारा तुम आकाश की सीमा को लांध सकते हो।

🔵 आत्मा मुक्त है उसे कोई बाँध नहीं सकता। तुम आओ या जाओ, तुम कुछ करो या न करो, यह सब क्या है? ये सब जीवन स्वप्न की घटनाएँ मात्र हैं । ये सब काल प्रवाह में बहती धारायें मात्र हैं जब कि आला शाश्वत है। ओह् ! इस ज्ञान के साथ कितनी शक्ति, कितनी उच्चता, कितनी अपरिमेय विशालता का बोध जागता है।

🔴 शांति गहरी है! अतल गहरी!! वह अपरिमेय है!! द्धन्द्रिय तथा विचारों की सभी कल्पनाओं को मिटा दो। वे प्रकाश के प्रत्यावर्तन मात्र हैं। तुम स्वयं प्रकाश में लीन हो जाओ।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 समाधि के सोपान (भाग 22) (In The Hours Of Meditation)


🔴 मेरी आत्मा ने गुरुदेव से निवेदन किया- महाभाग, कितना अद्भुत है! वहाँ मृत्यु नहीं!

🔵
और तब गुरुदेव ने कहा-वत्स! वहाँ वासनासंभूत जीवन भी नहीं है। क्योंकि लोग जिसके भूखे हैं वह संसार कीच ही तो है। दूषित वासनाओं में आनंद लेने वाले लोग कीचड़ में सने शरीर में आनंद से लोटने वाले बैल के समान ही तौ हैं उनके लिए यह पथ बहुत लम्बा है क्योंकि इच्छाओं के ताने बाने से बनी माया उनके पथ में आड़े आती है। तुम उसके परे जाओ। तुम्हारा समय आयेगा। ऊपर की ओर देखो। वहाँ अनन्त ज्योति है। ऊपर देखो और वह ज्योति तुम्हारे मन की अपारदर्शिता को अवश्य भेद जायेगी।

🔴 इन शब्दों को सुनकर मुझे स्मरण हो आया कि चैतन्य ही आत्मा का स्वरूप है तथा मुक्ति ही लक्ष्य है। और वह लक्ष्य यहाँ और अभी है, मरणोपरान्त नहीं, तथा जीवात्मा का भाग्य निश्चित है और वह है आत्म- साक्षात्कार, जहाँ समय मिट जाता है। जहाँ भौतिक और मर्त्य चेतना विलुप्त हो जाती है। जहाँ ज्योति जो कि जीवन है, सत्य है, शांति है, वह प्रकाशित होती हैं। जहाँ सभी स्वप्न समाप्त हो जाते हैं वासनायें असीम अनुभूति में विलीन हो जाती हैं। जो कि महत् विस्तार का क्षेत्र है। उस अनन्त की अनुभूति के लिए, समय का अवसान कर देने के लिए इन्द्रिय प्रभूत कल्पनाओं की समाप्ति के लिए अनंत की मुक्ति के लिए ही यह अनुभूति है।

हरि ओम् तत् सत्

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

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