🔷 यदि संसार में सुख और शान्ति चाहते हो तो तुम्हारे वश की जो बातें हैं उन्हीं को विकसित करो और जो तुम्हारे वश की बातें नहीं हैं, उन पर व्यर्थ चिन्तन या पश्चाताप छोड़ दो। स्वयं अपने मस्तिष्क के स्वामी बनो। संसार और व्यक्तियों को अपनी राह जाने दो।
🔶 शरीर से सत्कर्म व मन में सद्भावनाओं की धारणा करते हुए जो भी काम मनुष्य करता है, वे सब आत्म-संतोष उत्पन्न करते हैं। सफलता की प्रसन्नता क्षणिक है, पर सन्मार्ग पर चलते हुए कर्त्तव्यपालन का जो आत्म-संतोष है, उसकी सुखानुभूति शाश्व होती है। गरीबी और असफलता के बीच भी सन्मार्गगामी व्यक्ति गौरव का अनुभव करता है।
🔷 मानव जीवन की सार्थकता इस बात पर निर्भर है कि उसमें कितनी उत्कृष्ट भावनाएँ भरी हुई हैं। भावनाओं की उत्कृष्टता, सजीवता और प्रौढ़ता सत्कर्मों से परखी जाती है। इसलिए सत्कर्मों को लोक और परलोक की सुख-शान्ति का श्रेष्ठ साधन माना गया है। सत्कर्म करते रहने से ही सद्भावनाएँ बलवती एवं परिपुष्ट होती हंै।
🔶 शरीर से सत्कर्म व मन में सद्भावनाओं की धारणा करते हुए जो भी काम मनुष्य करता है, वे सब आत्म-संतोष उत्पन्न करते हैं। सफलता की प्रसन्नता क्षणिक है, पर सन्मार्ग पर चलते हुए कर्त्तव्यपालन का जो आत्म-संतोष है, उसकी सुखानुभूति शाश्व होती है। गरीबी और असफलता के बीच भी सन्मार्गगामी व्यक्ति गौरव का अनुभव करता है।
🔷 मानव जीवन की सार्थकता इस बात पर निर्भर है कि उसमें कितनी उत्कृष्ट भावनाएँ भरी हुई हैं। भावनाओं की उत्कृष्टता, सजीवता और प्रौढ़ता सत्कर्मों से परखी जाती है। इसलिए सत्कर्मों को लोक और परलोक की सुख-शान्ति का श्रेष्ठ साधन माना गया है। सत्कर्म करते रहने से ही सद्भावनाएँ बलवती एवं परिपुष्ट होती हंै।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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