शनिवार, 15 जुलाई 2017

👉 आत्मचिंतन के क्षण 15 July

🔴 इच्छा और आवश्यकता में यथेष्ट अन्तर है, यद्यपि अनेक व्यक्ति एक ही अर्थ में इनका प्रयोग करते हैं। इच्छा का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। हम नाना प्रकार की वस्तुएं देखते हैं और लुभा कर उनकी इच्छा करने लगते हैं। ऐसी ही एक इच्छा हमारी आवश्यकता भी है। आवश्यकता केवल ऐसी इच्छा है जिसके बिना हम रह नहीं सकते, जिसके लिए हमारे पास पर्याप्त साधन हैं और जिसे प्राप्त करने से हमारी तृप्ति हो सकती है। कुछ आवश्यकताएं रुपये पैसे से, और कुछ उसके बिना भी पूर्ण हो सकती हैं। अनेक बार रुपये पैसे की कमी श्रम द्वारा पूर्ण हो जाती है।

🔵 महंगाई से बचने का एक उपाय है। आप अपनी आवश्यकताओं का अध्ययन करें। जो आराम, विलास, या फैशन की वस्तुएं हैं, उन्हें तुरन्त त्याग दें। अनावश्यक टीपटाप, दिखावा, सौंदर्य प्रतियोगिता, मिथ्या आडंबर, टायलेट का सामान, मादक द्रव्यों का सेवन छोड़ दें। नौकर छुड़ा दें और स्वयं उनका कार्य करें। अपने छोटे मोटे कार्य-कमरे की सफाई, जूता पालिश, साधारण कपड़े धोना, बाजार से सब्जी लाना, बच्चों या पत्नी को पढ़ाना, अपनी गाय भैंस की देख रेख-स्वयं कर लिया करें।

🔴 आवश्यकताओं को मर्यादा से बढ़ा देने का नाम अतृप्ति और दुःख है उन्हें कम कर पूर्ति करने से सुख और सन्तोष प्राप्त होता है। मनुष्य एक ही प्रकार के सुख से तृप्त नहीं रहता। अतः असंतोष सदैव बना रहता है। वह असंतोष निंदनीय है जिसमें किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए मनुष्य दिन रात हाय-हाय करता रहे और न पाने पर असंतुष्ट, अतृप्त, और दुःखी रहे। तृष्णाएं एक के पश्चात् दूसरी बढ़ेगी। एक आवश्यकता की पूर्ति होगी, तो दो नई आवश्यकताएं आकर उपस्थित हो जायेंगी। अतः विवेकशील पुरुष को अपनी आवश्यकताओं पर कड़ा नियंत्रण रखना चाहिए। इस प्रकार आवश्यकताओं को मर्यादा के भीतर बाँधने के लिए एक विशेष शक्ति-मनोनिग्रह की जरूरत है।
                                        
🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 नारी का उत्तरदायित्व (अंतिम भाग)

🔴 नई सभ्यता के संस्पर्श से दिनों दिन नारी जाति अपने मूल कर्त्तव्य गृहस्थ-जीवन की जिम्मेदारियों और कार्यों में अरुचि अनुभव करने लगी हैं। घर का काम एक बला और बोझ-सा लगता है। जिन कामों को उन्हें स्वयं करना चाहिए, उनको नौकरों या पतियों से कराना चाहती हैं। इससे वह पुरुष की सहयोगिनी न होकर भार रूप बनती जा रही है। इससे पति-पत्नी के सम्बन्ध में भी खटास पैदा होने लगती है। आजकल ऐसे भाग्यशाली दंपत्ति बहुत ही कम हैं जिनका जीवन सब तरह से शान्त, सुखी और सन्तुष्ट माना जा सके।

🔵 उन परिवारों में पति-पत्नी के बीच का संघर्ष और भी तेज होता है, जहाँ नारियाँ बाहर कमाने जाती हैं। इससे घर के काम ठीक-ठीक नहीं हो पाते। बच्चों का शिक्षण और निर्माण भी भली प्रकार नहीं हो पाता। स्त्री पुरुष दोनों ही अपने-अपने काम से थके माँदे रहते हैं। परस्पर दाम्पत्य जीवन की तृप्ति, सुख, सन्तोष वहाँ नहीं रहता जहाँ नारी को आर्थिक स्रोतों का भी साधन बनना पड़ता है। वस्तुतः नारी का कार्य-क्षेत्र घर है। वह घर की रानी है। घर की सुव्यवस्था, सफाई, भोजन, पानी का सुप्रबन्ध, घर के कामों की पूर्णता आदि नाम के कार्य हैं। घर का स्वर्ग बनाने का काम नाम का है। इसी काम को नारियाँ भली-भाँति कर सकती हैं, यह उनकी प्राकृतिक और स्वाभाविक जिम्मेदारी है।

🔴 नारी का व्यवहार, स्वभाव, बोलचाल का संयत मधुर और शिष्ट होना आवश्यक है क्योंकि अनेकों परिवार अनेकों व्यक्तियों की संगम है। नारी के माध्यम से कई परिवार एक सम्बन्ध सूत्र में बँधते हैं। अतः नारी के व्यवहार की तनिक सी गड़बड़ी, इधर की उधर लगाने, एक घर की बात दूसरे घर में कहने की आदत से परिवारों के सम्बन्ध कटु और खराब हो जाते हैं। इसी तरह परिवार तथा बाहर के अनेकों व्यक्ति शरीर के सम्बन्ध में आते है। सास, ससुर, पति रिश्तेदार, पड़ौसी आदि भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को तृप्त और सन्तुष्ट रखना नारी का ही महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है।

🌹 समाप्त
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति- जुलाई 1963 पृष्ठ 38
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1963/July/v1.38

👉 भगवान शिव और उनका तत्त्वदर्शन (भाग 2)

🔵 अठारह पुराणों का अनुवाद मैंने संस्कृत से हिन्दी में किया है। उसमें से शिवपुराण की एक कथा मुझे याद आई, जिसने हमारी शंका का समाधान कर दिया कि भगवान शंकर सहायता क्यों नहीं करते हमारी? क्यों नहीं उनकी शक्ति का लाभ मिलता? क्यों उनके चमत्कार हमें दिखाई नहीं पड़ते? जबकि शंकर भगवान के भक्त जिन्होंने क्या से क्या अनुदान प्राप्त किए हैं, जो भी तप करने के लिए खड़ा हो गया वह न जाने क्या से क्या प्राप्त करता चला गया?

🔴 हम और आप जैसे शिव-उपासक उस शक्ति को प्राप्त न कर सकते हों सो ऐसी बात नहीं, पर कहीं न नहीं चूक रह जाती है, कहीं न कहीं भूल रह जाती है। उस भूल को हमें निकालना ही पड़ेगा और निकालना ही चाहिए। इसके बिना अध्यात्म का पूरा लाभ नहीं मिल सकेगा और दुनिया के सामने हम सिर ऊँचा उठा कर यह नहीं कह सकेंगे कि हम ऐसी शक्ति के उपासक हैं जो अपनी उँगली के इशारे से सारी दुनिया को हिला सकती है तो गलती और चूक कहाँ हो गई? चूक और गलती वहाँ हो गई जहाँ भगवान शिव और पार्वती का असली स्वरूप हमको समझ में नहीं आया। उसके पीछे जो फिलॉसफी है वह समझ में नहीं आई, मात्र उसका बाहरी स्वरूप समझ में आ गया।

🔵 भगवान शंकर का भी एक कलेवर है और एक प्राण, एक बहिरंग स्वरूप है और एक अंतरंग स्वरूप। जब हम दोनों को मिला देंगे तब पॉजिटिव और निगेटिव दोनों तारों को मिलाकर जिस तरीके से स्पार्क उठते हैं और करेंट चालू हो जाता है, उसी प्रकार से भगवान का करेंट चालू हो जाएगा। बहिरंग रूप के बारे में आप जानते हैं और जिस तक आप सीमित हो गए हैं, वह कलेवर है जो मंदिर में बैठा हुआ है। जिसके चरणों में हम मस्तक झुकाते हैं, जल चढ़ाते हैं, पूजा करते हैं, प्रार्थना करते हैं, आरती उतारते हैं और जय-जयकार करते हैं—वह बहिरंग कलेवर है जिसकी भी सख्त जरूरत है, परन्तु यही सब कुछ नहीं है। हमें अंतरंग रूप के बारे में भी जानना चाहिए।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 29)

🌹  मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे।

🔴 भाषण करना है तो हमें ठीक समय पर पहुँचना और नियमित समय में ही पूरा करना चाहिए। समय का ध्यान न रखना, सुनने वालों के साथ बेइन्साफी है। दावत जिस समय की रखी है, उसी समय आरंभ कर देनी चाहिए। मेहमानों को घंटों प्रतीक्षा में बिठाए रहना, एक प्रकार से उनका समय बर्बाद करना है। जिसे धन की बर्बादी के समान ही हानिकारक समझा जाना चाहिए।

🔵 वस्तु का मूल्य और स्वरूप जो बताया गया है वही वस्तुतः होना चाहिए। असली में नकली की मिलावट कर देना, दामों में घिसा-पिटी करके कमीवेशी करना, व्यापार करने वालों के लिए सर्वथा अशोभनीय है। घिस-घिस कर कमी करना लिए सर्वथा अशोभनीय है। घिस-घिस कर कमी करना अपनी विश्वसनीयता तथा प्रामाणिकता पर कलंक लगाना है। असली और नकली वस्तुएँ अलग-अलग बेची जाएँ और उनके दाम वैसे ही महँगे, सस्ते स्पष्ट किए जाएँ तो व्यापारी की साख बढ़ेगी और ग्राहकों का समय बचेगा तथा संतोष होगा। ईमानदारी घाटे का सौदा नहीं है। वह प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता की परीक्षा भर चाहती है। इस कसौटी पर सही होना हर व्यवसायी का नागरिक कर्तव्य है। यह कर्तव्य पालन व्यक्ति का सम्मान भी बढ़ाता है और व्यवसाय भी।

🔴 दूसरों की असुविधा को ध्यान में रखते हुए अपनी सुविधा को सीमाबद्ध रखना, शिष्टता और सभ्यता भरा मधुर व्यवहार करना, मीठे वचन बोलना, वचन का पालन करना, प्रामाणिकता और विश्वस्तता की रीति-नीति अपनाना, समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को हम में से प्रत्येक को सीखना और पूरा करना ही चाहिए। चाहिए ताकि समाज में शिष्ट नागरिकों की तरह हम ठीक तरह से जी सकें और दूसरों को जीने दे सकें।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.41

👉 Lose Not Your Heart Day 15

🌹  Forget Painful Memories

🔵 When you find yourself recalling painful memories, the best thing to do is forget and ignore them. The way to preserve your emotional stability is to replace your unpleasant memories with pleasant ones. If you wish to keep your physical, mental, and emotional health, then learn to remove unhealthy memories in this way.

🔴 Even if someone close to you has caused you grief, will you keep obsessing over your pain? Lose yourself in purposeful work and forget these painful experiences. The best way to free yourself from worry is to forget your misery.

🌹 ~Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 हारिय न हिम्मत दिनांक :: १५

🌹  दुःखद स्मृतियों को भूलो  
🔵 जब मन में पुरानी दु:खद स्मृतियाँ सजग हों तो उन्हें भूला देने में ही श्रेष्टता है। अप्रिय बातों को भुलाना आवश्यक है। भुलाना उतना ही जरूरी है जितना अच्छी बात का स्मरण करना। यदि तुम शरीर से,, मन से और आचरण से स्वस्थ होना चाहते हो तो अस्वस्थता की सारी बातें भूल जाओ।

🔴 माना कि किसी ‘अपने ’ ने ही तुम्हें चोट पहुँचाई है,, तुम्हारा दिल दुखाया है, तो क्या तुम उसे लेकर मानसिक उधेड़बुन में लगे रहोगे। अरे भाई! उन कष्टकारक अप्रिय प्रसंगों को भूला दो, उधर ध्यान न देकर अच्छे शुभ कर्मों से मन को केंद्रीभूत कर दो।

चिंता से मुक्ति पाने का सर्वोत्तम उपाय दु:खों को भूलना ही है।

🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 आज का सद्चिंतन 15 July 2017


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