🔴 वह वाणी जिसका निवास मौन में है, ध्यान के क्षणों में उसने मेरी आत्मा से कहा: -
🔵 वत्स! गंभीर! गहन गम्भीर शांति में आओ। व्यक्तित्व के कोलाहल के परे, उसके विविध अनुभवों के परे महान् शांति में आओ। वासनाओं या इच्छाओं की आँधी से सतह पर ही विक्षुब्ध न होओ! यद्यपि घने के बादल छा जाते हैं किन्तु उनके ऊपर सूर्य चमकता ही रहता है । शांति के क्षणों में ही हमारा हृदय दिव्यानन्द में सर्वोत्तम स्पन्दित होता है। सर्वव्यापी प्रेम के सम्मुख स्वयं को अनावृत कर दो। वह स्थिरता कितना संगीतमय है। वह कैसी शांति प्रदान करता है। ओ! वह अनन्त स्थिरता! अनन्त शांति!!
🔴 एक भी सत् विचार, आध्यात्मिक विचार, कभी नष्ट नहीं होता। इसलिए तुम समय की सीमा के बाहर चले जाओ। वहाँ महत् विचारों पर मनन करो तथा उसमें तुम्हारी आत्मा अनंत को पाने की इच्छा करे। तुम्हारे मन में ही तुम्हारे संसार का अस्तित्व है। तथा तुम समय के प्रवाह के भीतर भी अनन्त को प्रगट कर सकते हो । अपने विचारों के द्वारा तुम आकाश की सीमा को लांध सकते हो।
🔵 आत्मा मुक्त है उसे कोई बाँध नहीं सकता। तुम आओ या जाओ, तुम कुछ करो या न करो, यह सब क्या है? ये सब जीवन स्वप्न की घटनाएँ मात्र हैं । ये सब काल प्रवाह में बहती धारायें मात्र हैं जब कि आला शाश्वत है। ओह् ! इस ज्ञान के साथ कितनी शक्ति, कितनी उच्चता, कितनी अपरिमेय विशालता का बोध जागता है।
🔴 शांति गहरी है! अतल गहरी!! वह अपरिमेय है!! द्धन्द्रिय तथा विचारों की सभी कल्पनाओं को मिटा दो। वे प्रकाश के प्रत्यावर्तन मात्र हैं। तुम स्वयं प्रकाश में लीन हो जाओ।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर
🔵 वत्स! गंभीर! गहन गम्भीर शांति में आओ। व्यक्तित्व के कोलाहल के परे, उसके विविध अनुभवों के परे महान् शांति में आओ। वासनाओं या इच्छाओं की आँधी से सतह पर ही विक्षुब्ध न होओ! यद्यपि घने के बादल छा जाते हैं किन्तु उनके ऊपर सूर्य चमकता ही रहता है । शांति के क्षणों में ही हमारा हृदय दिव्यानन्द में सर्वोत्तम स्पन्दित होता है। सर्वव्यापी प्रेम के सम्मुख स्वयं को अनावृत कर दो। वह स्थिरता कितना संगीतमय है। वह कैसी शांति प्रदान करता है। ओ! वह अनन्त स्थिरता! अनन्त शांति!!
🔴 एक भी सत् विचार, आध्यात्मिक विचार, कभी नष्ट नहीं होता। इसलिए तुम समय की सीमा के बाहर चले जाओ। वहाँ महत् विचारों पर मनन करो तथा उसमें तुम्हारी आत्मा अनंत को पाने की इच्छा करे। तुम्हारे मन में ही तुम्हारे संसार का अस्तित्व है। तथा तुम समय के प्रवाह के भीतर भी अनन्त को प्रगट कर सकते हो । अपने विचारों के द्वारा तुम आकाश की सीमा को लांध सकते हो।
🔵 आत्मा मुक्त है उसे कोई बाँध नहीं सकता। तुम आओ या जाओ, तुम कुछ करो या न करो, यह सब क्या है? ये सब जीवन स्वप्न की घटनाएँ मात्र हैं । ये सब काल प्रवाह में बहती धारायें मात्र हैं जब कि आला शाश्वत है। ओह् ! इस ज्ञान के साथ कितनी शक्ति, कितनी उच्चता, कितनी अपरिमेय विशालता का बोध जागता है।
🔴 शांति गहरी है! अतल गहरी!! वह अपरिमेय है!! द्धन्द्रिय तथा विचारों की सभी कल्पनाओं को मिटा दो। वे प्रकाश के प्रत्यावर्तन मात्र हैं। तुम स्वयं प्रकाश में लीन हो जाओ।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर