🌹 तो फिर हमें क्या करना चाहिए?
🔴 भोग प्रधान आकांक्षाएँ रखने से मनुष्यों की अतृप्ति बढ़ जाती है और वे अधिक सुख सामग्री की माँग करते हैं। स्वार्थ के कारण ही छीना झपटी और चालाकी बेईमानी बढ़ती है। श्रम से बचने और मौज करने की इच्छाएँ जब तीव्र हो जाती है, तो उचित-अनुचित का विचार छोड़कर लोग कुमार्ग पर चलने लगते हैं, जिसका परिणाम उनके स्वयं के लिए ही नहीं सारे समाज के लिए भी घातक होता है। इस अदूरदर्शितापूर्ण प्रक्रिया को अपनाने से ही संसार में सर्वत्र दुःख-दैन्य का विस्तार हुआ है।
🔵 पतन का निवारण करने के लिए मानवीय दृष्टिकोण में परिवर्तन करना आवश्यक है और उस परिवर्तन के लिए मनुष्य का जीवन-दर्शन भी ऊँचा बनाया जाना चाहिए। पतित भावनाओं वाले व्यक्ति के लिए लाँछना एवं आत्म-ग्लानि की व्यथा कष्टदायक नहीं होती, वह निर्लज्ज बना कुकर्म करता रहता है। जब लोक मानस का स्तर भावनात्मक दृष्टि से ऊँचा उठेगा तब ही जीवन में श्रेष्ठता आएगी और उसी के आधार पर विश्व शांति की मंगलमय परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी।
🔴 आज का मनुष्य सभ्यता के क्षेत्र में विकास करने के साथ-साथ इतना विचारशील भी बना है कि यदि उसे तथ्य समझाए जाएँ, तो वह उन्हें समझने और मानने के लिए तैयार हो जाता है। लोकसेवियों को इस प्रयोजन के लिए घर-घर जाना चाहिए और लोगों की आस्थाएँ, मान्यताएँ तथा विचारणाएँ परिष्कृत करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
🔵 प्रत्येक व्यक्ति इतना बुद्धिमान और प्रतिभाशाली नहीं होता कि वह तथ्यों को सही-सही समझा सके और किस परिस्थितियों में क्या किया जाना चाहिए, इसका मार्गदर्शन कर सके। इसके लिए सुलझी विचारधारा का साहित्य लेकर निकलना चाहिए तथा लोगों को उसे पढ़ने तथा विचार करने की प्रेरणा देनी चाहिए, उसके साथ अशिक्षित व्यक्तियों के लिए पढ़कर सुनाने या परामर्श द्वारा प्रेरणा देने की प्रक्रिया चलाई जानी चाहिए। आरंभ में सभी लोगों की रुचि इस ओर नहीं हो सकती। अतः जो लोग ज्ञानयज्ञ की आवश्यकता समझते हैं, उन्हें चाहिए कि वे ऐसा विचार-साहित्य लोगों तक स्वयं लेकर पहुँचें।
🔵 यह ठीक है कि कुआँ प्यासे के पास नहीं जाता, प्यासे को ही कुआँ के पास जाकर पानी पीना पड़ता है। गर्मियों में जब व्यापक जल संकट उत्पन्न हो जाता है, तो बादलों को ही जगह-जगह जाकर बरसना पड़ता है। लोक-सेवियों को भी सद्विचारों और सद्प्रेरणाओं की शीतल सुखद जलवृष्टि के लिए जन-जन तक पहुँचना चाहिए। उसके लिए उन व्यक्तियों में पहल सद्विचारों के प्रति भूख जगाना आवश्यक है। भूख उत्पन्न करने का यह कार्य सम्पर्क द्वारा ही संभव होता है। उसके बाद सद्विचारों और सत्प्रेरणाओं को उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। यह आवश्यकता साहित्य और निम्न सेवा कार्यों द्वारा पूरी की जा सकती है।
🌹 समाप्त
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔴 भोग प्रधान आकांक्षाएँ रखने से मनुष्यों की अतृप्ति बढ़ जाती है और वे अधिक सुख सामग्री की माँग करते हैं। स्वार्थ के कारण ही छीना झपटी और चालाकी बेईमानी बढ़ती है। श्रम से बचने और मौज करने की इच्छाएँ जब तीव्र हो जाती है, तो उचित-अनुचित का विचार छोड़कर लोग कुमार्ग पर चलने लगते हैं, जिसका परिणाम उनके स्वयं के लिए ही नहीं सारे समाज के लिए भी घातक होता है। इस अदूरदर्शितापूर्ण प्रक्रिया को अपनाने से ही संसार में सर्वत्र दुःख-दैन्य का विस्तार हुआ है।
🔵 पतन का निवारण करने के लिए मानवीय दृष्टिकोण में परिवर्तन करना आवश्यक है और उस परिवर्तन के लिए मनुष्य का जीवन-दर्शन भी ऊँचा बनाया जाना चाहिए। पतित भावनाओं वाले व्यक्ति के लिए लाँछना एवं आत्म-ग्लानि की व्यथा कष्टदायक नहीं होती, वह निर्लज्ज बना कुकर्म करता रहता है। जब लोक मानस का स्तर भावनात्मक दृष्टि से ऊँचा उठेगा तब ही जीवन में श्रेष्ठता आएगी और उसी के आधार पर विश्व शांति की मंगलमय परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी।
🔴 आज का मनुष्य सभ्यता के क्षेत्र में विकास करने के साथ-साथ इतना विचारशील भी बना है कि यदि उसे तथ्य समझाए जाएँ, तो वह उन्हें समझने और मानने के लिए तैयार हो जाता है। लोकसेवियों को इस प्रयोजन के लिए घर-घर जाना चाहिए और लोगों की आस्थाएँ, मान्यताएँ तथा विचारणाएँ परिष्कृत करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
🔵 प्रत्येक व्यक्ति इतना बुद्धिमान और प्रतिभाशाली नहीं होता कि वह तथ्यों को सही-सही समझा सके और किस परिस्थितियों में क्या किया जाना चाहिए, इसका मार्गदर्शन कर सके। इसके लिए सुलझी विचारधारा का साहित्य लेकर निकलना चाहिए तथा लोगों को उसे पढ़ने तथा विचार करने की प्रेरणा देनी चाहिए, उसके साथ अशिक्षित व्यक्तियों के लिए पढ़कर सुनाने या परामर्श द्वारा प्रेरणा देने की प्रक्रिया चलाई जानी चाहिए। आरंभ में सभी लोगों की रुचि इस ओर नहीं हो सकती। अतः जो लोग ज्ञानयज्ञ की आवश्यकता समझते हैं, उन्हें चाहिए कि वे ऐसा विचार-साहित्य लोगों तक स्वयं लेकर पहुँचें।
🔵 यह ठीक है कि कुआँ प्यासे के पास नहीं जाता, प्यासे को ही कुआँ के पास जाकर पानी पीना पड़ता है। गर्मियों में जब व्यापक जल संकट उत्पन्न हो जाता है, तो बादलों को ही जगह-जगह जाकर बरसना पड़ता है। लोक-सेवियों को भी सद्विचारों और सद्प्रेरणाओं की शीतल सुखद जलवृष्टि के लिए जन-जन तक पहुँचना चाहिए। उसके लिए उन व्यक्तियों में पहल सद्विचारों के प्रति भूख जगाना आवश्यक है। भूख उत्पन्न करने का यह कार्य सम्पर्क द्वारा ही संभव होता है। उसके बाद सद्विचारों और सत्प्रेरणाओं को उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। यह आवश्यकता साहित्य और निम्न सेवा कार्यों द्वारा पूरी की जा सकती है।
🌹 समाप्त
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य