शुक्रवार, 10 जनवरी 2020
👉 माँ
गाँव के सरकारी स्कूल में संस्कृत की क्लास चल रही थी। गुरूजी दिवाली की छुट्टियों का कार्य बता रहे थे।
तभी शायद किसी शरारती विद्यार्थी के पटाखे से स्कूल के स्टोर रूम में पड़ी दरी और कपड़ो में आग लग गयी। देखते ही देखते आग ने भीषण रूप धारण कर लिया। वहां पड़ा सारा फर्निचर भी स्वाहा हो गया।
सभी विद्यार्थी पास के घरो से, हेडपम्पों से जो बर्तन हाथ में आया उसी में पानी भर भर कर आग बुझाने लगे।
आग शांत होने के काफी देर बाद स्टोर रूम में घुसे तो सभी विद्यार्थियों की दृष्टि स्टोर रूम की बालकनी (छज्जे) पर जल कर कोयला बने पक्षी की ओर गयी।
पक्षी की मुद्रा देख कर स्पष्ट था कि पक्षी ने उड़ कर अपनी जान बचाने का प्रयास तक नही किया था और वह स्वेच्छा से आग में भस्म हो गया था।
सभी को बहुत आश्चर्य हुआ।
एक विद्यार्थी ने उस जल कर कोयला बने पक्षी को धकेला तो उसके नीचे से तीन नवजात चूजे दिखाई दिए, जो सकुशल थे और चहक रहे थे।
उन्हें आग से बचाने के लिए पक्षी ने अपने पंखों के नीचे छिपा लिया और अपनी जान देकर अपने चूजों को बचा लिया था।
एक विद्यार्थी ने संस्कृत वाले गुरूजी से प्रश्न किया -
"गुरूजी, इस पक्षी को अपने बच्चो से कितना मोह था, कि इसने अपनी जान तक दे दी ?"
गुरूजी ने तनिक विचार कर कहा -
"नहीं,
यह मोह नहीं है अपितु माँ के ममत्व की पराकाष्ठा है, मोह करने वाला ऐसी विकट स्थिति में अपनी जान बचाता और भाग जाता।"
भगवान ने माँ को ममता दी है और इस दुनिया में माँ की ममता से बढ़कर कुछ भी नहीं है।
तभी शायद किसी शरारती विद्यार्थी के पटाखे से स्कूल के स्टोर रूम में पड़ी दरी और कपड़ो में आग लग गयी। देखते ही देखते आग ने भीषण रूप धारण कर लिया। वहां पड़ा सारा फर्निचर भी स्वाहा हो गया।
सभी विद्यार्थी पास के घरो से, हेडपम्पों से जो बर्तन हाथ में आया उसी में पानी भर भर कर आग बुझाने लगे।
आग शांत होने के काफी देर बाद स्टोर रूम में घुसे तो सभी विद्यार्थियों की दृष्टि स्टोर रूम की बालकनी (छज्जे) पर जल कर कोयला बने पक्षी की ओर गयी।
पक्षी की मुद्रा देख कर स्पष्ट था कि पक्षी ने उड़ कर अपनी जान बचाने का प्रयास तक नही किया था और वह स्वेच्छा से आग में भस्म हो गया था।
सभी को बहुत आश्चर्य हुआ।
एक विद्यार्थी ने उस जल कर कोयला बने पक्षी को धकेला तो उसके नीचे से तीन नवजात चूजे दिखाई दिए, जो सकुशल थे और चहक रहे थे।
उन्हें आग से बचाने के लिए पक्षी ने अपने पंखों के नीचे छिपा लिया और अपनी जान देकर अपने चूजों को बचा लिया था।
एक विद्यार्थी ने संस्कृत वाले गुरूजी से प्रश्न किया -
"गुरूजी, इस पक्षी को अपने बच्चो से कितना मोह था, कि इसने अपनी जान तक दे दी ?"
गुरूजी ने तनिक विचार कर कहा -
"नहीं,
यह मोह नहीं है अपितु माँ के ममत्व की पराकाष्ठा है, मोह करने वाला ऐसी विकट स्थिति में अपनी जान बचाता और भाग जाता।"
भगवान ने माँ को ममता दी है और इस दुनिया में माँ की ममता से बढ़कर कुछ भी नहीं है।
👉 स्वस्थ मन का रहस्य
जो अपनी जिन्दगी में कुछ करने में असफल रहते हैं, वे प्रायः आलोचक बन जाते हैं। दूसरों की कमियाँ देखना, निन्दा करना उनका स्वभाव बन जाता है। यहाँ तक कि ऐसे लोग अपनी कमियों -कमजोरियों का दोष भी दूसरों के सिर मढ़ देते हैं। सच यही है कि जीवन पथ पर चलने में जो असमर्थ हैं, वे राह के किनारे खड़े होकर औरों पर पत्थर फेंकने लगते हैं।
दरअसल यह मन की रोगी दशा है। मानसिक ज्वर या मन की रोगग्रस्त स्थिति में ही मनुष्य ऐसे काम करता है। जब भी किसी की निन्दा का विचार मन में उठे तो जानना कि अब हम भी इसी रोग से पीड़ित हो रहे हैं। ध्यान रहे स्वस्थ मन वाला व्यक्ति कभी किसी की निन्दा में संलग्न नहीं होता। यहाँ तक कि जब दूसरे उसकी निन्दा कर रहे होते हैं, तो वह उन पर दया ही अनुभव करता है। शरीर से बीमार ही नहीं, मन से बीमार भी दया के पात्र हैं।
लोकमान्य तिलक से किसी ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा, कई बार आपकी बहुत निन्दापूर्ण आलोचनाएँ होती हैं, लेकिन आप तो कभी विचलित नहीं होते। उत्तर में लोकमान्य मुस्कराए और बोले- निन्दा ही क्यों, कई बार लोग प्रशंसा भी करते हैं। ऐसा कहकर उन्होंने पूछने वाले की आँखों में गहराई से झाँका और बोले - यह है तो मेरी जिन्दगी का रहस्य, पर मंै आपका बता देता हूूँ। निन्दा करने वाले मुझे शैतान समझते हैं और प्रशंसक मुझे भगवान् का दर्जा देते हैं। लेकिन सच मैं जानता हूँ और वह सच यह है कि मैं न तो शैतान हूँ और न ही भगवान्। मैं तो एक इन्सान हूँ जिसमें थोड़ी कमियाँ है और थोड़ी अच्छाईयाँ और मैं अपनी कमियों को दूर करने एवं अच्छाईयों को बढ़ाने में लगा रहता हूँ।
एक बात और भी है- लोकमान्य ने अपनी बात आगे बढ़ाई। जब अपनी जिन्दगी को मैं ही अभी ठीक से नहीं समझ पाया, तो भला दूसरे क्या समझेंगे। इसलिए जितनी झूठ उनकी निन्दा है, उतनी ही उनकी प्रशंसा है। इसलिए मैं उन दोनों बातों की परवाह न करके अपने आपको और अधिक सँवारने-सुधारने की क ोशिश करता रहता हूँ। सुनने वाले व्यक्ति को इन बातों को सुनकर लोकमान्य तिलक के स्वस्थ मन का रहस्य समझ में आया। उसे अनुभव हुआ कि स्वस्थ मन वाला व्यक्ति न तो किसी की निन्दा करता है और न ही किसी निन्दा अथवा प्रशंसा से प्रभावित होता है।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १५७
दरअसल यह मन की रोगी दशा है। मानसिक ज्वर या मन की रोगग्रस्त स्थिति में ही मनुष्य ऐसे काम करता है। जब भी किसी की निन्दा का विचार मन में उठे तो जानना कि अब हम भी इसी रोग से पीड़ित हो रहे हैं। ध्यान रहे स्वस्थ मन वाला व्यक्ति कभी किसी की निन्दा में संलग्न नहीं होता। यहाँ तक कि जब दूसरे उसकी निन्दा कर रहे होते हैं, तो वह उन पर दया ही अनुभव करता है। शरीर से बीमार ही नहीं, मन से बीमार भी दया के पात्र हैं।
लोकमान्य तिलक से किसी ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा, कई बार आपकी बहुत निन्दापूर्ण आलोचनाएँ होती हैं, लेकिन आप तो कभी विचलित नहीं होते। उत्तर में लोकमान्य मुस्कराए और बोले- निन्दा ही क्यों, कई बार लोग प्रशंसा भी करते हैं। ऐसा कहकर उन्होंने पूछने वाले की आँखों में गहराई से झाँका और बोले - यह है तो मेरी जिन्दगी का रहस्य, पर मंै आपका बता देता हूूँ। निन्दा करने वाले मुझे शैतान समझते हैं और प्रशंसक मुझे भगवान् का दर्जा देते हैं। लेकिन सच मैं जानता हूँ और वह सच यह है कि मैं न तो शैतान हूँ और न ही भगवान्। मैं तो एक इन्सान हूँ जिसमें थोड़ी कमियाँ है और थोड़ी अच्छाईयाँ और मैं अपनी कमियों को दूर करने एवं अच्छाईयों को बढ़ाने में लगा रहता हूँ।
एक बात और भी है- लोकमान्य ने अपनी बात आगे बढ़ाई। जब अपनी जिन्दगी को मैं ही अभी ठीक से नहीं समझ पाया, तो भला दूसरे क्या समझेंगे। इसलिए जितनी झूठ उनकी निन्दा है, उतनी ही उनकी प्रशंसा है। इसलिए मैं उन दोनों बातों की परवाह न करके अपने आपको और अधिक सँवारने-सुधारने की क ोशिश करता रहता हूँ। सुनने वाले व्यक्ति को इन बातों को सुनकर लोकमान्य तिलक के स्वस्थ मन का रहस्य समझ में आया। उसे अनुभव हुआ कि स्वस्थ मन वाला व्यक्ति न तो किसी की निन्दा करता है और न ही किसी निन्दा अथवा प्रशंसा से प्रभावित होता है।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १५७
👉 FALLACIES ABOUT SCRIPTURAL RESTRICTIONS (Part 3)
Q.3. Is Guru mandatory for Gayatri worship?
Ans. Gayatri is also known as Guru-Mantra i.e. to achieve a higher level of spiritual accomplishment, one needs an experienced Guru as a spiritual guide and protector. Let us draw an analogy from other fields. Some fields of learning require only books, whereas for others like music, crafts, etc. direct help of an expert is needed. Similarly, though the daily rituals of Gayatri worship are quite simple, for higher levels of achievement when the worshipper, (depending upon his own personal spiritual status acquired through previous births) faces several ups and downs, an experienced Guru is needed just as a doctor is required during treatment of a disease. Thus, though one can take up Gayatri worship without a Guru, initiation by a proper experienced Guru is advisable enlightened spiritul master is necessary for receiving instruction and direction for accelerating one’s spiritual growth. The spiritual evolution of the soul is a prolonged process continuing through countless cycles of births and deaths. Sought in a hurry, an inexperienced person posing as Guru may do more harm than good to the disciple.
✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Gayatri Sadhna truth and distortions Page 46
Ans. Gayatri is also known as Guru-Mantra i.e. to achieve a higher level of spiritual accomplishment, one needs an experienced Guru as a spiritual guide and protector. Let us draw an analogy from other fields. Some fields of learning require only books, whereas for others like music, crafts, etc. direct help of an expert is needed. Similarly, though the daily rituals of Gayatri worship are quite simple, for higher levels of achievement when the worshipper, (depending upon his own personal spiritual status acquired through previous births) faces several ups and downs, an experienced Guru is needed just as a doctor is required during treatment of a disease. Thus, though one can take up Gayatri worship without a Guru, initiation by a proper experienced Guru is advisable enlightened spiritul master is necessary for receiving instruction and direction for accelerating one’s spiritual growth. The spiritual evolution of the soul is a prolonged process continuing through countless cycles of births and deaths. Sought in a hurry, an inexperienced person posing as Guru may do more harm than good to the disciple.
✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Gayatri Sadhna truth and distortions Page 46
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