सोमवार, 23 दिसंबर 2019

👉 प्रवाह में न बहें, उत्कृष्टता से जुड़े (भाग ५)

हर दिन नया जन्म, हर रात नई मौत की अनुभूति यदि की जा सके तो उससे उत्कृष्ट जीवन जीने की बहुत ही सुव्यवस्थित योजना बन जाती है। हर दिन एक जीवन मानकर चला जाय और उसे श्रेष्ठतम तरीके से जीकर दिखाने का प्रातःकाल ही प्रण कर लिया जाय तो यह ध्यान दिन भर प्रायः हर घड़ी बना रहता है कि आज कोई निकृष्ट विचार मन में नहीं आने देना है, निकृष्ट कर्म नहीं करना है, जो कुछ सोचा जायेगा वैसा ही होगा और जितने भी कार्य किये जायेंगे उनमें नैतिकता और कर्तव्य निष्ठा का पूरा ध्यान रखा जायेगा। प्रातःकाल पूरे दिन की दिनचर्या निर्धारित कर लेनी चाहिये और सोच लेना चाहिए कि उस दिन भर की क्रिया पद्धति में कहाँ कब कैसे अवांछनीय चिन्तन का अवांछनीय कृति का अवसर आ सकता है? उस आशंका के स्थल का पहले ही उपाय सोच लिया जाय, रास्ता निकाल लिया जाय तो समय पर उस निर्णय की याद आ जाती है और सम्भावित बुराई से बचना सरल हो जाता है।

बुराई से बचना ही काफी नहीं आवश्यकता इस बात की भी है कि अपनी विचारणा भावना, चिन्तन प्रक्रिया सामान्य मनुष्यों जैसी न रहकर उच्च स्तर के सहृदय सज्जनों जैसी रहे और सारे काम पेट परिवार के लिए ही न होते रहें, वरन् लोक सेवा के लिए भी समय, श्रम, चिन्तन तथा धन का जितना अधिक समय हो सके उतना लगाया जाय। शरीर तथा शरीर से सम्बन्ध, सुविधाओं तथा सम्बन्धियों के लिए ही हमारा प्रयास सीमित नहीं हो जाना चाहिए, वरन् देश, धर्म, समाज और संस्कृति की सेवा के लिए विश्व मानव की शान्ति एवं समृद्धि के लिए भी हमें बहुत कुछ करना चाहिए। आत्मा की भूख और हृदय की प्यास इस श्रेष्ठ कर्तृत्व से ही पूरी होती है। जीवनोद्देश्य की पूर्ति, ईश्वर की प्रसन्नता एवं आत्म कल्याण की बात को ध्यान में रखते हुए हमें कुछ ऐसा विशिष्ट भी करना चाहिए जिसे शरीर की परिधि से ऊपर आत्मा की श्रेय साधना में गिना जा सके।

इस प्रकार एक दिन के जीवन का श्रेष्ठतम सदुपयोग करने की याद यदि हर घड़ी ध्यान में बनी रहे तो वह दिन आदर्श ही व्यतीत होगा। ठीक इसी प्रक्रिया की हर दिन पुनरावृत्ति की जाती रहे तो एक के बाद एक दिन, एक से एक बढ़कर बनेगा और यह क्रम बनाकर चलते रहने से अपने गुण, कर्म, स्वभाव में श्रेष्ठता ओत-प्रोत हो जायेगी। उसे ओछे दृष्टिकोण और हेय कर्मों को यदि निरन्तर अपनी गतिविधियों में से पृथक किया जाता रहे तो थोड़े दिनों में स्वभाव ही ऐसा बन जायेगा कि बुराई को देखते ही घृणा होने लगे और उसे अपनाने के लिये अन्तःकरण किसी भी सूरत में तैयार न हो।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 श्रद्धा, सिद्धान्तों के प्रति हो (अंतिम भाग)

तो क्या करना चाहिए। बेटे, मैं नहीं बताता हूँ। कैसे कहूँ आपको, देख लीजिए और हमको पढ़ लीजिए। हमारी श्रद्धा को पढ़ लीजिए। जिस दिन से हमने साधना के क्षेत्र में, सेवा के क्षेत्र में, अध्यात्म के क्षेत्र में कदम बढ़ाया, उस दिन से लेकर आज तक हमारी निष्ठा ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसमें कहीं एक राई-रत्ती, सुई के नोंक के बराबर फर्क नहीं आएगा। जिस दिन तक हमारी लाश उठेगी उस दिन तक आप कभी यह नहीं सुनेंगे कि इन्होंने अपनी श्रद्धा डगमगा दी। इन्होंने अपने विश्वास में कमी कर दी।

आप हमारी वंश-परम्परा को जानिए और हम मरने के बाद में जहाँ कहीं भी रहेंगे, भूत बनकर देखेंगे। हम देखेंगे कि जिन लोगों को हम पीछे छोड़कर आए थे, उन्होंने हमारी परम्परा को निबाहा है और अगर हमको यह मालूम पड़ा कि इन्होंने हमारी परम्परा नहीं निबाही और इन्होंने व्यक्तिगत ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया और अपना व्यक्तिगत अहंकार, अपनी व्यक्तिगत यश−कामना और व्यक्तिगत धन-संग्रह करने का सिलसिला शुरू कर दिया। व्यक्तिगत रूप से बड़ा आदमी बनना शुरू कर दिया, तो हमारी आँखों से आँसू टपकेंगे और जहाँ कहीं भी हम भूत होकर के पीपल के पेड़ पर बैठेंगे, वहाँ जाकर के हमारी आँखों से जो आँसू टपकेंगे-आपको चैन से नहीं बैठने देंगे और मैं कुछ कहता नहीं हूँ। आपको हैरान कर देंगे हैरान। दुर्वासा ऋषि के पीछे विष्णु भगवान का चक्र लगा था तो दुर्वासा जी तीनों लोकों में घूम आए थे, पर उनको चैन नहीं मिला था। आपको भी चैन नहीं मिलेगा। अगर हमको विश्वास देकर के विश्वासघात करेंगे तो मेरा शाप है आपको चैन नहीं पड़ेगा कभी भी और न आपको यश मिलेगा, न आपको ख्याति मिलेगी, न उन्नति होगी। आपका अधःपतन होगा। आपका अपयश होगा और आपकी जीवात्मा आपको मारकर डाल देगी। आप यह मत करना, अच्छा!

मुझे अपने मन की बात कहनी थी, सो मैंने कह दी। अब करना आपका काम है कि इन बताई हुई बातों को किस हद तक कार्य में लें और और कहाँ तक चलें? बस ये ही मोटी-मोटी बातें थीं जो मैंने आपसे कहीं। बस मेरा मन हल्का हो गया। अब आप इन्हें सोचना। मालूम नहीं आप इन्हें कार्यरूप में लाएँगे या नहीं लाएँगे। यदि लाएँगे तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी और मैं समझूँगा कि आज मैंने जी खोलकर आपके सामने जो रखा था आपने उसे ठीक तरीके से पढ़ा, समझा और जीवन में उतार करके उसी तरह का लाभ उठाने की सम्भावना शुरू कर दी जैसे कि मैंने अपने जीवन में की।

यह रास्ता आपके लिए भी खुला है, भले आप पीछे-पीछे आइए, साथ आइए। हमको देखिए और अपने आपको ठीक करिए।

.... बस हमारी बात समाप्त।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

ॐ शान्ति।

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...