गुरुवार, 24 जनवरी 2019

👉 संयम की साधना

बाल ब्रह्मचारी दयानंद ने दो सांडों को आपस में लड़ते देखा। वे हटाये हट नहीं रहे थे। स्वामी जी ने दोनोँ के सींग दो हाथों से पकड़े और मरोड़कर दो दिशाओं में फेंक दिया। डर कर वे दोनों भाग खड़े हुए। ऐसी ही एक घटना और है।

स्वामी दयानंद शाहपुरा में निवास कर रहे थे। जहाँ वे ठहरे थे, उस मकान के निकट ही एक नयी कोठी बन रही थी। एक दिन अकस्मात् निर्माणाधीन भवन की छत टूट पड़ी। कई पुरुष उस खंडहर में बुरी तरह फँस गए। निकलने कोई रास्ता नजर आता नहीं था। केवल चिल्लाकर अपने जीवित होने की सूचना भर बाहर वालों को दे रहे थे। मलबे की स्थिति ऐसी बेतरतीब और खतरनाक थी कि दर्शकों में से किसी की हिम्मत निकट जाने की हो जाय तो बचाने वालों का साथ ही भीतर घिरे लोग भी भारी-भरकम दीवारों में पिस जा सकते हैं। तभी स्वामी जी भीड़ देखकर कुतूहलवश उस स्थान पर आ पहुँचे, वस्तुस्थिति की जानकारी होते ही वे आगे बढ़े और अपने एकाकी भुजा बल से उस विशाल शिला को हटा दिया, जिसके नीचे लोग दब गये थे।

आसपास एकत्रित लोग शारीरिक शक्ति का परिचय पाकर उनकी जयकार करने लगे। उनने सबको शाँत करके समझाया कि यह शक्ति किसी अलौकिकता या चमत्कारिता के प्रदर्शन के लिए आप लोगों को नहीं दिखायी है। संयम की साधना करने वाला हर मनुष्य अपने में इससे भी विलक्षण शक्तियों का विकास कर सकता है।

📖 अखण्ड ज्योति मई 1994

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👉 अपने दोषों को भी देखा कीजिए! (अन्तिम भाग)

इसी प्रकार चिड़चिड़ेपन का प्रतिद्वन्द्वी मनोभाव धैर्य और सहिष्णुता को अपना लेने से भी मानसिक प्रहारों की रक्षा की जा सकती है। प्रत्येक अशुभ संस्कार से बचने का यही सीधा-सच्चा व सरल उपाय है।

दूसरों को उजड्ड दुर्बुद्धि या विद्वेषी बताने की अपेक्षा यह अच्छा है कि आप स्वयं अपने आपको ही मिलनसार बनायें। औरों में दोष देखने का श्रम न करें। साथ ही अपनी उदारता, दूर-दर्शिता, सहनशीलता जैसे सामाजिक सद्गुणों का विकास करते रहें। इस बुद्धिमत्तापूर्ण मार्ग पर चलने से ही यह सम्भव है कि दूसरे लोग आपका सम्मान करें, आपकी बात मानें, सहयोग और सहानुभूति का व्यवहार करें। प्रायः कोई व्यक्ति स्वेच्छा से बुरा नहीं बनता अतः मनुष्य को यह सोचने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिए कि हमारे विचारों के अनुसार जो लोग गलती करते हैं वे हमें परेशान करने के उद्देश्य से ऐसा करते हैं।

इस प्रकार की कल्पनाओं से सावधान रहें ताकि किसी के साथ अन्याय न हो आप इसका कारण अपने स्वभाव की छोटी-छोटी त्रुटियाँ भी हो सकती हैं जिन्हें आप नगण्य मानते हैं। इसलिए दूसरों से सामंजस्य सौहार्द, सौजन्यता और आत्मीयता बनाये रखने के लिये यही उचित है कि जब कभी कोई अशुभ परिस्थिति उठती दिखाई दे तब अपने दोषों को भी देख लिया करें। ऐसा दृष्टिकोण अपनाने से आये दिन दूसरों के साथ होते रहने वाले झंझटों में से अधिकांश तो स्वयं ही निर्मूल हो सकते हैं।

.....समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1964 पृष्ठ 42
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/July/v1.42


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👉 आज का सद्चिंतन 24 Jan 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 24 Jan 2019


👉 लक्ष्य प्राप्ति के तीन आधार

नीति के मार्ग पर चलने वालों को अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ, मनोयोग एवं धैर्य तीनों की आवश्यकता पड़ती है। असफलताएँ नीति के अवलंबन के कारण नहीं प्रस्तुत होती हैं, बल्कि उनके मूल में इन तीनों का अभाव ही प्रधान कारण होता है। जिन्हें भौतिक संपन्नता ही अभीष्ट हो वे भी नीति पर चलते हुए श्रमशीलता, मनोयोग एवं धैर्य का आश्रय लेकर अपने उद्देश्य में सफल हो सकते हैं। भौतिक संपन्नता में ईमानदारी बाधक सिद्ध होती है, यह मान्यता उन लोगों की है जो पुरुषार्थ से जी चुराते हैं । ऐन-केन-प्रकारेण कम समय एवं कम श्रम में अधिक लाभ उठाने की प्रवृत्ति से ही अनीति को प्रोत्साहन मिलता है तथा लंबे समय तक सफलता के लिए इंतजार करते नहीं बनता।

फलतः थोड़ा तात्कालिक लाभ भले ही उठा लें - महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों से सदा वंचित ही बने रहते हैं। देखा जाए तो भौतिक संपन्नता के क्षेत्र में शिखर पर वही पहुँचते हैं जो नीति के, ईमानदारी के समर्थक रहे हैं, पुरुषार्थी रहे हैं। विश्व के मूर्धन्य भौतिक संपन्न व्यक्तियों के जीवन क्रम पर दृष्टिपात करने पर यह तथ्य और भी स्पष्ट हो जाता है । ईमानदारी, पुरुषार्थ, मनोयोग एवं असीम धैर्य के सहारे ही वे सामान्य स्तर से असामान्य स्थिति तक जा पहुँचे।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
बड़े आदमी नहीं महामानव बनें, पृष्ठ 10


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👉 Three Supports for Achieving Goal

People intending to achieve the desired goal by walking on the path of honesty and high morals essentially need three qualities: efforts or hard work, right type of mental attitude and patience. Lack of these three virtues is the real cause of failure and not the dependence on morals. Even those, who have set their target on material wealth, can achieve the desired goal by walking on the path of honesty with three virtues of diligence,attitude and patience. The belief that honesty becomes an obstacle in achieving worldly success is wrong and usually propagated by the people who do not wish to put any efforts. The tendency to obtain maximum benefit with spending minimum time and efforts encourages dishonesty and corruption. Such people are not ready to wait long for success, so they apply short-cuts.

As a result, they may pick up some quick gains, but are always deprived of really meaningful and important achievements. It is generally observed that even the people reaching peak of the material wealth are those who follow the principles of honesty and hard-work. If we look at the lifestyles of benevolent and noble rich of the world,this fact becomes even more evident. From a very base level, they reached the highest peak of success through honesty, diligence, proper attitude and of course,unlimited patience.

Pt. Shriram Sharma Aacharya
Badein Aadmi Nahi, Mahamanav Baniyein (Not a Big-Shot, Be Super-Human), Page 10"

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👉 आत्मचिंतन के क्षण 24 Jan 2019

◾ संघर्ष का ही दूसरा नाम जीवन है। जहाँ सक्रियता समाप्त हुई वहाँ जीवन का अंत समीप समझिए। आलसी, अकर्मण्यों को जीवित अवस्था में भी मृत की संज्ञा दी जाती है। जिसने पुरुषार्थ के प्रति अनास्था व्यक्त की वह जीवन के प्रति आस्था ही खो बैठा। मनुष्य की सच्ची वीरता युद्ध के मैदान में दुश्मनों को पराजित करने में नहीं, बल्कि मनोशक्ति के द्वारा अपनी वासनाओं और तृष्णाओं का हनन करने में निहित है।

◾ एकान्तवासी होने से उदासी पनपती और बढ़ती है। इसलिए लोगों के साथ घुलने-मिलने की, हँसने-खेलने की, अपनी कहने और दूसरों की सुनने की आदत डालनी चाहिए। मिलनसार बनने और व्यस्त रहने के प्रयत्न करने चाहिए। अनावश्यक संकोचशीलता को सज्जनता या बड़प्पन का चिह्न मान बैठना गलत है। गंभीर होना अलग बात है और गीदड़ों की तरह डरकर कोने में छिपे बैठे रहना और संकोच के कारण मुँह खोलने का साहस न जुटा पाना दूसरी।

◾ आज किसी भी बात के लिए जमाने को जिम्मेदार ठहरा देने का एक रिवाज सा चल पड़ा है। जमाने को दोष दिया और छुट्टी पाई, किन्तु यह सोचने-समझने का जरा भी कष्ट नहीं किया जाता कि आखिर किसी जमाने का स्वरूप बनता तो उस समय के आदमियों से ही है। वास्तव में जमाना किसी को बुरा नहीं बनाता, बल्कि मनुष्य ही जमाने को बुरा बनाते हैं।

◾ यह धु्रव सत्य है कि चाहे कितना ही छिपाकर, अँधेरे में, दीवारों के घेरे के भीतर या चिकनी-चुपड़ी लपेटकर झूठ बोला जाय, झूठा व्यवहार किया जाय, किन्तु वह एक न एक दिन अवश्य प्रकट होकर रहता ही है और एक न एक दिन उसके दुष्प्रिणाम मनुष्य को स्वयं ही भोगने पड़ते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...