🔶 बुद्ध को आत्मबोध हुआ। कठोर तपश्चर्या के बाद प्राप्त इस उपलब्धि से वे निर्वाण- मोक्ष की ओर भी बढ़ सकते थे। पर उनका लक्ष्य था- अनाचार, कुरीति से भरे समाज का परिशोधन तथा विवेक रूपी अस्त्र द्वारा जन- मानस का परिष्कार। आत्मबोधजन्य ईश्वरीय सन्देश को व्यापक बनाने वे निकल पड़े और जन- जन तक पहुँचकर विचार- क्रांति कर सकने में सफल हुए।
🔷 परिव्रज्या बौद्ध धर्म का प्रधान अंग मानी जाती थी। भिक्षुक गण सतत चलते रहते थे व बुद्ध के साथ 'संघं, धर्म शरणम् गच्छामि' का नारा लगते। फलत: भारतवर्ष ही नहीं, सारे विश्व भर में उनका सन्देश पहुँचाने का लक्ष्य पूरा कर सके। सिद्धार्थ के अन्दर विश्व कल्याण की कामना रूप में जो बीज पला वह गौतम बुद्ध के रूप में विकसित, पल्लवित होकर सारी मानवता को धन्य कर गया।
📖 प्रज्ञा पुराण से
🔷 परिव्रज्या बौद्ध धर्म का प्रधान अंग मानी जाती थी। भिक्षुक गण सतत चलते रहते थे व बुद्ध के साथ 'संघं, धर्म शरणम् गच्छामि' का नारा लगते। फलत: भारतवर्ष ही नहीं, सारे विश्व भर में उनका सन्देश पहुँचाने का लक्ष्य पूरा कर सके। सिद्धार्थ के अन्दर विश्व कल्याण की कामना रूप में जो बीज पला वह गौतम बुद्ध के रूप में विकसित, पल्लवित होकर सारी मानवता को धन्य कर गया।
📖 प्रज्ञा पुराण से