मनुष्य कितना दीन-हीन, स्वल्प शक्ति वाला, कमजोर प्राणी है, यह प्रतिदिन के उसके जीवन से पता चलता है। उसे पग-पग पर परिस्थितियों का आश्रित होना पड़ता है। कितने ही समय तो ऐसे आते हैं, जब औरों से सहयोग न मिले तो उसकी मृत्यु तक हो सकती है। इस तरह विचार करने से तो मनुष्य की लघुता का ही आभास होता है। किन्तु मनुष्य के पास एक ऐसी भी शक्ति है जिसके सहारे वह लोक-परलोक की अनन्त सिद्धियों सामर्थ्यों का स्वामी बनता है। यह है प्रार्थना की शक्ति -परमात्मा के प्रति अविचल श्रद्धा और अटूट विश्वास की शक्ति । मनुष्य प्रार्थना से अपने को बदलता है, शक्ति प्राप्त करता है और अपने भाग्य में परिवर्तन कर लेता है। विश्वासपूर्वक की गई प्रार्थना पर परमात्मा दौड़े चले आते हैं। सचमुच उनकी प्रार्थना में बड़ा बल है, अलौकिक शक्ति और अनन्त सामर्थ्य है।
संतोष करने का अर्थ है कि आपने प्रकृति के साथ मित्रता कर ली है। कुछ दिन इस तरह का अभ्यास डाल लेने से सुख और दुःख दानों का स्तर समान हो जायगा। तब केवल अपना ध्येय जीवन-लक्ष्य प्राप्त करना ही शेष रहेगा, इसलिये समझाना पड़ता है कि दुःख सुख इनमें से किसी के प्रभाव में न पड़ो । दोनों का मिला जुला जीवन ही मनुष्य को लक्ष्य तक पहुंचाता है। जीवन-लक्ष्य का प्रादुर्भाव दुःख और सुख के सम्मिलन से होता है।
विचार एक शक्ति है। आज तक संसार में जो परिवर्तन हुए और जो शक्ति दिखाई दे रही है, वह सब विचार की ही शक्ति है। इस शक्ति का स्वरूप जब तक सद् में स्थित रहता है तब तक रचनात्मक प्रवृत्तियाँ विकसित होती रहती हैं और मनुष्य समाज की सुख-सुविधाओं में अभिवृद्धि होती रहती है किन्तु जब उनमें विकृति आ जाती है तो सर्वनाश के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। अतः सद्विचार को ही रचनात्मक विचार कहेंगे। विचार का अनादर करना अर्थात् उसे विकृत करना भयंकर भूल है, इससे मनुष्य का अहित ही होता है।
Shantikunj Official WhatsApp Number
संतोष करने का अर्थ है कि आपने प्रकृति के साथ मित्रता कर ली है। कुछ दिन इस तरह का अभ्यास डाल लेने से सुख और दुःख दानों का स्तर समान हो जायगा। तब केवल अपना ध्येय जीवन-लक्ष्य प्राप्त करना ही शेष रहेगा, इसलिये समझाना पड़ता है कि दुःख सुख इनमें से किसी के प्रभाव में न पड़ो । दोनों का मिला जुला जीवन ही मनुष्य को लक्ष्य तक पहुंचाता है। जीवन-लक्ष्य का प्रादुर्भाव दुःख और सुख के सम्मिलन से होता है।
विचार एक शक्ति है। आज तक संसार में जो परिवर्तन हुए और जो शक्ति दिखाई दे रही है, वह सब विचार की ही शक्ति है। इस शक्ति का स्वरूप जब तक सद् में स्थित रहता है तब तक रचनात्मक प्रवृत्तियाँ विकसित होती रहती हैं और मनुष्य समाज की सुख-सुविधाओं में अभिवृद्धि होती रहती है किन्तु जब उनमें विकृति आ जाती है तो सर्वनाश के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। अतः सद्विचार को ही रचनात्मक विचार कहेंगे। विचार का अनादर करना अर्थात् उसे विकृत करना भयंकर भूल है, इससे मनुष्य का अहित ही होता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
All World Gayatri Pariwar Official Social Media Platform
*शांतिकुंज हरिद्वार के ऑफिशल व्हाट्सएप चैनल *awgpofficial Channel* को Follow करे*
https://whatsapp.com/channel/ 0029VaBQpZm6hENhqlhg453J
https://whatsapp.com/channel/
8439014110 शांतिकुंज की गतिविधियों से जुड़ने के लिए 8439014110 पर अपना नाम लिख कर WhatsApp करें
Official Facebook Page
Official Twitter
Official Instagram
Youtube Channel Rishi Chintan
Youtube Channel Shantikunjvideo
Official Telegram