शनिवार, 26 नवंबर 2022

👉 सुझाव देने से पूर्व सोचो

मनुष्यों में एक प्रवृत्ति यह पाई जाती है कि वे दूसरे के कामों में बहुत जल्दी हस्तक्षेप करने लगते हैं। यदि विचारपूर्वक देखा जाए, तो कोई अन्य मनुष्य जो कुछ कहता, करता या विश्वास करता है, उससे तुम्हारा कोई सरोकार नहीं। तुम्हें उसकी बात पूर्णतया उसी की इच्छा पर छोड़ देनी चाहिए। तुम स्वयं अपने कार्यों में जिस प्रकार की स्वतंत्रता की इच्छा करते हो, वही दूसरों को भी देनी चाहिए।

वास्तव में किसी सज्जन व्यक्ति को कभी दूसरों के कार्यों और विश्वासों में कोई हस्तक्षेप न करना चाहिए, जब तक कि उनके किन्हीं कार्यों से सर्वसाधारण की प्रत्यक्ष हानि न होती हो। यदि कोई मनुष्य ऐसा व्यवहार करता है, जिससे कि वह अपने पड़ोसियों के लिए दु:खदायी बन जाता है, तो उसे उचित सम्मति देना कभी-कभी हमारा कत्र्तव्य हो जाता है, पर ऐसा मौका आने पर भी बात को बहुत नम्रता और सरलतापूर्वक प्रकट करना चाहिए।

अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे विचार से कोई बड़ी भूल कर रहा है, तो तुम उसे एकांत में अवसर ढूँढ़ कर यह बतला सकते हो कि ‘आप ऐसा क्यों करते हो?’ संभव है ऐसा करने से वह तुम्हारी बात पर विश्वास कर सके, किन्तु अनेक स्थानों पर तो ऐसा करना भी अनुचित रूप से हस्तक्षेप ही करना होगा। किसी तीसरे व्यक्ति के सामने तो उस बात की चर्चा कदापि नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह उसकी निंदा करना होगा, जो किसी सभ्य व्यक्ति को शोभा नहीं देता।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 त्यागमय जीवन

महात्मा ईसा ने अपने शिष्यों से कहा था कि-“जो बहुत जोड़ता है वह बहुत खोयेगा। जो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना चाहता है वह सब कुछ छोड़कर मेरे साथ चले।” भगवान बुद्ध ने राज सिंहासन छोड़ा था पर वे किसी प्रकार घाटे में नहीं रहे। राजा विश्वामित्र से महर्षि विश्वामित्र का पद ऊंचा था, बैरिस्टर गाँधी से महात्मा गाँधी कुछ बुरे नहीं रहे। अकबर का दरबारी प्रताप सिंह बनने की अपेक्षा जंगलों में भटकने वाला राणाप्रताप क्या मूर्ख कहलाया ? भामा शाह अपना सब कुछ लुटा गये, क्या वे घाटे में रहे ? सिकन्दर अपनी दौलत को देख देखकर मरते वक्त बुरी तरह फूट फूट कर रोता था, मरने के बाद उसने अपने दोनों हाथ अर्थी से बाहर निकले रहने देने का आदेश किया था ताकि लोग यह जान सकें कि विपुल सम्पत्ति जमा करने वाला सिकन्दर अपने साथ कुछ भी न ले जा सका था उसके दोनों हाथ बिल्कुल खाली थे।

त्याग का अर्थ जिम्मेदारियों का कर्तव्य का त्याग नहीं है जैसा कि आजकल कितने ही नासमझ लोग अपने कठोर कर्तव्यों से विमुख होकर कायरतापूर्वक घर छोड़कर भाग खड़े होते हैं और विचित्र वेष बनाकर आलस्य में समय बिताते हुए दूसरों पर भार बनते हैं। त्याग का वास्तविक अर्थ है- अपनी दुर्भावना दुर्वासना स्वार्थपरता, ममता एवं लोभवृत्ति का त्याग। वेद भगवान ने कहा दे--“सौ हाथों से कमा, हजार हाथों से दान कर” हम तत्परतापूर्वक अपने श्रम का शक्ति का योग्यता का समय का पूरा पूरा उपयोग करते हुए आत्मिक और साँसारिक उत्पादन बढ़ावे और उस उत्पादन का आवश्यक अंश जीवन निर्वाह के लिए उपयोग करते हुए शेष को निर्लोभ भाव से परमार्थ में लगावें। यही गीता का कर्म योग हैं। यह त्यागमय जीवन बिताने की नीति मानव जीवन के सदुपयोग की सर्वोत्तम नीति है, आत्मोन्नति की सर्वोत्तम साधना है।

📖 अखण्ड ज्योति फरवरी 1950 पृष्ठ 24

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👉 हमारी अतृप्ति और असंतोष का कारण

👉 मनोनिग्रह-सफलता की कुँजी

एक विचारक का कथन है-“जो मनुष्य अधिकतम संतोष और सुख पाना चाहता है, उसको अपने मन और इन्द्रियों को वश में करना अत्यन्त आवश्यक है। यदि हम अपने आपको तृष्णा और वासना में बहायें, तो हमारे असंतोष की सीमा न रहेगी।”

अनेक प्रलोभन तेजी से हमें वश में कर लेते हैं, हम अपनी आमदनी को भूल कर उनके वशीभूत हो जाते हैं। बाद में रोते चिल्लाते हैं। जिह्वा के आनन्द, मनोरंजन आमोद प्रमोद के मजे हमें अपने वश में रखते हैं। हम सिनेमा का भड़कीला विज्ञापन देखते ही मन को हाथ से खो बैठते हैं और चाहे दिन भर भूखे रहें, अनाप-शनाप व्यय कर डालते हैं। इन सभी में हमें मनोनिग्रह की नितान्त आवश्यकता है। मन पर संयम रखिये। वासनाओं को नियंत्रण में बाँध लीजिये, पॉकेट में पैसा न रखिये। आप देखेंगे कि आप इन्द्रियों को वश में रख सकेंगे।

आर्थिक दृष्टि से मनोनिग्रह और संयम का मूल्य लाख रुपये से भी अधिक है। जो मनुष्य अपना स्वामी है और इन्द्रियों को इच्छानुसार चलाता है, वासना से नहीं हारता, वह सदैव सुखी रहता है।

प्रलोभन एक तेज आँधी के समान है जो मजबूत चरित्र को भी यदि वह सतर्क न रहे, गिराने की शक्ति रखती है। जो व्यक्ति सदैव जागरुक रहता है, वह ही संसार के नाना प्रलोभनों आकर्षणों, मिथ्या दंभ, दिखावा, टीपटाप से मुक्त रह सकता है। यदि एक बार आप प्रलोभन और वासना के शिकार हुए तो वर्षों उसका प्रायश्चित करने में लग जायेंगे।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1950 पृष्ठ 9

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1950/January/v1.9


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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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