🔴 जिसके दोष देखने को हम बैठते हैं, उसके दोष ही दोष दिखाई पड़ते हैं। ऐसा मालूम पड़ता है कि इस प्राणी या पदार्थ में दोष ही दोष भरे हुए हैं, बुराइयाँ ही बुराइयाँ उसमें संचित हैं, पर जब गुण-ग्राहक दृष्टि से निरीक्षण करने लगते हैं, तो हर प्राणी में, हर पदार्थ में कितनी ही अच्छाइयाँ, उत्तमताऐ, विशेषताएँ दीख पड़ती हैं।
🔵 वस्तुत: संसार का हर प्राणी एवं पदार्थ तीन गुणों से बना हुआ हैं उसमें जहाँ कई बुराइयाँ होती हैं, वहाँ कई अच्छाइयाँ भी होती हैं। अब यह हमारे हाथ में है कि उसके उत्तम तत्त्वों से लाभ उठाएँ या दोषों को स्पर्श कर दु:खी बनें। हमारे शरीर में कुछ अंग बड़े मनोहर होते हैं, पर कुछ ऐसे कुरूप और दुर्गंधित हैं कि उन्हें ढके रहना ही उचित समझ जाता है।
🔴 इस गुण-दोषमय संसार में से हम उपयोगी तत्त्वों को ढूँढ़ें, उन्हें प्राप्त करें और उन्हीं के साथ विचरण करें, तो हमारा जीवन सुखमय हो सकता है। बुराइयों से शिक्षा ग्रहण करें, सावधान हों, बचें और उनका निवारण करने का प्रयत्न करके अपनी चतुरता का परिचय दें, तो बुराइयाँ भी हमारे लिए मंगलमय हो सकती हैं। चतुर मनुष्य वह है जो बुराइयों से भी लाभ प्राप्त कर लेता है। गुण-ग्राहक दृष्टि को जाग्रत करके हम हर स्थिति से लाभ उठा सकते हैं।
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति-अप्रैल 1948 पृष्ठ 1
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1948/April/v1.1
🔵 वस्तुत: संसार का हर प्राणी एवं पदार्थ तीन गुणों से बना हुआ हैं उसमें जहाँ कई बुराइयाँ होती हैं, वहाँ कई अच्छाइयाँ भी होती हैं। अब यह हमारे हाथ में है कि उसके उत्तम तत्त्वों से लाभ उठाएँ या दोषों को स्पर्श कर दु:खी बनें। हमारे शरीर में कुछ अंग बड़े मनोहर होते हैं, पर कुछ ऐसे कुरूप और दुर्गंधित हैं कि उन्हें ढके रहना ही उचित समझ जाता है।
🔴 इस गुण-दोषमय संसार में से हम उपयोगी तत्त्वों को ढूँढ़ें, उन्हें प्राप्त करें और उन्हीं के साथ विचरण करें, तो हमारा जीवन सुखमय हो सकता है। बुराइयों से शिक्षा ग्रहण करें, सावधान हों, बचें और उनका निवारण करने का प्रयत्न करके अपनी चतुरता का परिचय दें, तो बुराइयाँ भी हमारे लिए मंगलमय हो सकती हैं। चतुर मनुष्य वह है जो बुराइयों से भी लाभ प्राप्त कर लेता है। गुण-ग्राहक दृष्टि को जाग्रत करके हम हर स्थिति से लाभ उठा सकते हैं।
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति-अप्रैल 1948 पृष्ठ 1
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1948/April/v1.1