शनिवार, 14 जनवरी 2023

👉 सत्यता में अकूत बल भरा हुआ है

आप सदा सत्य बोलिए, अपने विचारों को सत्यता से परिपूर्ण बनाइए, आचरण में सत्यता बरतिए और अपने आप को सत्यता से सराबोर रखिए। ऐसा करने से आप को एक ऐसा प्रचंड-बल प्राप्त होगा, जो संसार के समस्त बलों से अधिक होगा। कनफ्यूशियस कहा करते थे कि सत्य में हजार हाथियों के बराबर बल है, परंतु वस्तुत: सत्य में अपार बल है। उसकी समता भौतिक सृष्टि के किसी बल के साथ नहीं की जा सकती।

जो अपनी आत्मा के सामने सच्चा है, जो अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुसार आचरण करता है, बनावट, धोखेबाजी, चालाकी को तिलांजलि देकर जिसने ईमानदारी को अपनी नीति बना लिया है, वह इस दुनिया का सबसे बड़ा बुद्धिमान् व्यक्ति है, क्योंकि सदाचरण के कारण मनुष्य शक्ति का पुंज बन जाता है। उसे कोई डरा नहीं सकता। जबकि झूठे और मिथ्याचारी लोगों का कलेजा बात-बात में सशंकित रहता है और पीपल के पत्तों की तरह काँपता रहता है।
धन-बल, जन-बल, तन-बल, मन-बल आदि अनेक प्रकार के बल इस संसार में होते हैं, परंतु सत्य का बल सब से अधिक शक्तिशाली होता है। सच्चा पुरुष इतना शक्तिशाली होता है कि उसके आगे मनुष्यों को ही नहीं, देवताओं को ही नहीं, परमात्मा को भी झुकना पड़ता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति-नवं. 1945 पृष्ठ 1

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👉 कर्म की स्वतंत्रता

समस्त योनियों में से केवल मनुष्य योनि ही ऐसी योनि है, जिसमें मनुष्य कर्म करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र है। ईश्वर की ओर से मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि इसलिए प्रदान किए गए हैं कि वह प्रत्येक काम को मानवता की कसौटी पर कसे और बुद्धि से तोल कर, मन से मनन करके, इंद्रियों द्वारा पूरा करे। मनुष्य का यह अधिकार जन्मसिद्ध है। यदि वह अपने इस अधिकार का सदुपयोग नहीं करता, तो वह केवल अपना कुछ खोता ही नहीं है, बल्कि ईश्वरीय आज्ञा की अवहेलना करने के कारण पाप का भागी बनता है।

कर्म करना मनुष्य का अधिकार है, परन्तु इसके विपरीत कर्म को छोड़ देने में वह स्वतंत्र नहीं है। किसी प्रकार भी कोई प्राणी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। यह हो सकता है कि जो कर्म उसे नहीं करना चाहिए, उसका वह आचरण करने लगे। ऐसी अवस्था में स्वभाव उसे जबरदस्ती अपनी ओर खींचेगा और उसे लाचार होकर यन्त्र की भाँति कर्म करना पड़ेगा। 

गीता में भगवान ने कहा है-यदि तू अज्ञान और मोह में पड़कर कर्म करने के अधिकार को कुचलेगा, तो याद रख कि स्वभाव से उत्पन्न कर्म के अधीन होकर तुझे सब कुछ करना पड़ेगा। ईश्वर सब प्राणियों के हृदय प्रदेश में बसा हुआ है और जो मनुष्य अपने स्वभाव तथा अधिकार के विपरीत कर्म करते हैं, उनको यह माया का डंडा लगातार इस प्रकार घुमा देता है, जैसे कुम्हार चाक पर पऱ चढ़ाकर एक मिट्टी के बर्तन को घुमाता है। 

📖 अखण्ड ज्योति-अक्टू. 1946 पृष्ठ 17


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